Homeइनफॉर्मेटिवMutual Fund क्या है? जानें इसके फायदे और नुकसान के बारे में

Mutual Fund क्या है? जानें इसके फायदे और नुकसान के बारे में

अगर आप शेयर बाजार में पैसा लगाना चाहते हैं, लेकिन इसमें एक्सपर्ट नहीं हैं, तो आप म्यूचुअल फंड में निवेश कर मुनाफा कमा सकते हैं. अगर आप नहीं जानते हैं कि Mutual Fund क्या है (What is Mutual Fund in Hindi)? तो आज का यह लेख आपके लिए काफी खास होने वाला है. क्योंकि आज इस लेख में आपको Mutual Fund से जुड़ी वो तमाम बेसिक जानकारियां दी जाएंगी, जिन्हें समझने के बाद आप म्यूचुअल फंड के बारे में अच्छे से जान जाएंगे.

म्यूचुअल फंड में किसी अकेले व्यक्ति का नहीं, बल्कि कई लोगों का पैसा एक साथ निवेश किया जाता है और इस निवेश से होने वाले फायदे को भी सभी लोगों में बराबर बांटा जाता है. यह सब कैसे होता है? चलिए जानते हैं पूरी जानकारी.

Mutual Fund क्या है? What is Mutual Fund in Hindi

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म्यूचुअल फंड क्या है?

Mutual Fund क्या है? यह जानने से पहले हमें Mutual और Fund दोनों शब्दों के अलग-अलग अर्थ को समझना होगा. Mutual का अर्थ है; ‘पारस्परिक’ अर्थात आपस का और Fund का अर्थ है ‘रकम’ या ‘पूँजी’. यानी दोनों को मिलाकर बनता है “पारस्परिक रकम” – वो रकम या पूंजी जो कई लोगों द्वारा आपस में मिलकर एकत्रित की जाती है.

दरअसल, म्यूचुअल फंड में कई सारे लोगों का पैसा मिलाकर या सामूहिक रूप से शेयर बाजार या निवेश योजनाओं में निवेश किया जाता है. इस निवेश से होने वाले मुनाफे को, NAV (Net Asset Value) कैलकुलेट कर लागू खर्चों और लेवी को घटाने के बाद, सभी निवेशकों में समान रूप से बांट दिया जाता है.

म्यूचुअल फंड के तहत एकत्रित किए गए पैसों को एक योजनाबद्ध तरीके से निवेश किया जाता है. पैसा कैसे, कहां और कितना निवेश करना है, यह फैसला विशेषज्ञ लोगों की एक टीम करती है. इस टीम का नेतृत्व एक फंड मैनेजर द्वारा किया जाता है, जिसके दिशा निर्देशों पर टीम कार्य करती है. टीम में मार्केट और शेयर बाजार को समझने वाले प्रोफेशनल्स शामिल होते हैं, जो निवेश करने से पहले कंपनियों और उनके शेयरों के पिछले रिकॉर्ड और आगे की संभावनाओं का अध्ययन करते हैं, ताकि निवेशकों को कम-से-कम नुकसान हो और अच्छा रिटर्न मिल सके.

इस प्रकार Mutual Funds में बड़ी-बड़ी कीमत वाली निवेश योजनाओं में भी, कम पैसे लगाकर निवेश का लाभ प्राप्त किया जा सकता है.

आइए Mutual Funds को एक साधारण से उदाहरण के साथ और अच्छे से समझने का प्रयास करते हैं:

मान लीजिए 50 टॉफियों का एक बॉक्स है, जिसकी कीमत 100 रुपए है. यहां टॉफियों से जुड़ी एक शर्त है कि यदि कोई टॉफी खरीदना चाहता है, तो उसे पूरा बॉक्स ही खरीदना होगा. अब पांच दोस्त हैं जो इन टॉफियों को खरीदना चाहते हैं, लेकिन उनमें कोई इतना सक्षम नहीं है कि अकेले पूरे बॉक्स को खरीद सके. ऐसे में सभी पांचों दोस्त मिलकर पैसे इकट्ठा करते हैं, जहां प्रत्येक के हिस्से में 20 रुपये आते हैं और इस बॉक्स को खरीद लेते हैं.

