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ज्वालामुखी क्या है और कैसे फटता है? | ज्वालामुखी के प्रकार

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आज के इस लेख में आप जानेंगे ज्वालामुखी क्या है (Volcano in Hindi) और कैसे फटता है के बारे में. जैसा कि हम जानते हैं पृथ्वी का आवरण बहुत गर्म होता है, जहां तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस से 3000 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. ऐसे में अंदर मौजूद चट्टानें अधिक तापमान की वजह से पिघल जाती हैं और एक तरल पदार्थ बनाती हैं. यह पिघला हुआ तरल पदार्थ मैग्मा कहलाता है जो चट्टानों की अपेक्षा हल्का होता है. हल्का होने की वजह से यह पृथ्वी की ऊपरी सतह तक आ जाता है और बाहर निकलने लगता है, जिससे ज्वालामुखी का जन्म होता है.

आज इस लेख में हम ज्वालामुखी के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे जहां ज्वालामुखी क्या होता है , ज्वालामुखी कैसे और कहाँ फटता है, ज्वालामुखी के प्रकार  इत्यादि के बारे में जानकारी दी जाएगी. तो चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं ज्वालामुखी की पूरी जानकारी

ज्वालामुखी क्या है? – What is Volcano in Hindi

jwalamukhi kya hai

ज्वालामुखी जिसे अंग्रेजी भाषा में ‘volcano’ कहा जाता है, पृथ्वी की सतह पर बनी एक दरार या छिद्र होता है जिससे लावा, चट्टानों के गर्म अंश, राख और गर्म गैसें बाहर निकलती हैं. 

ज्वालामुखी नाम की उत्पति रोमन अग्नि देवता वालकैन के नाम से हुई. ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ जब जमा होकर एक शंक्वाकार (conical) स्थल रूप ले लेते हैं तो इसे ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है.

ज्वालामुखी से कई स्थलरूपों का निर्माण होता है, इसलिए भू-आकृति विज्ञान (geomorphology) में इसे आकस्मिक घटना (अचानक होने वाली घटना) के रूप में देखा जाता है और इसे पृथ्वी की सतह पर बदलाव लाने वाले रचनात्मक बल की श्रेणी में रखा जाता है.

वहीं पर्यावरण भूगोल (environmental geography) इसे एक प्राकृतिक आपदा के तौर पर देखता है, क्योंकि इससे पारिस्थितिकी तंत्र और जान-माल का नुकसान होता है.

लावा और मैग्मा में अंतर

वैसे तो लावा और मैग्मा एक ही यौगिक का उल्लेख करते हैं, लेकिन स्थान और व्यवहार के आधार पर ये एक दूसरे से भिन्न होते हैं. मैग्मा पृथ्वी के भीतर मौजूद चट्टानों के पिघलने से बना गर्म तरल पदार्थ होता है और जब यह तरल पदार्थ गैसों के मिश्रण के साथ ज्वालामुखी से बाहर निकलता है तो लावा कहलाता है.

ज्वालामुखी कैसे फटता है?

ज्वालामुखी तब फटता है जब पृथ्वी के नीचे मौजूद पिघली हुई चट्टानें, जिन्हें मैग्मा कहा जाता है, सतह की तरफ उठती हैं. मैग्मा, पृथ्वी के आवरण (mantle) में चट्टानों के पिघलने से बनता है.

हमारी पृथ्वी की सतह पट्टियों की एक श्रृंखला में टूटी हुई है, जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है. जब ये टेक्टोनिक प्लेट्स एक दूसरे से दूर जाती हैं या एक दूसरे के नीचे स्लाइड करती हैं तो पृथ्वी के आवरण के पिघलने की प्रक्रिया शुरू होती है और मैग्मा बनता है.

मैग्मा चट्टानों से हल्का होता है इसलिए पृथ्वी की सतह की तरफ उठता है. जैसे ही मैग्मा सतह की तरफ उठता है तो इसमें गैस के बुलबुले बनते हैं. ऊपर की तरफ आता हुआ मैग्मा पृथ्वी की सतह पर टेक्टोनिक प्लेटों की सीमाओं पर बनी दरार या छिद्र से बाहर निकलना शुरू हो जाता है, जो लावा कहलाता है.

