क्या आप जानते हैं मानसून क्या है और कैसे बनता है? जैसे ही भारत में गर्मी का दौर शुरू होता है तो लोग राहत की उम्मीद लगाये आसमान की तरफ निहारना शुरू कर देते हैं. ऐसे में सबको इंतजार होता है तो सिर्फ मानसून का. जैसे ही मानसून देश में प्रवेश करता है तो वह अपने साथ लाता है खूब सारी बारिश और ठंडी हवाएं. ये बारिश लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाती है. मानसून के आगमन के साथ ही किसानों के चेहरे भी खिलखिला उठते हैं, क्योंकि मानसून की बारिश फसलों के लिए बहुत लाभकारी होती है.
आज के इस लेख में आप मानसून के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे. जहां मानसून क्या होता है, मानसून के प्रकार, मानसून की उत्पत्ति और मानसून के आने के समय के बारे में बताया जाएगा. तो चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं मानसून की जानकारी हिंदी में.
मानसून क्या है? | Monsoon in Hindi
माना जाता है कि मानसून शब्द मौसम के लिए इस्तेमाल होने वाले अरबी शब्द ‘मॉवसिम’ से निकला है. आमतौर पर मानसून मौसमी हवाएं हैं जो मौसम में बदलाव के अनुसार अपनी दिशा बदलती हैं. इसलिए ये सामयिक हवाएं होती हैं. मानसून हमेशा ठंडे क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की तरफ बहता है. मानसून दो तरह के होते हैं; ग्रीष्म मानसून और शीतकालीन मानसून, जो भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के अधिकांश भाग के लिए जलवायु का निर्धारण करते हैं.
मानसून भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य-पश्चिमी अफ्रीका, दक्षिण एशिया और कुछ अन्य स्थानों पर होता है. ये हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप में अधिक स्पष्ट होती हैं. भारत में गर्मियों के दौरान दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाएं चलती हैं और सर्दियों के दौरान उत्तर-पूर्वी मानसून हवाएं चलती हैं. गर्मियों में ये तिब्बती पठार पर तीव्र कम दाब प्रणाली बनने के कारण उत्पन्न होती हैं और सर्दियों में साइबेरियाई और तिब्बती पठार पर उच्च दाब सेल के कारण उत्पन्न होती हैं.
गर्मियों में मानसून समुद्र से जमीन की तरफ चलता है और सर्दियों में जमीन से समुद्र की तरफ. ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो मानसून व्यापारियों और नाविकों के लिए महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि वे इन हवाओं का उपयोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए करते थे.
भारत में मानसून के प्रकार
भारत में मानसूनी हवाओं के बहने की दिशा के आधार पर इन्हें दो श्रेणियों में बांटा गया है: दक्षिण-पश्चिमी मानसून जिसे ग्रीष्मकालीन मानसून भी कहा जाता है और उत्तर-पूर्वी मानसून जिसे शीतकालीन मानसून भी कहा जाता है. दक्षिण-पश्चिमी हवाएं जून से सितम्बर महीने में चलती हैं और उत्तर-पूर्वी हवाएं अक्टूबर से मई के मध्य तक चलती हैं.
मानसून की उत्पत्ति / मानसून कैसे बनता है
ग्रीष्मकालीन मानसून
गर्मियों के दौरान भारत सहित एशिया और यूरोप का एक बड़ा भूभाग गरम होने लगता है. इससे इस भूभाग के ऊपर की हवा गर्म होकर उठती है और बाहर की तरफ बहने लगती है. अब इस क्षेत्र का वायुदाव कम हो जाता है और यह उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से हवा को आकर्षित करना शुरू कर देता है. अधिक वायुदाब वाला एक बहुत बड़ा क्षेत्र भारत को घेरने वाले महासागरों पर मौजदू होता है, क्योंकि सागर स्थल भागों की अपेक्षा कम गर्म होता है और उस पर वायु का घनत्व अधिक होता है. अब उच्च दबाव वाले सागर की मानसूनी हवाएं कम वायुदाब वाली जमीन की तरफ बहने लगती है. इस हवा में सागर में निरंतर चलने वाले वाष्पीकरण की वजह से नमी मौजूद होती है और इसी नमी भरी हवा को दक्षिण -पश्चिमी मानसून कहा जाता है.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून भारत के दक्षिणी भाग में मई के अंत या जून के शुरुआती हफ्ते में पहुंचता है. आमतौर पर मानसून केरल के तटों पर जून के प्रथम पांच दिनों में दस्तक दे देता है. यहाँ से वह उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता है और जून के अंत तक भारत के अधिकांश हिस्सों में पूरी तरह से छा जाता है.