अब यदि म्यूचुअल फंड के बराबर किया जाए, तो सबके सहयोग के आधार पर प्रत्येक दोस्त को 10 टॉफियां या 10 यूनिट प्राप्त होगी. 

अब यदि एक यूनिट की कीमत निकालनी हो तो हम कुल राशि को कुल टॉफियों की संख्या से भाग देंगे: 100/50 = 02. यानी एक टॉफी या यूनिट की कीमत होती है 2 रुपए.

अब यदि आप यूनिट की संख्या (10) को प्रति यूनिट की कीमत से गुणा करते हैं, तो आपको 20 रुपये का शुरूआती निवेश मिलता है.

परिणामस्वरूप, प्रत्येक दोस्त टॉफियों के बॉक्स में एक यूनिट धारक होता है, जो सामूहिक रूप से उन सभी के स्वामित्व में होता है और प्रत्येक व्यक्ति बॉक्स का एक हिस्सा होता है.

Mutual Fund Unit क्या है?

एक म्यूचुअल फंड में जमा कुल रकम से शेयर, बांड्स, ट्रेज़री बिल्स या अन्य कई प्रतिभूतियों (securities) में निवेश किया जाता है. इसके बाद इस कुल निवेश को कई हिस्सों में बांट दिया जाता है और इसका जो एक हिस्सा होता है, उसे एक यूनिट के नाम से जाना जाता है. यहां ध्यान देना चाहिए कि म्यूच्यूअल फंड यूनिट किसी विशेष प्रतिभूति जैसे शेयर या बोंड के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. यह कोष के भीतर सभी तत्वों के कलेक्शन को ठीक उसी अनुपात में दर्शाता है, जिससे इसे बड़े पैमाने पर तैयार किया गया है.

इस उदाहरण से यह और स्पष्ट हो जाएगा:

मान लीजिए एक म्यूचुअल फंड XYZ है. इसका 10% निवेश stock A में किया गया है, 20% निवेश stock B में किया गया है, 20% गवर्मेंट बांड्स में, 20% कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में, 5% stock C में, 10% stock D में, 10% कैश डेरिवेटिव्स में और 5% ट्रेज़री बिल में. तो इस म्यूच्यूअल फंड की एक यूनिट, इन सभी प्रतिभूतियों के स्वामित्व को ठीक इसी प्रतिशत में दिखाएगी. वहीं सभी निवेशकों को रिटर्न भी मिले जुले प्रदर्शनों के आधार पर मिलेगा.

इसलिए जो व्यक्ति Mutual Fund की यूनिट का स्वामी होता है, वह पूर्ण रूप से किसी एक कंपनी के stocks या अन्य प्रतिभूति (security) का स्वामी नहीं होता है. बल्कि, उनका धन एक फंड कंपनी के माध्यम से प्रत्येक प्रतिभूति के लिए आनुपातिक रूप से निवेश किया जाता है. 

इसका सबसे खास फायदा यह है कि निवेशक अपने पास यूनिटों के आधार पर, इस तरह के विविध पोर्टफोलियो को चलाकर, बिना किसी बड़े निवेश के वांछित लाभ प्राप्त कर सकता है.

आमतौर पर, म्यूचुअल फंड्स open ended होते हैं, इसलिए जब कोई निवेशक निवेश करना चाहता है तो फंड कंपनियां नई यूनिट्स या शेयर्स जारी कर देती हैं. जबकि close ended फंड्स इसके पूरी तरह से विपरीत होते हैं, जहां यूनिटों की संख्या सीमित होती है. कोई निवेशक अपने द्वारा निवेश की जाने वाली निवेश राशि के अनुसार यूनिट खरीद सकता है, जो आमतौर पर 500 रुपए से शुरू होती है.