यदि मैग्मा गाढ़ा (thick) होता है तो गैस के बुलबुले आसानी से नहीं निकल पाते और मैग्मा के बढ़ने पर दबाव बढ़ता है. जब दबाव अत्यधिक ज्यादा बढ़ जाता है तो एक तेज विस्फोट होता है. यह विस्फोट खतरनाक और विनाशकारी हो सकता है.

विस्फोट होने का दूसरा कारण – जब सतह के नीचे का पानी गर्म मैग्मा के संपर्क में आता है तो भाप बनती है, यह भाप विस्फोट पैदा करने के लिए एक पर्याप्त दबाव बना सकती है.

ज्वालामुखी क्यों फटता है?

ज्वालामुखी फटने की वजह जानने से पहले हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा. पृथ्वी की सबसे ऊपरी सतह स्थलमंडल है, जिसमें भूपर्पटी और आवरण (mantle) शामिल होता है. पहाड़ी इलाकों में भूपर्पटी की मोटाई 10 किलोमीटर से लेकर 100 किलोमीटर तक की हो सकती है.

पृथ्वी की भूपर्पटी को आवरण सहित अलग-अलग भागों में वर्गीकृत किया गया है. इसमें शामिल ऊपरी आवरण 8-35 km से 410 km के बीच स्थित है. इसके बाद transition zone आता है जो 410 से 660 km तक और अंत में निचला आवरण आता है जो 660 km से 2891 km के बीच स्थित है.

मैग्मा पृथ्वी की ऊपरी परत की गहराई में और आवरण के ऊपरी भाग में बनता है. इन क्षेत्रों में तापमान (700° से 1,300° सेल्सियस के बीच) और दबाव बहुत ज्यादा होता है और इन तापमान और दबाव में बदलाव ही मैग्मा का निर्माण करता है. 

पृथ्वी के आवरण का ऊपरी भाग बहुत गर्म और ठोस चट्टान से बना होता है. ये चट्टान इतनी गर्म होती है कि किसी नरम च्युइंगम की तरह बह सकती है, भले ही वह ठोस हो. यदि इस तापमान के साथ कोई चट्टान पृथ्वी पर होती तो वह पिघली हुई अवस्था में होती. लेकिन आवरण में यह चट्टान नहीं पिघलती क्योंकि इस पर ऊपर मौजूद चट्टानों के कारण उच्च दबाव होता है.

मैग्मा का निर्माण

पृथ्वी के आवरण में (जहां मैग्मा बनता है) तापमान हमेशा एक जैसा रहता है. मैग्मा आमतौर पर दबाव कम होने की स्थिति में बनता है. इसलिए बहुत सारा मैग्मा अलग हो रही टेक्टोनिक प्लेटों की सीमाओं के बीच बनता है, जहां दबाव कम हो जाता है. मैग्मा, जहां ये बनता है, ठोस चट्टान की बजाय कम सघन (dense) होता है. इसलिए यह सतह की तरफ उठता है जिससे ज्वालामुखी फटता है.

ज्वालामुखी कहां फटता है?

हमारी पृथ्वी 17 ठोस टेक्टोनिक प्लेटों में विभाजित है. अधिकांश ज्वालामुखी टेक्टोनिक प्लेटों की सीमाओं पर पाए जाते हैं. उदाहरण के लिए प्रशांत महासागर के चारों ओर प्लेटों की सीमाओं पर कई ज्वालामुखी मौजूद हैं. इसलिए, इस क्षेत्र को “Ring of Fire” भी कहा जाता है.