मानसून का दो शाखाओं में विभाजन
जब ये मानसूनी हवाएं भारत के कन्याकुमारी में पहुंचती है तो इनका दो शाखाओं में विभाजन हो जाता है. यानी ये दो धाराओं में बहने लगती हैं. एक धारा अरब सागर की ओर बढ़ती है, जबकि दूसरी धारा बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ती है. अरब सागर की तरफ से आने वाली मानसूनी हवाएं पश्चिमी घाट के ऊपर से होते हुए दक्षिणी पठार की तरफ आगे बढ़ती है. वहीं बंगाल की खाड़ी से चलने वाली हवाएं भारतीय महाद्वीप में प्रवेश करती हैं.
इस प्रकार ये हवाएं बारिश करते हुए आगे हिमालय पर्वत की तरफ बढ़ती हैं. जैसे ही हवाएं हिमालय पर्वत से टकराती हैं तो ये ऊपर की तरफ उठना शुरू कर देती हैं. ऊपर उठने की वजह से इनमें मौजूद नमी संघनीत होने लगती है और पूरे उत्तर भारत में मूसलाधार बारिश होती है. हिमालय को लांघने के बाद ये हवाएं यूरेशियाई भूभाग की तरफ बढ़ती हैं, जो बिल्कुल शुष्क होती हैं.
शीतकालीन मानसून
सर्दियों में भूभाग, सागर की सतहों की अपेक्षा जल्दी ठंडे हो जाते हैं. इसलिए भूभाग के ऊपर बने उच्च वायुदाब की वजह से हवा सागर में कम वायुदाब वाले क्षेत्र की तरफ उत्तर-पूर्वी मानसून बनकर बहती है. इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिमी मानसून की दिशा से विपरीत होती है. उत्तर-पूर्वी मानसून भारत के स्थल और जल भागों में जनवरी के शुरुआत तक पूरी तरह से छा जाता है. इस समय एशियाई भूभाग का तापमान न्यूनतम होता है. इस दौरान उच्च दाब की एक पट्टी पश्चिम में भूमध्य सागर और मध्य एशिया से लेकर उत्तर-पूर्वी चीन तक के भू-भाग में फैली होती है. इस अवधि में खुला आसमान, कम आर्द्रता और हल्की उत्तरी हवाएं भारत में एक खुशनुमा मौसम का अनुभव कराती हैं. उत्तर-पूर्वी मानसून में वर्षा काफी कम होती है लेकिन यह सर्दी की फसलों के लिए काफी फायदेमंद होती है.
उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान तमिलनाडु में सबसे ज्यादा वर्षा होती है. असल में उत्तर-पूर्वी मानसून को तमिलनाडु का मुख्य वर्षा काल माना जाता है. क्योंकि पश्चिमी घाट की पर्वत श्रेणियों की आड़ में आ जाने के कारण दक्षिण-पश्चिमी मानसून से वहां अधिक वर्षा नहीं हो पाती. इसलिए नवंबर और दिसंबर के महीने में तमिलनाडु में सम्पूर्ण रूप से वर्षा होती है.
मानसून कहाँ से कब-कब गुजरता है?
भारत में लोग ग्रीष्मकालीन मानसून का इंतजार बहुत ही बेसब्री से करते हैं, क्योंकि यह मानसून अपने साथ बारिश लेके आता है और लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाता है. आइए जानते हैं ग्रीष्मकालीन या दक्षिण-पश्चिमी मानसून देश में कहाँ से और कब होकर गुजरता है.
- दक्षिण-पश्चिमी मानसून देश के दक्षिण भाग में 01 जून को पहुंचता है. आमतौर पर जून के प्रथम पांच दिनों में यह केरल में प्रवेश कर लेता है.
- अरब सागर की तरफ से आने वाली हवा उत्तर की तरफ बढ़ती है और लगभग 10 जून तक मानसून मुंबई में पहुंच जाता है.
- दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएं भी तेजी के साथ आगे बढ़ती है और ये जून के पहले सप्ताह तक असम में पहुंच जाती हैं.
- कलकत्ता में मानसून का प्रवेश मुंबई पहुंचने से पहले लगभग जून के प्रथम सप्ताह में हो जाता है.
- जून के मध्य तक अरब सागर से होकर बहने वाली हवाओं के साथ मानसून सौराष्ट्र, कच्छ व मध्य भारत के प्रदेशों में फैल जाता है.
