Homeइनफॉर्मेटिवFIR क्या है? और कब दर्ज की जाती है?

FIR क्या है? और कब दर्ज की जाती है?

जब भी पुलिस को किसी पीड़ित द्वारा क्राइम से जुड़ी शिकायत दी जाती है, तो सबसे पहले पुलिस FIR दर्ज करती है. आपने भी एफआईआर (FIR in Hindi) के बारे में बहुत बार सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं यह FIR क्या होती है? FIR दर्ज करने का मतलब क्या होता है? अगर नहीं तो आज के इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ें, क्योंकि आज हम आपको एफआईआर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

यदि आप चोरी होने या किसी आपराधिक गतिविधि को लेकर पुलिस से शिकायत करते हैं, तो पुलिस जांच शुरू करने से पहले कुछ दस्तावेज तैयार करती है. इन दस्तावेजों में वो जानकारी लिखी जाती है, जो आप पुलिस को अपनी शिकायत में बताते हैं. इन्ही दस्तावेजों को प्रथम सूचना रिपोर्ट यानी यानी FIR (एफ आई आर) कहा जाता है.

FIR क्या है? (What is FIR in Hindi)

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FIR क्या है?

FIR यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report) वह जानकारी होती है, जो ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी द्वारा किसी संज्ञेय अपराध के होने पर पीड़ित या पीड़ित के पक्ष में किसी अन्य व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज की जाती है. किसी भी अपराध के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले FIR दर्ज होनी जरूरी होती है, इसी के बाद पुलिस आगे की कार्यवाही शुरू करती है. 

एक बार एफ.आई.आर दर्ज होने के बाद, इसमें दर्ज की गई बातों को बदला नहीं जा सकता. इसे केवल सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसले पर ही बदला जा सकता है. एफआईआर किसी भी व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई जा सकती है, जरूरी नहीं है कि वह पीड़ित, घायल या चश्मदीद गवाह हो. प्रथम सूचना रिपोर्ट हमेशा तत्काल और बिना समय व्यर्थ किए लिखी जानी चाहिए.

यह वह सूचना रिपोर्ट होती है जो संज्ञेय अपराध की स्थिति में समय पर सबसे पहले पुलिस के पास पहुंचती है, इसलिए इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है. एफआईआर शब्द का भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) 1973 या किसी अन्य कानून में कहीं भी वर्णन नहीं किया गया है. लेकिन पुलिस नियमों या कानून में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत दर्ज की गई जानकारी को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) कहा जाता है.

FIR क्यों जरूरी होती है?

जैसे कि नाम से पता चलता है “First Information Report” (प्रथम सूचना रिपोर्ट) ही वह पहली रिपोर्ट होती है, जो पुलिस को अपराध होने की सूचना देती है. इसी सूचना को आधार मानते हुए पुलिस जांच की कार्यवाही शुरू करती है. अर्थात FIR आपराधिक न्याय प्रक्रिया को गति प्रदान करती है. बिना FIR दर्ज किए पुलिस मामले की जांच शुरू नहीं कर सकती.

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FIR दर्ज करने के नियम

  • एफ.आई.आर तभी दर्ज की जा सकती है जब जानकारी किसी संज्ञेय अपराध से जुड़ी हो.
  • पुलिस को सूचना मौखिक या लिखित रूप में दी जानी चाहिए.
  • यह किसी पुलिस अधिकारी द्वारा लिखी गई और हस्ताक्षरित होनी चाहिए और इसके प्रमुख बिंदुओं को दैनिक डायरी में दर्ज किया जाना चाहिए.
  • प्राथमिक सूचना रिपोर्ट बिना समय गंवाए दर्ज की जानी चाहिए, ताकि कोई मामले में हस्तक्षेप कर उसमें मिलावट या झूठ शामिल न करे.
  • एक बार एफ.आई.आर दर्ज होने के बाद उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता, उसे केवल न्यायालय के फैसले पर ही बदला जा सकता है.

संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराध क्या होते हैं?

संज्ञेय अपराध – वह अपराध होता है, जिसमें पुलिस किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है. ऐसे मामलों में जांच के लिए पुलिस को न्यायालय से किसी आदेश की जरूरत नहीं होती, यानी पुलिस के पास अपराध की जांच स्वयं करने का अधिकार होता है.