याद रखें टेक्टोनिक प्लेट सीमाएं वे क्षेत्र हैं जहां प्लेटें एक दूसरे से दूर जाती हैं या टकराती हैं या एक-दूसरे के नीचे फिसलती हैं. ज्यादातर ज्वालामुखी वहां पाए जाते हैं जहां प्लेटें दूर जाती हैं या नजदीक आती हैं. लगभग 15 % सक्रिय ज्वालामुखी वहां मौजूद हैं जहां प्लेटें अलग हैं, और 80 % सक्रिय ज्वालामुखी वहां हैं जहां प्लेटें टकराती हैं. शेष ज्वालामुखी इन प्लेटों की सीमाओं से काफी दूर हैं जो हॉट स्पॉट पर उत्पन्न होते हैं.

टेक्टोनिक प्लेट्स के दूर होने पर मैग्मा का निर्माण

जब टेक्टोनिक प्लेटें अलग होती हैं तो अपसारी सीमा (divergent boundary) बनती है. इन प्लेटों के बीच एक गहरी दरार बनती है जिसे ‘Rift Zone’ कहा जाता है. इस जगह को भरने के लिए आवरण चट्टान ऊपर की तरफ उठती है. जब आवरण चट्टान सतह के नजदीक पहुंचती है तो दबाव कम हो जाता है. इस दबाव के कम होने की वजह से चट्टान पिघल जाती है और मैग्मा बनता है. मैग्मा, rift zone (दरार क्षेत्र) की तरफ बढ़ता है और ऊपर निकल आता है.

अधिकांश अपसरण सीमाएं समुद्री तल पर हैं. जब लावा समुद्र के नीचे रिफ्ट जोन से निकलता है तो ज्वालामुखियों और पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण होता है. इन ज्वालामुखियों और पर्वत श्रृंखलाओं को ‘मध्य महासागरीय कटक’ कहा जाता है.

टेक्टोनिक प्लेट्स के टकराने पर मैग्मा का निर्माण

जब टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं तो अभिसरण सीमा (convergent boundary) बनती है. जब एक समुद्री प्लेट किसी महाद्वीपीय प्लेट से टकराती है तब समुद्री प्लेट, महाद्वीपीय प्लेट के नीचे फिसल जाती है. इस प्रक्रिया को निम्नस्खलन (subduction) कहा जाता है. ऐसा होने पर समुद्री भूपर्पटी आवरण के भीतर धंस जाती है, क्योंकि यह महाद्वीपीय भूपर्पटी से अधिक सघन (dense) होती है.

जैसे ही समुद्री भूपर्पटी धंसती है तो तापमान और दबाव दोनों बढ़ जाते हैं. क्योंकि समुद्री भूपर्पटी समुद्र के नीचे बनती है इसलिए चट्टानों में बहुत सारा पानी मौजूद होता है. उच्च तापमान और दबाव की वजह से समुद्री भूपर्पटी से पानी अलग होने लगता है और यह पानी महाद्वीपीय प्लेट के ऊपर आवरण में मिल जाता है. अब आवरण में चट्टानें निम्नस्खलन क्षेत्र पर पिघलना शुरू कर देती हैं और मैग्मा का रूप ले लेती हैं. मैग्मा ऊपर सतह की तरफ बढ़ता है और ज्वालामुखी से लावा के रूप में बाहर निकलता है.

हॉट-स्पॉट ज्वालामुखी

यद्यपि अधिकांश ज्वालामुखी प्लेटों की सीमाओं पर बनते हैं, लेकिन सभी नहीं. कुछ ज्वालामुखी प्लेटों के मध्य हॉटस्पॉट पर भी उत्पन्न होते हैं, उदाहरण के लिए हवाई द्वीप. 

हॉटस्पॉट पृथ्वी की सतह पर उन जगहों को कहा जाता है जहां ज्वालामुखी प्लेटों की सीमाओं से बहुत दूर बनते हैं. ये असाधारण तौर पर गर्म केन्द्रों पर बनते हैं जिन्हें mantle plumes कहा जाता है. Mantle plumes का मतलब है :पृथ्वी के आवरण के भीतर मैग्मा का ऊपर उठना. वैज्ञानिक मॉडल में इन पिघले हुए चट्टान के plumes को लावा लैंप की आकृति में दिखाया गया है. जिसमें एक उभरता हुआ बल्बनुमा सिर होता है जिसके साथ एक लंबी संकरी पूछ होती है, जो आवरण से पैदा होती है.