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Net Asset Value (NAV) क्या है?

म्यूचुअल फंड में जब किसी एक यूनिट की value तय की जाती है, तो उसे Net Asset Value (एनएवी) कहा जाता है. इसी NAV के आधार पर किसी म्यूचुअल फंड योजना (mutual fund scheme) की performance का आकलन किया जाता है. म्यूचुअल फंड कंपनियों द्वारा समय-समय पर NAV की घोषणा की जाती है.

इसे आप इस उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आप Mutual Fund में निवेश करना चाहते हैं और आपके पास 20 रुपए हैं. आप इन 20 रुपयों में NFO के समय म्यूचुअल फंड की एक यूनिट खरीद लेते हैं. तो NFO period के दौरान इस म्यूचुअल फंड की नेट एसेट वैल्यू (NAV) 20 रुपए है.

अब मान लेते हैं, आप ही की तरह 9 और लोग इस Mutual Fund में invest करते हैं और एक-एक यूनिट खरीद लेते हैं. इस प्रकार mutual fund scheme कुल 10 यूनिट बेचकर 200 रुपये का कलेक्शन कर लेती है.अब उस म्यूचुअल फंड का fund manager इन 200 रुपयों में कुछ shares खरीद लेता है.

मान लेते हैं, एक साल बाद निवेश किए गए इन 200 रुपयों की कीमत 300 रुपए हो जाती है. तो अब यहां एक यूनिट की कीमत हो जाती है 300/10 = 30 रुपए. यानी एक यूनिट की Net Asset Value (NAV) हो गई 30 रुपए.

अब मान लेते हैं कि 5 और लोग इस म्यूचुअल फंड योजना में invest करना चाहते हैं. लेकिन अब इस योजना की एक यूनिट की वैल्यू (NAV) 30 रुपए हो चुकी है. इसलिए यदि उनमें से प्रत्येक एक यूनिट खरीदना चाहता है, तो उन्हें एक यूनिट के लिए 30 रुपए देने होंगे. कंपनी इन पांचों लोगों को यूनिट बेचकर 150 रुपए और इकट्ठा कर लेती है. अब कंपनी के पास कुल पैसे हो जाते हैं 300+150 = 450 रुपए. लेकिन यहां यूनिटों की संख्या 15 हो जाती है.

कोई भी Mutual Fund Company रकम बढ़ाने के लिए नै यूनिट जारी कर सकती है. ऐसा करने पर पुराने निवेशकों के निवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि नए निवेशकों को ये यूनिटे नई कीमत पर दी जाती हैं.

Mutual Fund से संबंधित कुछ अन्य Terms

NFO (New Fund Offer)

जब मार्केट में कोई नई Mutual Fund Scheme लॉन्च की जाती है तो इस समय को NFO या New Fund Offer कहा जाता है. लॉन्च होने वाले हर फंड को एक नाम दिया जाता है और इस नाम के साथ फंड का प्रचार-प्रसार किया जाता है. इसके साथ ही Mutual Fund कंपनियां NFO का विवरण पत्र (prospectus) भी जारी करती हैं. इस विवरण पत्र में फंड के उद्देश्य और फंड मैनेजमेंट टीम के बारे में जानकारी दी गई होती है.

NFO के दौरान किसी म्यूचुअल फंड की कीमत 10 रुपए रखी जाती है. यानी आप शुरुआत में 10 रुपए देकर एक यूनिट खरीद सकते हैं. NFO की अवधि में आपके पैसे को कंपनी किसी निवेश में नहीं लगाती, यानी कोई शेयर नहीं खरीदती. जब NFO period खत्म हो जाता है, तो आपका fund manager सामूहिक रकम (pooled money) में निवेश (invest) शुरू करता है.

इसके बाद कुल निवेश (total investment) की रकम में जो भी बढ़ोतरी या कमी होती है, उसके हिसाब से आपकी यूनिट की कीमत भी बढ़ती-घटती रहती है.