गैर-संज्ञेय अपराध – ऐसा अपराध होता है, जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस अधिकारी को वारंट की आवश्यकता होती है. अपराध की जांच करने के लिए पुलिस को न्यायालय की अनुमति लेनी पड़ती है. शिकायतकर्ता आदेश के लिए न्यायालय की मदद ले सकता है, उसके बाद न्यायालय शिकायतकर्ता की शिकायत पर पुलिस को जांच का आदेश दे सकता है. गैर-संज्ञेय अपराध के मामले में CRPC की धारा 155 के तहत FIR दर्ज की जाती है.

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जीरो एफ.आई.आर (Zero FIR) क्या है?

जब किसी पुलिस स्टेशन को किसी अन्य पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में किए गए कथित अपराध की जानकारी मिलती है, तो वह एक प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करता है और उसे आगे की जांच के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन में भेज देता है. एक प्रकार की एफ.आई.आर को “जीरो एफ.आई.आर” कहा जाता है.

इस तरह की FIR को कोई नियमित नंबर नहीं दिया जाता. जीरो एफ.आई.आर मिलने के बाद संबंधित स्टेशन की पुलिस एक नई FIR दर्ज करती है और अपनी जांच शुरू करती है.

FIR दर्ज होने के बाद क्या होता है?

एफआईआर के बाद पुलिस द्वारा किए जाने वाले कार्य कुछ इस प्रकार हैं:

  • पुलिस मामले की जांच शुरू करती है और गवाहों के बयान के साथ अन्य वैज्ञानिक सामग्री के रूप में प्रमाण इकट्ठा करती है.
  • कानून के अनुसार पुलिस संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है.
  • जब शिकायतकर्ता के आरोपों की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त सबूत मिल जाते हैं, तो आरोप पत्र दाखिल किया जाता है. यदि पर्याप्त सबूत नहीं मिलते हैं तो सबूत नहीं मिले का उल्लेख करते हुए अंतिम रिपोर्ट अदालत में पेश की जाती है.
  • अदालत, यदि जांच रिपोर्ट से सहमत नहीं है तो वह आगे की जांच का आदेश दे सकती है.
  • यदि आरोपी व्यक्ति का पता नहीं चलता है तो एक ‘अनट्रेस्ड’ रिपोर्ट दर्ज की जाती है.
  • यदि किसी तरह का अपराध ना होने की पुष्टि होती है, तो रद्दीकरण रिपोर्ट दर्ज की जाती है.

क्या पुलिस अधिकारी FIR दर्ज करने से मना कर सकते हैं?

पुलिस अधिकारी किसी मामले की जांच करने से मना कर सकते हैं, लेकिन FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकते.

पुलिस अधिकारी द्वारा FIR दर्ज करने से मना करने पर क्या करें?

यदि पुलिस थाने में आपकी FIR दर्ज नहीं होती है, तो आप CRPC की धारा 156 (3) 1973 के तहत स्थानीय मजिस्ट्रेट से मामले की शिकायत कर सकते हैं. धारा के तहत, एक मजिस्ट्रेट के पास जांच का आदेश देने का अधिकार होता है. मजिस्ट्रेट शिकायत का संज्ञान ले सकता है और पुलिस को मामले की जांच करने और रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कह सकता है. 

यदि कोई मामला पाया जाता है, तो मजिस्ट्रेट थाना प्रभारी को एफ.आई.आर दर्ज करने और मामले की गहनता से जांच करने का आदेश दे सकता है.

निष्कर्ष (Conclusion):

उम्मीद करती हूँ आपको मेरा यह लेख “FIR क्या है और कब दर्ज की जाती है (FIR in Hindi)” जरूर पसंद आया होगा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े. अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें.

Monika Chauhan
Monika Chauhanhttps://hindivibe.com/
मोनिका चौहान Hindivibe की Co-Founder और Author हैं. इन्हें सामान्य ज्ञान से संबंधित जानकारियों का अध्ययन करना और उनके बारे में लिखना अच्छा लगता है.

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