जैसे ही plume head स्थलमंडल तक पहुंचता है, यह मशरूम के आकार में फ़ैल जाता है जिसका व्यास (diameter) लगभग 500 से 1000 किलोमीटर का होता है.

हॉटस्पॉट कैसे बनता है इसको लेकर अभी वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं. सबसे मुख्य सिद्धांत जिसे कनाडाई भूभौतिकीविद् J. Tuzo Wilson ने 1963 में पेश किया कि हॉटस्पॉट ज्वालामुखी खासकर पृथ्वी के आवरण के नीचे गहराई में स्थिर गर्म क्षेत्रों से बनते हैं.

हाल ही में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि ये गर्म स्थान पृथ्वी के आवरण में अधिक उथली गहराई पर हो सकते हैं और एक स्थान पर स्थिर रहने की बजाय भूगर्भिक समय के साथ धीरे-धीरे पलायन कर सकते हैं.

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि हॉटस्पॉट वहां बनते हैं जहां मैग्मा पृथ्वी की सतह में दरारों के माध्यम से ऊपर उठता है. एक अन्य सिद्धांत में कहा गया है कि हॉटस्पॉट ज्वालामुखी लंबी श्रृंखलाओं में बनते हैं, क्योंकि वे साथ में पृथ्वी की सतह पर दरारें उत्पन्न करते हैं.

वैज्ञानिक नहीं जानते कि इनमें से कौन-सा सिद्धांत सही है और कौन-सा गलत. हो सकता है कुछ हॉटस्पॉट plumes पर बनते हों और कुछ दरारों पर.

ज्वालामुखी का वर्गीकरण

ज्वालामुखी को मुख्यतः तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है:

  1. सक्रिय ज्वालामुखी
  2. प्रसुप्त या सुप्त ज्वालामुखी
  3. मृत या शांत ज्वालामुखी

सक्रिय ज्वालामुखी – ऐसा ज्वालामुखी जो वर्तमान में फट रहा है, या उसके जल्द ही फटने की आशंका है, या उसमें से धुआं, गैस या लावा निकलने और भूकंप आने के संकेत मिल रहे हैं तो उसे सक्रिय ज्वालामुखी कहा जाता है.

प्रसुप्त या सुप्त ज्वालामुखी –  ऐसे ज्वालामुखी जो लंबे समय से नहीं फटे हैं लेकिन भविष्य में उनके फटने की संभावनाएं होती हैं, उन्हें प्रसुप्त या सुप्त ज्वालामुखी कहा जाता है.

मृत या शांत ज्वालामुखी – वो ज्वालामुखी जो हजारों वर्ष पहले फट चुके हैं और भविष्य में उनके फटने की कोई संभावना नहीं है, मृत या शांत ज्वालामुखी कहलाते हैं.

ज्वालामुखी के प्रकार

ज्वालामुखी को पांच भागों में बांटा गया है:

  1. सिंडर शंकु
  2. संयुक्त ज्वालामुखी
  3. शील्ड ज्वालामुखी
  4. लावा गुबंद ज्वालामुखी
  5. पंक ज्वालामुखी या गारामुखी

सिंडर शंकु

सिंडर शंकु गोलाकार या अंडाकार शंकु होते हैं जो एक छिद्र से निकलने वाले जमे हुए लावा के छोटे टुकड़ों और बूंदों से बनते हैं. जैसे ही गैस के साथ लावा हवा में उछलता है तो यह छोटे टुकड़ों में टूट जाता है और ठोस अंगारों के रूप में छिद्र के चारों ओर गिरने लगता है. ज्यादातर सिंडर शंकु के मुख शिखर पर कटोरे के आकार में (bowl-shaped) होते हैं. अधिकांश सिंडर शंकु एक बार ही फटते हैं. ये बड़े ज्वालामुखी के बगल में छिद्र के रूप में या अपने आप बन सकते हैं.