Asset Management Company (AMC)

जितनी भी Mutual Fund चलने वाली कंपनियां होती हैं, उन्हें Asset Management Companies या AMC कहा जाता है. असल में, AMCs सेबी (SEBI) में रजिस्टर्ड वे कंपनियां होती हैं, जो mutual fund schemes बनाती हैं और लोगों से पैसा जमा करती हैं.

Fund Manager

प्रत्येक Asset Management Company फंड मैनेजर को नियुक्त करती है, जिसकी जिम्मेदारी fund scheme में पैसा निवेश करने की होती है. एक म्यूचुअल फंड कंपनी के पास कई fund managers होते हैं. इसके अलावा कंपनी के पास एक रिसर्च टीम भी होती है, जो निवेश की रणनीति बनाती है.

Mutual Fund Schemes

एक Mutual Fund Company या AMC कई mutual funds schemes चलाती है. हर स्कीम में निवेश का उद्देश्य अलग होता है. जैसे कि किसी एक स्कीम के तहत कंपनी सिर्फ बड़ी कंपनियों के shares में निवेश करती है तो किसी दूसरी स्कीम के तहत छोटी कंपनियों के shares में निवेश करती है. किसी तीसरी स्कीम के तहत कंपनी केवल government bonds में पैसा निवेश कर सकती है. इस तरह से कंपनियां कई प्रकार की mutual funds schemes का संचालन करती हैं.

Mutual Funds की श्रेणियां

निवेश और पैसा निकालने की flexibility को ध्यान में रखते हुए म्यूचुअल फंड्स को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:

1. Open-Ended Mutual Fund Scheme

2. Close-Ended Mutual Fund Scheme

Open-Ended Mutual Fund Scheme

इस फंड स्कीम के तहत investor अपनी इच्छा से कभी भी पैसा निकाल सकते हैं और लगा सकते हैं. इस तरह की फंड योजना में पैसा आता-जाता रहता है, इसलिए किसी तरह की फिक्स्ड राशि जमा नहीं होती. ऐसे में fund manager को परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निवेश का फैसला लेना होता है.

Close-Ended Mutual Fund Scheme

इस फंड योजना में आप केवल NFO के समय ही पैसा लगा सकते हैं. NFO यानी New Fund Offer – मार्केट में किसी नई योजना के लॉन्च करने का समय. इसके बाद सिर्फ maturity पर ही पैसा निकाल सकते हैं. क्लोज एंडेड म्यूचुअल फंड स्कीम की units को आप किसी secondary मार्केट में खरीद या बेच सकते हैं. 

इस तरह के लेन-देन से म्यूचुअल फंड कंपनी का कोई संबंध नहीं होता और ना ही इससे mutual fund scheme में जमा रकम पर कोई प्रभाव पड़ता है. किसी म्यूचुअल फंड योजना (mutual fund scheme) के NFO से पहले asset management company (AMC) को तय करना होता है कि वे Open-Ended Mutual Fund Scheme ला रहे हैं या Close-Ended Mutual Fund Scheme.

Mutual Fund के प्रकार – Types of Mutual Fund in Hindi

इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो के आधार पर म्यूचुअल फंड को कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है. SEBI द्वारा Mutual Funds को जिन पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है, वो कुछ इस प्रकार हैं:

Equity Fund

इस फंड का अधिकतम पैसा शेयर्स (shares) में लगाया जाता है, जो कुल रकम का लगभग 65% होता है. बाकि बचे पैसे बॉन्ड्स या अन्य प्रतिभूतियों (securities) में लगाए जाते हैं. ज्यादातर रकम शेयर खरीदने में invest होती है, इसलिए इनका return भी शेयर मार्केट के हिसाब से मिलता है. इसमें अधिक लाभ होने की संभावना तो होती है, लेकिन रिस्क भी सबसे ज्यादा होता है. इस तरह के फंड से होने वाली कमाई पर long term capital gain tax नहीं लगता है. इसमें short term capital gain को कमाई में जोड़कर टैक्स कैलकुलेट किया जाता है.