- इसके बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से बहने वाली हवाएं दोबारा एक हो जाती हैं और जून के अंत में या जुलाई के प्रथम सप्ताह में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, पूर्वी राजस्थान आदि बचे हुए प्रदेशों में मानसून प्रवेश करता है.
- जुलाई के मध्य तक मानसून कश्मीर और देश के अन्य बचे भागों में फ़ैल जाता है. लेकिन अब यह एक कमजोर धारा के रूप में होता है, क्योंकि मानसून अपनी सारी शक्ति और नमी खो चुका होता है.
भारतीय मानसून की प्रकृति
भारतीय मानसून की प्रकृति अत्यंत अनियमित और अनिश्चित है. इसलिए भारतीय खेती को मानसून का जुआ भी कहा जाता है. क्योंकि भारत की कृषि मानसून पर ही निर्भर करती है. भारत में 60% खेती सीधे तौर पर मानसून पर निर्भर करती है. भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून का प्रवेश जून के प्रथम सप्ताह में होता है और अक्टूबर तक यह देश में बना रहता है. इस अवधि के दौरान जून से सितम्बर तक मानसून से वर्षा का 80% प्रतिशत से अधिक प्राप्त होता है. यह समय खरीफ की फसलों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. ऐसे में मानसून की अनियमितता और अनिश्चितता का भारतीय कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
इस अध्ययन से स्पष्ट होता है कि मानसून के आगमन के समय, ठहराव के समय और समाप्ति के समय में प्रत्येक वर्ष परिवर्तन होता रहता है. इसके साथ ही कभी-कभी अत्यधिक वर्षा या कम वर्षा जैसी समस्याएं भी पैदा होती हैं जिससे बाढ़ और सूखे के हालात बनते हैं. मानसूनी वर्षा का रूक-रूक के होना भी एक समस्या है, यानी कि मानसूनी वर्षा लगातार न होकर एक अंतराल के बाद होती है.
कभी जून में औसत वर्षा अच्छी देखने को मिलती है लेकिन जुलाई-अगस्त में सूखा पड़ जाता है. कभी जून-जुलाई में सूखा पड़ता है और अगस्त महीने में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इन बातों से स्पष्ट होता है कि मानसून की प्रकृति में अस्थिरता पाई जाती है और मानसून की वर्षा परिवर्तनशील होती है.
मानसून का महत्व
भारत और दक्षिण पश्चिम एशिया ग्रीष्मकालीन मानसून पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए कृषि जो वार्षिक वर्षा पर निर्भर करती है. इन देशों के कई क्षेत्रों में झीलों, नदियों और बर्फीले क्षेत्रों के आसपास बड़ी सिंचाई प्रणाली नहीं है. जलभृत या भूमिगत जल की आपूर्ति कम है. ग्रीष्मकालीन मानसून यहां कुओं और जलभृतों को पूरे वर्ष के लिए भर देता है. चाय और चावल की खेती ग्रीष्मकालीन मानसून पर निर्भर करती है. भारतीय डेयरी फार्म्स जो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बनाने में मदद करते हैं, वे भी पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य और चारे के लिए मानसून पर निर्भर करते हैं.
भारत और दक्षिण पश्चिम एशिया के उद्योग भी ग्रीष्म मानसून पर निर्भर करते हैं. बड़ी मात्रा में बिजली बनाने के लिए hydroelectric power plant का इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें मानसून के दौरान बारिश से इक्कठे किए गए पानी द्वारा चलाया जाता है. बिजली से अस्पतालों, स्कूलों और व्यवसायों को शक्ति मिलती है जिससे उन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्थाओं का विकास होता है.
जब मानसून देरी से आता है या कमजोर होता है तो क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है. कई बार ऐसी स्थिति में किसान केवल अपने लिए ही अनाज उगा पाते हैं और बेचने के लिए उनके पास कुछ नहीं होता. ऐसे में सरकारों को खाना आयात करना पड़ता है. बिजली महंगी हो जाती है जिससे आम जनता और व्यवसायों पर प्रभाव पड़ता है. इसीलिए ग्रीष्मकालीन मानसून को भारत का सचा वित्त मंत्री कहा गया है.
अगर ग्रीष्म मानसून ज्यादा शक्तिशाली होता है तो यह बड़ा नुकसान कर सकता है. अत्यधिक वर्षा की वजह से मुंबई जैसे शहरों में बाढ़ आ जाती है और शहरों के डूबने का खतरा बढ़ जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में, मिट्टी के खिसकने से गाँव दब सकते हैं और फसलें तबाह हो सकती हैं.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून में ही भारी बारिश क्यों होती है?