संयुक्त ज्वालामुखी

संयुक्त ज्वालामुखी,जिन्हें ‘stratovolcanoes’ भी कहा जाता है, खड़े किनारों वाले ज्वालामुखी होते हैं जो ज्वालामुखीय चट्टानों की कई परतों से बने होते हैं. ये आमतौर पर अधिक गाढ़ा और चिपचिपा लावा, राख और चट्टानों के मलबे से बने होते हैं. ये ज्वालामुखी ऊँचे शंक्वाकार पर्वत होते हैं जो लावा प्रवाह और अन्य निकलने वाले द्रव्य से बनी परतों से बनते हैं, इन्हें strata कहा जाता है जिससे stratovolcanoes नाम का उद्गम हुआ.

संयुक्त ज्वालामुखी लावा से निकले टुकड़ों (अंगारे), राख और लावा से मिलकर बनता है. ये ठोस टुकड़े और राख एक दूसरे पर इक्कठे होकर ढेर बनाते हैं जहां लावा इनके ऊपर से बहता है और ठंडे होने के बाद ये कठोर हो जाते हैं. इस तरह ये प्रक्रिया चलती रहती है और लेयर बनती रहती हैं. संयुक्त ज्वालामुखी अत्यंत भयावह हो सकते हैं और विनाशकारी विस्फोट कर सकते हैं.

शील्ड ज्वालामुखी

शील्ड ज्वालामुखी का आकार बीच से किसी कटोरे या शील्ड (ढाल) की तरह होता है जो लंबी कोमल ढलानों के साथ बेसाल्टिक लावा प्रवाह से बना होता है. ये कम गाढ़े (thin) लावा के साथ फटते हैं जो छिद्र से लंबी दुरी तक फैल सकते हैं. ये आमतौर पर भयावह रूप से नहीं फटते. इनमें लावा कम मोटा होने की वजह से सिलिका कम होता है. शील्ड ज्वालामुखी महाद्वीपीय क्षेत्रों की बजाय महासागरीय क्षेत्रों में अधिक बनता है. हवाई ज्वालामुखी शील्ड ज्वालामुखी की ही एक श्रृंखला है और ये आइसलैंड में भी आम हैं.

लावा गुंबद ज्वालामुखी

लावा गुंबद तब उत्पन्न होता है जब प्रस्फुटित लावा बहुत गाढ़ा (thick) हो. यह ज्वालामुखी, छिद्र के पास लावा के ढेर के रूप में खड़े किनारों वाला टीला बनाता है. यह अधिक गाढ़े और चिपचिपे लावा के धीमे विस्फोट से बनता है. कई बार यह पहले हो चुके ज्वालामुखीय विस्फोट के मुख के साथ उत्पन्न हो जाता है. इस तरह के ज्वालामुखी संयुक्त ज्वालामुखी की तरह हिंसक और भयावह विस्फोट कर सकते हैं, लेकिन इनसे निकले वाला लावा ज्यादा दूर तक नहीं फैलता.

गारामुखी या पंक ज्वालामुखी

गारामुखी उन ज्वालामुखी को कहा जाता है जहां पृथ्वी के नीचे गर्म द्रव और गैस उभरकर धरातल पर एक टीले का निर्माण करते हैं और इसके मुख से गारा (गीली मिट्टी) और मलबा बाहर निकलता है. इन्हें ज्वालामुखी की श्रेणी में ही रखा जाता है, हालाँकि इनसे लावा नहीं निकलता है और तापमान ज्वालामुखियों से कम होता है. पूरे विश्व में 700 गारामुखी ज्ञात है. सबसे ऊँचे गारामुखी की ऊंचाई लगभग 700 मीटर है जो 10 किलोमीटर व्यास (diameter) में फैला हुआ है. इन ज्वालामुखियों से निकलने वाला अधिकतर द्रव पानी होता है. इनसे निकलने वाली गैसों में 85% मीथेन और अन्य गैसें कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन शामिल होती हैं.

ज्वालामुखी विस्फोट क्या है?