Debt Fund

इस प्रकार के फंड में ज्यादातर पैसा बॉन्ड्स और कॉरपोरेट फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश किया जाता है. Debt Mutual Fund में शर्त रखी जाती है कि इस फंड का कम से कम 65% हिस्सा bonds या bank deposits में invest किया जाए. जैसे कि bank deposits, company bonds, government bonds, corporate fixed deposits इत्यादि. बाकी बची रकम को शेयरों में invest किया जाता है.

इसमें equity fund की तुलना में कम फायदा होता है. लेकिन bank fixed deposits की जगह ये बेहतर रिटर्न दे सकते हैं. चूंकि इनमें अधिकतर पैसा fixed return देने वाले बॉन्ड्स में निवेश किया जाता है, इसलिए तुलनात्मक रूप से रिस्क भी कम होता है. यदि आप debt fund को तीन साल बाद redeem करते हैं तो आपको long term capital gain tax देना पड़ता है, जिसकी indexation के बिना दर 10 प्रतिशत होगी और indexation के साथ 20 प्रतिशत.

दूसरी तरफ,यदि आप तीन वर्ष से पहले अपने debt fund की units को बेच देते हैं, तो इससे हुई कमाई पर आपको short term capital gain tax देना होगा. इस tax को आपकी कुल आमदनी में जोड़ा जाएगा और फिर आपके टैक्स स्लैब के according टैक्स को कैलकुलेट किया जाएगा.

Balanced Mutual Fund

बैलेंस्ड म्यूचुअल फंड में आपके पैसे को bonds और shares दोनों में निवेश किया जाता है. इस तरह के फंड में safety के साथ अच्छे return की उम्मीद होती है. जैसा कि हम जानते हैं, shares में return ज्यादा मिलता है लेकिन यह रिस्की होता है. वहीं bonds में return कम मिलता है, लेकिन यह shares के मुकाबले सुरक्षित होता है. इसलिए balanced mutual fund में दोनों का मिलाजुला असर देखने को मिलता है.

यानी ये फंड्स, शेयर में ज्यादा पैसा लगाने वाले equity funds के मुकाबले कम रिटर्न देते हैं, जबकि bonds में ज्यादा पैसा लगाने वाले debt funds से कम सुरक्षित होते हैं. यदि मार्केट में अच्छा समय चल रहा है तो आपको यहां equity funds की तरह हाई रिटर्न नहीं मिल पाएगा और यदि समय बुरा चल रहा है तो आपको खराब रिटर्न भी नहीं मिलेगा. इन फंड्स की टीम balanced approach के साथ, मार्केट की स्थिति को समझते हुए shares और bonds में निवेश करती है.

Tax Saving Mutual Funds (ELSS)

टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड्स को Equity Linked Saving Schemes (ELSS) के नाम से भी जाना जाता है. चूंकि ELSS में लगाए गए पैसों पर सरकार छूट देती है, इसलिए ये फंड्स tax saving mutual funds के नाम से अधिक जाने जाते हैं. यदि आप ELSS में पैसा invest करते हैं तो लगभग 3 साल तक आप इस पैसे को निकाल नहीं सकते, यानी 3 सालों के लिए आपका पैसा लॉक हो जाएगा.

इस तरह के फंड का ज्यादातर पैसा शेयरों में लगाया जाता है, इसलिए इनमें अच्छे रिटर्न मिलने की संभावनाएं अधिक होती है. लेकिन ये equity funds की तरह risky भी होते हैं. इनकम टैक्स के section 80C के तहत ELSS में निवेश करने वालों की टैक्स देनदारी घाट जाती है. निवेशक (investors) जितना निवेश ELSS में करेंगे, उतना पैसा उनकी taxable income से कम कर दिया जाएगा. 

