पीएफआई एक कट्टर इस्लामिक संगठन है, जो खुद को सामाजिक संगठन होने का दावा करता है. इस पर आतंकी फंडिंग और अवैध गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगे हैं, जिसके चलते इसे भारत सरकार द्वारा 2022 में पांच साल के लिए बैन कर दिया गया था. बैन के बावजूद कई राज्यों में इसकी गतिविधियां अभी भी जारी रहने की खबरें सामने आती हैं. आखिर क्या है यह पीएफआई संगठन ( What is PFI in Hindi), इसके काम क्या हैं और इसे कौन चलाता है? इन सभी सवालों के जवाब आज आप हमारे इस लेख से प्राप्त करेंगे.
आज हम आपको पीएफआई संगठन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां देंगे, जिनमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) क्या है, PFI पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया, PFI का इतिहास, PFI पर लगे आरोप, इसके सदस्य इत्यादि जानकारियां शामिल होंगी. तो आइए जानते हैं पीएफआई के बारे में विस्तार से.
PFI क्या है? – What is PFI in Hindi
पीएफआई तीन इस्लामिक संगठनों का विलय करके बनाया गया एक कट्टर इस्लामिक संगठन है, जिसका गठन 22 नवंबर 2006 को हुआ था. तीन संगठनों में केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल हैं. वर्ष 2002 में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट (SIMI) पर बैन लगने के बाद PFI का तेजी के साथ विस्तार हुआ. इस संगठन की दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे केरल, कर्नाटक इत्यादि में काफी अच्छी पकड़ मानी जाती है. इसकी देश भर में कई शाखाएं है और यह खुद को एक गैर-लाभकारी संगठन बताता है. शुरुआत से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन भारत सरकार द्वारा 28 सितंबर 2022 को इसे पांच साल के लिए बैन कर दिया गया है.
PFI का फुल फॉर्म
पीएफआई का फुल फॉर्म या पूरा नाम “पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India)” है
PFI का काम क्या है?
पीएफआई के अनुसार वह एक ऐसा संगठन है जो अल्पसंख्यकों, दलितों और हाशिए पर स्थित (समाज से बहिष्कृत) समुदायों के अधिकारों के लिए लड़ता है. मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द-गिर्द घूमती है. यह संगठन वर्ष 2006 में उस समय सुर्ख़ियों में आया जब रामलीला मैदान में इसके सदस्यों द्वारा एक नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस आयोजित की गई थी. इस कांफ्रेंस में बड़ी संख्या में भीड़ देखने को मिली. कई बार इस संगठन से जुड़े लोगों ने मुस्लिम आरक्षण के लिए भी प्रदर्शन किए हैं.
कहा जाता है कि देश के 23 राज्यों में PFI का नेटवर्क फैला हुआ है, जिसके सदस्य कहीं अधिक सक्रिय हैं तो कहीं कम. इस संगठन की जड़ें मुस्लिम बहुल इलाकों में ज्यादा मजबूत है. संगठन का मानना है कि वह न्याय, सुरक्षा और स्वतंत्रता की पैरवी करता है और मुस्लिमों के अलावा देश के दलित और आदिवासी लोगों पर होने वाले अत्याचारों के लिए समय-समय पर मोर्चा खोलता है.
> G7 शिखर सम्मेलन क्या है? जानें पूरी जानकारी
PFI पर प्रतिबंध
भारतीय गृह मंत्रालय द्वारा 28 सितंबर 2022 को, पीएफआई के हिंसा और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और टेरर लिंक के सबूत मिलने के बाद, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत पांच साल के लिए इसे बैन कर दिया गया.
पीएफआई पर लगे आरोप
शुरुआत से ही PFI विवादों के घेरे में रहा है. देश में कई हिंसा, हत्या और दंगों से जुड़े मामलों में पीएफआई का नाम आता रहा है. नीचे हम आपको इस संगठन पर लगे कुछ प्रमुख आरोपों के बारे में बताने जा रहे हैं.
लव जिहाद का आरोप – 2017 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) केरल लव जिहाद हादिया केस को ध्यान में रखते हुए दावा करती है कि PFI ने इस्लाम में धर्मांतरण करवाने का काम किया है. हालांकि, बाद में जांच एजेंसी ने इस बात को माना कि धर्म परिवर्तन के लिए किसी तरह की जोर-जबरदस्ती नहीं की गई थी.