जैसा कि हम जानते हैं, ज्वालामुखी के फटने पर एक गर्म तरल पदार्थ बाहर निकलता है जिसमें लावा, गैस और राख शामिल होती है. यह पदार्थ भूमि के नीचे आवरण में चट्टानों के पिघलने पर मैग्मा के रूप में जमा होता है. जब ज्वालामुखी से निकलने वाला यह मैग्मा अधिक मोटा (thick) हो जाता है तो गैस के बुलबुले आसानी से नहीं निकल पाते और मैग्मा बढ़ता जाता है, जिससे दबाव भी बढ़ने लगता है. जब दबाव अत्यधिक ज्यादा हो जाता है तो एक बड़े विस्फोट के साथ मैग्मा ज्वालामुखी छिद्र से बाहर निकलता है, जिसे ज्वालामुखी विस्फोट कहा जाता है.

ज्वालामुखी में होने वाले विस्फोट बहुत भयंकर भी हो सकते हैं जिनकी आवाज हजारों किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है. ऐसा ही एक विस्फोट 26 अगस्त, 1883 को इंडोनेशिया के क्राकाटोवा में हुआ था जिसकी आवाज वहां से लगभग 4800 किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया में सुनाई दी थी. 

यदि ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ में गैस कम और लावा अधिक होता है तो विस्फोट से ज्यादा आवाज नहीं आती. ये शांत किस्म के ज्वालामुखी होते हैं. इसका उदाहरण हवाई द्वीप का मोनालोवा ज्वालामुखी है. इनसे लावा अधिक मात्रा में निकलता है और ज्वालामुखी छिद्र से काफी दूर तक फैल जाता है. सन 1979 में इटली के पोम्पेई शहर के पास होने वाला विसुवियस ज्वालामुखी विस्फोट इसी प्रकार का था. इस ज्वालामुखी से निकले लावा ने पूरे पोम्पेई शहर को ढक दिया था. बाद में की गई खुदाई से इस नगर के प्राचीन अवशेष मिले, जिनमें नीचे छिपे अस्थि पंजर और अन्य कई तरह के उपयोग में लाए जाने वाले सामान शामिल थे.

ज्वालामुखी विस्फोट के प्रकार

ज्वालामुखी विस्फोट के प्रकार कई कारकों पर निर्भर करते हैं, जैसे कि मैग्मा का रसायन, मैग्मा का तापमान और गाढ़ापन, भूमिगत जल की मौजूदगी, पानी और गैस सामग्री. ज्वालामुखी विस्फोट के विभिन्न प्रकारों को नीचे दर्शाया गया है.

हाइड्रोथर्मल विस्फोट – इस प्रकार के विस्फोटों में केवल गैस शामिल होती है और लावा नहीं निकलता. ये जलतापीय प्रणाली में बनी हीट के कारण उत्पन्न होते हैं.

स्ट्रोम्बोलियन और हवाईयन विस्फोट – हवाईयन विस्फोट उन विस्फोटों को कहा जाता है जिनसे आग की बौछार होती है और स्ट्रोम्बोलियन विस्फोट वो होते हैं जिनसे लावा से बने छोटे टुकड़े निकलते हैं. 

फ्रेटोमैग्मैटिक विस्फोट – इस तरह के विस्फोट तब होते हैं जब नवनिर्मित मैग्मा और पानी एक दूसरे के संपर्क में आते हैं.

फ्रेटिक विस्फोट – ये विस्फोट तब उठते हैं जब मैग्मा की हीट पानी के साथ इंटरैक्ट करती है. इस तरह के विस्फोटों से पानी, वाष्प, राख और लावा निकलता है.

वल्केनियन विस्फोट – इस तरह के विस्फोट थोड़े समय के लिए होते हैं और 20 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुँच सकते हैं.

ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ

आमतौर पर एक ज्वालामुखी से तीन तरह के पदार्थ निकलते हैं:

  • तरल पदार्थ
  • गैस एवं जलवाष्प
  • ठोस पदार्थ

गैस एवं जलवाष्प – ज्वालामुखी के प्रस्फुटन के साथ कई तरह की गैसें निकलते हैं जिनमें जलवाष्प एवं कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया क्लोराइड इत्यादि शामिल होती हैं. 