ELSS के अलावा EPF contribution, tax saving FD, insurance, NSC, home loan principal इत्यादि भी section 80C के तहत टैक्स छूट के हकदार होते हैं. बताए गए अन्य टैक्स सेविंग निवेशों के मुकाबले ELSS में लॉक इन पीरियड सबसे कम होता है. यानी Tax Saving Mutual Funds उन लोगों के लिए बेहतर विकल्प है, जो कम समय के लिए पैसा निवेश करके अधिक टैक्स बचाना चाहते हैं. 

Index Fund

इस फंड में भी अन्य equity funds की तरह shares में पैसा निवेश किया जाता है. फर्क इतना है कि यह equity funds की तरह अपने हिसाब से चुने गए shares में पैसा नहीं लगाता. बल्कि बाजार सूचकांक, जैसे निफ्टी, सेंसेक्स सीएनएक्स 500 इत्यादि, के structure की नकल करता है.

इन सूचकांकों में कुछ निश्चित कंपनियों के शेयर शामिल होते हैं और प्रत्येक शेयर का उस सूचकांक में एक फिक्स्ड weight-age होता है. जब कोई इंडेक्स फंड किसी सूचकांक को फॉलो करता है, तो वह उसमें शामिल सभी shares में निवेश करता है. शेयरों में पैसा, सूचकांक में दिए गए weight-age के अनुपात में लगाया जाता है.

जिस सूचकांक के पोर्टफोलियो को index fund फॉलो करता है, यह रिटर्न भी उस सूचकांक की तरह ही देगा. हालांकि, कई बार index fund हुबहू रिटर्न देने में असफल हो जाता है. क्योंकि सूचकांक को कॉपी करने में समय लग सकता है, जिसे तकनीकी भाषा में tracking error कहा जाता है.

Exchange Traded Fund (ETF)

ये फंड एक प्रकार से index fund ही होते हैं, लेकिन इन्हें इंडेक्स फंड की तरह सीधे खरीदा या बेचा नहीं जा सकता. ETF की कीमत भी shares की तरह market hours के दौरान लगातार बदलती रहती है. आप इन्हें किसी stock broker से खरीद सकते हैं. इन्हें बिना किसी mutual fund distributor के खरीदा जा सकता है.

Hedge Fund

हेज फंड में किसी तरह के नियमों को फॉलो नहीं किया जाता. इनमें कोई retail investor पैसे invest नहीं कर सकता, बल्कि high net worth individuals के चुनिंदा समूह ही निवेश कर सकते हैं. इस तरह के फंड्स के funds managers आक्रामक रणनीति के साथ shares में पैसा लगाते हैं. किसी हेज फंड का मेनेजर दुनिया में कहीं भी पैसा निवेश कर सकता है.

वह अपनी इच्छानुसार shares, bonds, commodity कहीं भी पैसा invest कर सकता है. हेज फंड के fund manager को सिर्फ प्रॉफिट से मतलब होता है. इसमें निवेशकों को कम से कम 1 साल की अवधि के लिए पैसा लगाना होता है.

म्यूचुअल फंड के फायदे और नुकसान

Mutual Fund क्या है, को अच्छी तरह से समझने के बाद अब बात करते हैं इसके फायदे और नुकसान के बारे में, जो कुछ इस प्रकार हैं:

म्यूचुअल फंड के फायदे

  • म्यूचुअल फंड में कोई भी आम निवेशक पैसा लगा सकता है और इसमें जोखिम कम होता है.
  • इसमें विशेषज्ञों की एक टीम होती है जो निवेश की गई रकम पर हमेशा नजर रखी जाती है और निवेशकों को बेहतर रिटर्न देने की कोशिश करती है.
  • इसमें आम लोग बहुत कम रकम और कम जोखिम के साथ निवेश की शुरुआत कर सकते हैं.
  • म्यूचुअल फंड में निवेश करना बेहद आसान है, आप इसमें केवल एक KYC के बाद पैसे निवेश कर सकते हैं.
  • इसमें निवेश के लिए पेमेंट मोड बेहद सरल है, जहां पूरी प्रक्रिया digital और contactless होती है.
  • म्यूचुअल फंड निवेश में पूरी पारदर्शिता रहती है. यानी fund manager आपका पैसा किस स्टॉक में निवेश कर रहा है, इसकी पूरी जानकारी आप ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं.