मंगलूरू हिंसा – 2019 में कर्नाटक के मंगलूरू में हुए सीएए–एनआरसी के प्रदर्शनों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर मंगलूरू पुलिस द्वारा हिंसा भड़काने के आरोप लगाए गए, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद पीएफआई और एसडीपीआई के 21 से ज्यादा सदस्यों को हिरासत में लिया गया था.
श्रीलंका में ईस्टर बम धमाके – मई 2019 में NIA द्वारा PFI के कई कार्यालयों पर छापेमारी की जाती है. जांच एजेंसी के अनुसार श्रीलंका में हुए ईस्टर बम धमाकों के तार पीएफआई से जुड़े थे. इस बम धमाके में 11 भारतीयों सहित 270 लोगों की मौत हुई थी.
दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे – साल 2020 में दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाके में हुए सांप्रदायिक दंगों में PFI का कनेक्शन सामने आता है. दिल्ली पुलिस की एक स्पेशल सेल द्वारा दावा किया जाता है कि पीएफआई ने दंगाइयों को आर्थिक और लॉजिस्टिक की मदद पहुंचाई थी. पुलिस के अनुसार जेएनयू स्कॉलर उमर खालिद, जो दिल्ली दंगों में बड़ी साजिश का आरोपी था, लगातार पीएफआई के संपर्क में था.
केरल में सोना तस्करी – जुलाई 2020 में एनआईए ने सोने की तस्करी करने वाले एक रैकेट और पीएफआई के संबंधों के बीच जांच की. जांच एजेंसी का मानना था कि सोने का इस्तेमाल PFI द्वारा राष्ट्र विरोधी आतंकी गतिविधियों की फंडिंग के लिए किया जा सकता है.
हाथरस दुष्कर्म मामला – 14 सितंबर 2020 को यूपी के हाथरस जिले में एक युवती का चार युवकों द्वारा दुष्कर्म और हत्या किए जाने का मामला सामने आता है. इस घटना के बाद यूपी पुलिस ने PFI के खिलाफ लगभग 19 केस दर्ज किए जिसमें देशद्रोह, धार्मिक घृणा को बढ़ावा देने और कई अन्य मामले शामिल थे. पुलिस दावा करती है कि पत्रकार सिद्दीकी कप्पन, जिन पर हाथरस में दंगा फ़ैलाने की साजिश के आरोप लगे थे, के पीएफआई के साथ गहरे संबंध थे.
PFI का इतिहास
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की शुरुआत दक्षिण भारतीय राज्य केरल में 2006 में हुई. इसके लिए केरल से नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ), कर्नाटक से फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु से मनिथा नीति पसराई साथ में आए. शुरुआत से ही PFI पर दंगे भड़काने और नफरत फ़ैलाने के आरोप लगते रहे हैं. ऐसी कई रिपोर्टें सामने आई जो दर्शाती हैं कि कैसे PFI देश में मनी लांड्रिंग, आतंकी फंडिंग और मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ भटकाने में शामिल रहा है. साल 2014 में केरल उच्च न्यायालय में राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए एक हलफनामे के अनुसार, PFI के कार्यकर्ता केरल में 27 राजनीतिक हत्याओं और 106 साम्प्रदायिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार थे.
शुरुआत में पीएफआई का मुख्यालय कोझिकोड में खोला गया, लेकिन लगातार विस्तार के कारण इसका सेंट्रल ऑफिस दिल्ली में खोला दिया गया. PFI दावा करता है कि देश के 23 राज्यों में उसकी इकाइयां हैं. संगठन मध्य पूर्व देशों से आर्थिक मदद भी मांगता है, जिससे उसे एक अच्छी फंडिंग हासिल होती है. सिर्फ इतना ही नहीं, PFI की अपनी एक यूनिफॉर्म भी है. हर साल 15 अगस्त के दिन PFI फ्रीडम परेड का आयोजन करता था, जिस पर 2013 में केरल सरकार ने रोक लगा दी थी. क्योंकि PFI की यूनिफॉर्म में पुलिस की यूनिफॉर्म की तरह सितारे और एम्बलम लगे होते हैं.
पीएफआई के सदस्यों के नाम
यहां हम आपको एक न्यूज़ चैनल की रिपोर्ट से प्राप्त PFI के कुछ सदस्यों के नाम बता रहे हैं.