दक्षिण-पश्चिम मानसून या ग्रीष्मकालीन मानसून की विशेषता एक प्रबल हवा है जो दक्षिण-पश्चिम से उत्तर की तरफ बहती हुई एशियाई महाद्वीप और दक्षिण और पूर्व एशिया में महत्वपूर्ण वर्षा करती है. ग्रीष्मकालीन मानसून में बारिश का कारण वो हवा है जो भूमध्यरेखीय महासागर के विशाल क्षेत्र से गुजरते हुए महासागर की सतह से वाष्पीकरण के बढ़े हुए स्तर को उत्तेजित करती है. अब जलवाष्प से लदी हुई ये हवा उत्तर की तरफ बहने और भूमि के ऊपर उठने पर ठंडी हो जाती है. कुछ बिंदुओं पर यह हवा अपनी नमी बनाए नहीं रख पाती और चावल के खेतों और वर्षावनों पर प्रचुर मात्रा में वर्षा करती है. कभी-कभी यह गंभीर बाढ़ का भी कारण बन जाता है.
भारत की जलवायु
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा भारत में चार जलवायु मौसम नामित किए गए हैं.
1. सर्दी का मौसम, जो दिसंबर से फरवरी तक चलता है. वर्ष के सबसे ठंडे महीनों में दिसंबर और जनवरी आते हैं. इस दौरान उत्तर-पश्चिम में औसत तापमान 15°C (50-59°F) होता है. भूमध्य रेखा की ओर बढ़ने पर तापमान बढ़ता है जो मुख्य भूमि भारत के दक्षिण-पूर्व में लगभग 20-25°C (68-77°F) तक पहुंच जाता है.
2. ग्रीष्म या मानसून पूर्व मौसम, मार्च से मई तक चलता है. पश्चिमी और दक्षिणी इलाकों में सबसे गर्म महीना अप्रैल और मई के शुरुआती दिन होते हैं और उत्तरी इलाकों के लिए मई सबसे गर्म दिन होता है. मई में अधिकांश आंतरिक भागों का औसत तापमान 32-40°C (90-100°F) होता है.
3. मानसून या बरसात का मौसम, जून से सितम्बर तक चलता है. यह मौसम आर्द्र दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्म मानसून का होता है जो धीरे-धीरे मई के अंत या जून के शुरुआत में पूरे देश में फैलना शुरू कर देता है. अक्टूबर के शुरुआत में उत्तर भारत में मानसून की बारिश कम होना शुरू हो जाती है. आमतौर पर दक्षिण भारत में ज्यादा बारिश होती है.
4. मानसून के बाद या पतझड़ का मौसम, अक्टूबर से नवंबर तक चलता है. भारत के उत्तर-पश्चिम में अक्टूबर और नवंबर के महीने बादल रहित होते हैं. इस दौरान तमिलनाडु में उत्तर-पूर्व मानसून के मौसम में सबसे ज्यादा बरसात होती है.
मानसून से संबंधित FAQ
मानसून विस्फोट क्या है?
हिंद महासागर और अरब सागर से भारत में प्रवेश करने वाला मानसून जो भारत के दक्षिण और पश्चिम तट की तरफ आता है, को मानसून विस्फोट कहा जाता है. इस मानसून से बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में बहुत अधिक बारिश होती है. मानसून के साथ ‘विस्फोट’ शब्द का प्रयोग बंगाल की खाड़ी और एवं अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिए किया गया है, जो दक्षिण-पश्चिम से भारी वर्षा लाती हैं.
भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून की अवधि
भारत में मानसून लगभग जून की शुरुआत में आता है और सितम्बर माह के मध्य तक चलता है. इस दौरान भारत में इसकी अवधि 100 से 120 दिनों की होती है.
दक्षिण-पश्चिम मानसून का दो शाखाओं में विभाजन क्यों होता है?
दक्षिण-पश्चिमी हवाओं का स्थलाकृतिक कारकों (topographic factors) की वजह से दो शाखाओं में विभाजन होता है. जब दक्षिण-पश्चिमी हवाएं पश्चिमी घाट से टकराती हैं तो ये दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं; अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा.
Conclusion
उम्मीद करता हूँ आपको मेरे द्वारा बताई गई जानकारी “मानसून क्या है और कैसे बनता है (Monsoon in Hindi)” जरूर पसंद आई होगी. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है मानसून की उत्पत्ति से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े.
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Very nice 👌 sir ji