म्यूचुअल फंड के नुकसान

  • म्यूचुअल फंड में रिटर्न की कोई निश्चित गारंटी नहीं होती. क्योंकि म्यूचुअल फंड का फायदा सीधा स्टॉक मार्केट के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है. इसलिए म्यूचुअल फंड में भी स्टॉक मार्केट की तरह हमेशा रिस्क बना रहता है.
  • अच्छे मुनाफे के लिए म्यूचुअल फंड में लंबे समय तक निवेश लगाना होता है. क्योंकि कम समय के निवेश से अच्छा मुनाफा होने की संभावना बहुत कम होती है.
  • म्यूचुअल फंड में हमारे द्वारा निवेश किए गए पैसों से कुछ पैसा expense ratio के तौर पर फंड हाउस को दिया जाता है. इसलिए लंबे समय तक निवेश करने पर आपको बहुत खर्चा उठाना पड़ सकता है.
  • एक वर्ष से पहले पैसा निकालने पर, NAV पर 1 % exit load तय किया गया है, ताकि निवेशकों को बाहर जाने से रोका जा सके. इसलिए जल्दी पैसा निकालने वालों के लिए म्यूचुअल फंड सही नहीं है.
  • म्यूचुअल फंड स्कीम में मिलने वाले रिटर्न पर आपको टैक्स देना पड़ता है. 12 महीनों से कम अवधि के निवेश पर 15% टैक्स और 12 महीनों से अधिक के निवेश पर 10 % टैक्स देना होता है.
  • म्यूचुअल फंड में हमारे द्वारा निवेश किए गए पैसों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता. बल्कि उस पैसे को फंड मैनेजर द्वारा नियंत्रित किया जाता है. वही अपनी इच्छानुसार हमारे पैसों को stock market या अन्य markets में लगाता है.
  • म्यूचुअल फंड में विविधिकरण होता है, जो आपको फायदे की जगह कभी-कभी नुकसान भी पहुंचा सकता है.
  • क्लोज एंडेड स्कीम में लॉक इन अवधि तय की जाती है. यानी आपके द्वारा निवेश किया गया पैसा एक निश्चित समय के लिए जमा रहेगा और आप उसे निकाल नहीं सकते. यदि आप lock in अवधि से पहले पैसा निकालते हैं, तो आपको अपने निवेश पर नुकसान झेलना पड़ सकता है. 

बेस्ट म्यूचुअल फंड कंपनी

आप नीचे दी गई लिस्ट में, भारत की 10 सर्वश्रेष्ठ म्यूचुअल फंड कंपनियों के नाम देख सकते हैं.

  1. आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड
  2. एचडीएफसी म्यूचुअल फंड
  3. एसबीआई म्यूचुअल फंड
  4. डीएसपी ब्लैकरॉक म्यूचुअल फंड
  5. म्यूचुअल फंड बॉक्स
  6. आदित्य बिड़ला सन लाइफ म्यूचुअल फंड
  7. टाटा म्यूचुअल फंड
  8. एलएंडटी म्यूचुअल फंड
  9. रिलायंस म्यूचुअल फंड
  10. प्रिंसिपल म्यूचुअल फंड

निष्कर्ष (Conclusion):

उम्मीद है आपको हमारा यह लेख “Mutual Fund क्या है? जानें इसके फायदे और नुकसान के बारे में” जरूर पसंद आया होगा. हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है What is Mutual Fund in Hindi से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े. अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें.

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