ठोस पदार्थ – ज्वालामुखी के लावा से बने अंगारे (cinders), राख, मिट्टी इत्यादि ठोस पदार्थ निकलते हैं 

तरल पदार्थ – पृथ्वी के नीचे आवरण में चट्टानों के पिघलने से बना तरल पदार्थ मैग्मा कहलाता है. जब ये मैग्मा ज्वालामुखी से बाहर आ जाता है तो इसे लावा कहा जाता है. 

ज्वालामुखी के प्रस्फुटन के साथ ही सबसे पहले गैसें पृथ्वी की सतह से बाहर निकलती हैं. इन गैसों में सबसे अधिक मात्रा वाष्प की पाई जाती है. इसके साथ ही कुछ ठोस पदार्थ जैसे चट्टानों के टुकड़े, धुल कण और राख बाहर निकलती है. प्रस्फुटन के दौरान गैस की उच्च तीव्रता के कारण ठोस पदार्थ काफी ऊंचाई तक उछलते हैं, और जब गैस की तीव्रता कम हो जाती है तो ये धरातल पर वापस गिरने लगते हैं. प्रस्फुटन के दौरान जो पिघला हुआ तरल पदार्थ बाहर आता है उसे लावा कहा जाता है.

भारत के ज्वालामुखी

बैरन द्वीप – यह भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है, जो लगभग 3 किलोमीटर तक फैला है. वर्ष 2017 में इस ज्वालामुखी से फिर से लावा निकलते हुए देखा गया. इससे पहले यह मई 2005 में फटा था. यह द्वीप अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से लगभग 138 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में बंगाल की खाड़ी में स्थित है.

यह केवल भारत  ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया का भी एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है. ये ज्वालामुखी वहां पाए जाते हैं जहां टेक्टोनिक प्लेटों में अधिक दबाव होता है या भूमि के नीचे अधिक गर्मी होती है. इस द्वीप पर पहला ज्वालामुखी 1787 में फटा था. इसके बाद से यहां 10 बार ज्वालामुखी फट चुके हैं. बैरन का मतलब होता है: बंजर, अर्थात जहां कोई न रहता हो. इस द्वीप पर भी कोई नहीं रहता, इसलिए इसे बैरन द्वीप के नाम से पुकारा जाता है. यह संयुक्त ज्वालामुखी का रूप है.

दक्कन ट्रैप – दक्कन उद्भेदन या दक्कन ट्रैप भारत के पश्चिम हिस्से में स्थित एक प्रदेश है. इस स्थान पर कई वर्षों पहले एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था जिससे बेसाल्ट चट्टानें बनी और इनपर काली रेगुर मिट्टी का निर्माण हुआ. लावा निकलने की वजह से बनी इस मिट्टी को ‘लावा मिट्टी’ भी कहा जाता है. इसे विश्व के कुछ सबसे बड़े ज्वालामुखी निर्मित स्थलरूपों में गिना जाता है.

बाराटांग द्वीप – जिसे बाराटांग के नाम से भी जाना जाता है, बंगाल की खाड़ी में स्थित भारत के अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में अंडमान द्वीपसमूह का एक द्वीप है. इस द्वीप पर गारामुखी ज्वालामुखी पाया गया, जो वर्ष 2003 से सक्रिय है. 

नर्कोंदम द्वीप – यह द्वीप भारत के अंडमान द्वीप समूह का एक द्वीप है. यह भारत का सबसे शुरुआती द्वीप है, जिसकी मुख्य चोटी की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 710 मीटर है. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने इसे प्रसुप्त ज्वालामुखी के श्रेणी में वर्गीकृत किया है, क्योंकि यह सैंकड़ो वर्षों से शांत है.

धनोधर पहाड़ी – ये पहाड़ियां भारत के गुजरात राज्य में कच्छ जिले में मौजदू नानी अरल गाँव के नजदीक स्थित कुछ पहाड़ियां हैं. यहां मृत ज्वालामुखी पाई जाती है यानी निष्क्रिय ज्वालामुखी. इसकी ऊंचाई लगभग 386 मीटर के करीब है.

धोसी पहाड़ी – धोसी पहाड़ी एक सुप्त ज्वालामुखी है जो अरावली पर्वत श्रृंखला के अंतिम छोर पर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में मौजूद है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 740 मीटर है. महाभारत और पुराण जैसे धार्मिक ग्रन्थों में भी इस पहाड़ी का उल्लेख किया गया है. भले ही यह एक सुप्त ज्वालामुखी की संरचना के साथ मौजूद है, लेकिन भूगर्भशास्त्री इसे सुप्त ज्वालामुखी मानने से इनकार करते हैं. उनके अनुसार यहां पिछले 2 मिलियन सालों से किसी तरह का ज्वालामुखी विस्फोट नहीं हुआ है, इसलिए इसे ज्वालामुखी संरचना मानना उचित नहीं है.

विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी

विश्व के कुछ प्रमुख ज्वालामुखी के नाम इस प्रकार हैं: 

ज्वालामुखीस्थितिस्थान
माउंट कोटोपैक्सी सक्रियइक्वाडोर
माउंट एटनासक्रिय इटली
विसुवियस सुषुप्तइटली 
किलिमंजारोशांततंजानिया
मोनालोआसक्रियहवाई द्वीप
फ्यूजीयामा सक्रियजापान
क्राकाताओशांतइंडोनेशिया
माउंट रेनियरसक्रियसंयुक्त राज्य अमेरिका
माउंट किलाउआसक्रियसंयुक्त राज्य अमेरिका
पोप शांतम्यांमार
माउंट कैमरून सक्रियअफ्रीका
मेयानासक्रियफिलीपींस
एलबुर्जप्रसुप्तजॉर्जिया
माउंट एर्बुश सक्रियअंटार्कटिका
स्ट्रांबोलीसक्रिय 
चिम्बोराजो शांत इक्वाडोर
एल मिस्टीप्रसुप्तपेरू
माउंट पीनटूबोसक्रियफिलीपींस
कटमईसक्रियअलास्का
बैरेन द्वीप का ज्वालामुखीसक्रियअंडमान व निकोबार द्वीप समूह
नारकोंडम द्वीप का ज्वालामुखीसुषुप्तअंडमान व निकोबार द्वीप समूह
एकांकागुआ शांत दक्षिण अमेरिका
माउंट दमावंदशांत ईरान
कोह शांत ईरान

ज्वालामुखी से जुड़े FAQ

विश्व का सबसे बड़ा ज्वालामुखी कौन-सा है?

माउना लोआ दुनिया का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है.

एशिया का सबसे बड़ा ज्वालामुखी कौन-सा है?

माउंट दमावंद एशिया का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है.

ज्वालामुखी की परिभाषा क्या है?

ज्वालामुखी, पृथ्वी की सतह पर एक दरार या छिद्र होता है जिससे पृथ्वी की नीचे मौजूद लावा, गैस और राख सहित एक गर्म तरल पदार्थ बाहर निकलता है. 

विश्व के सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी कहाँ मौजूद हैं?

विश्व के सबसे उच्च सक्रिय ज्वालामुखी हवाई में माउंट किलाउआ में पाए जाते हैं.

Conclusion

उम्मीद करता हूँ आपको मेरा यह लेख “ज्वालामुखी क्या है और कैसे फटता है | ज्वालामुखी के प्रकार” जरूर पसंद आया होगा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है Volcano in Hindi से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े.

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Rahul Chauhan
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Rahul Chauhan, Hindivibe के Author और Founder हैं. ये एक B.Tech डिग्री होल्डर हैं. इन्हें विज्ञान और तकनीक से संबंधित चीजों के बारे में जानना और लोगों के साथ शेयर करना अच्छा लगता है. यह अपने ब्लॉग पर ऐसी जानकारियां शेयर करते हैं, जिनसे कुछ नया सिखने को मिले और लोगों के काम आए.

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