सदस्यों के नाम | पद |
ओएमए सलाम | अध्यक्ष |
ईएम अब्दुल | उपाध्यक्ष |
अनीस अहमद | जनरल सेक्रेटरी |
वीपी नसरुद्दीन | सेक्रेटरी |
अफसर पाशा | सेक्रेटरी |
मोहम्मद शाकिफ | सेक्रेटरी |
इस कोर कमेटी के अलावा सात नेशनल एग्जीक्यूटिव काउंसिल के कई सदस्य इस संगठन में शामिल हैं, जो संगठन का एजेंडा लागू करने का जिम्मा संभालते हैं. संगठन अपने सदस्यों का रिकॉर्ड नहीं रखता है, जिस वजह से किसी अपराध में संगठन का नाम आने पर भी कानून एजेंसियां इस पर पूरी तरह से नकेल नहीं कस पाती.
> जानें UNESCO क्या है और इसके उद्देश्य
पीएफआई के अन्य संगठनों से संबंध
पीएफआई और सिमी
सिमी (SIMI) या स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया भारत में एक प्रतिबंधित मुस्लिम आतंकवादी संगठन है. अक्सर PFI को SIMI का ही बदला हुआ रूप माना जाता है. सिमी पर भारत सरकार द्वारा 2006 में प्रतिबंध लगाया गया था, और इसके चंद महीनों बाद ही पीएफआई अस्तित्व में आया. माना जाता है कि इस संगठन की कार्यप्रणाली भी सिमी जैसी ही है. यह भी आरोप है कि जब भारत में सिमी पर प्रतिबंध लगा था तो उसके सदस्य पीएफआई में शामिल हो गए थे.
पीएफआई और एसडीपीआई
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) एक राजनीतिक संगठन है जो मुस्लिम, दलितों और अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों के राजनितिक मुद्दों को उठाने के लिए PFI से निकल कर 2009 में अस्तिव में आया. SDPI का कहना है कि उसका मकसद दलितों, मुस्लिमों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों के लिए उन्नति और समान विकास के लक्ष्य को हासिल करना है. कहा जाता है कि पीएफआई एसडीपीआई की राजनीतिक गतिविधियों के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं को उपलब्ध कराने का काम भी करता है.
पीएफआई और जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश
भारत के गृह मंत्रालय के अनुसार PFI का संबंध आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के साथ भी रहा है. जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश को भी सिमी की तरह भारत में प्रतिबंधित किया गया है. इसे यूके द्वारा एक आतंकवादी समूह के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
पीएफआई और वैश्विक आतंकवादी समूह
कहा जाता है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ संबंध रहे हैं. उदाहरण के लिए PFI के कुछ सदस्य ISIS में शामिल होकर अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में आतंकी कार्यकलापों में शामिल हो चुके हैं. पीएफआई के कुछ सदस्य इन देशों के संघर्ष क्षेत्रों में मारे जा चुके हैं. कई कार्यकर्ताओं को राज्य और केंद्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार भी किया गया है.
पीएफआई से संबंधित FAQ
1. भारत में पीएफआई को कौन फंड करता है?
पीएफआई के लिए इसके सदस्यों, अलग-अलग धर्मों के लोगों और संस्थाओं से धन जुटाया जाता है. वहीँ विदेशों से भी PFI को धन मिलता है. इनके अलावा पीएफआई जूते, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, कपड़े इत्यादि के व्यापार से भी धन एकत्रित करता है. PFI फंड इक्कठा करने के लिए गैर-क़ानूनी तरीकों का भी सहारा लेता है.
2. Popular Front of India (पीएफआई) की स्थापना कब हुई?
पीएफआई की स्थापना 22 नवंबर 2006 को दक्षिण भारत के राज्य केरल में तीन मुस्लिम संगठनों, केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई के विलय के साथ हुई.
3. क्या PFI संगठन ने कभी चुनाव लड़ा है?
नहीं, पीएफआई संगठन ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है.
4. PFI पर बैन कब लगाया गया?
भारत में पीएफआई पर प्रतिबंध 28 सितंबर 2022 को लगाया गया, जो कि पांच वर्षों के लिए है.
Conclusion
उम्मीद है आपको हमारा यह लेख “पीएफआई क्या है? इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया?” जरूर पसंद आया होगा. हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI in Hindi) से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े. अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें.