Homeइनफॉर्मेटिवजीएसटी (GST) क्या है, इसके फायदे, विशेषताएं? जानें सब कुछ

जीएसटी (GST) क्या है, इसके फायदे, विशेषताएं? जानें सब कुछ

01 जुलाई 2017 से पूरे भारत भर में सामान और सेवा से जुड़े व्यवसायों पर GST लागू हो चुका है. GST लागू होने के बाद पुरानी टैक्स व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया है. नई टैक्स व्यवस्था से देश के विकास में तेजी देखने को मिल रही है. लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी बहुत से लोग आज भी GST के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं. GST (जीएसटी) क्या है? इसे क्यों लागू किया गया? GST के फायदे क्या हैं? इत्यादि जैसे तमाम सवाल अभी भी लोगों के जेहन में हैं. इसलिए आज हम अपने इस लेख में GST से जुड़ी सभी बेसिक जानकारियां लेकर आए हैं.

इस लेख में हम GST क्या होता है (GST Meaning in Hindi)? GST return क्या है? GST का full form क्या है? GST की विशेषताएं? GST के फायदे क्या हैं? इत्यादि जैसे सभी सवालों के जवाब आपके सामने पेश करेंगे. यानी इस लेख में आपको जीएसटी की पूरी जानकारी दी जाएगी. तो आइए जानते हैं GST की Full Information in Hindi.

जैसा की मैंने आपको बताया इस लेख में हम आपको GST से जुड़ी सभी बेसिक जानकारी देंगे, इसलिए इसकी शुरुआत हम टैक्स की परिभाषा के साथ कर रहे हैं, ताकि हर चीज को सरलता के साथ समझा जा सके.

टैक्स क्या होता है?

टैक्स एक अनिवार्य शुल्क या वित्तीय शुल्क होता है, जिसे सरकार द्वारा किसी व्यक्ति या संगठन से सार्वजनिक कार्यों के लिए सर्वोत्तम सुविधाएं और बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए राजस्व कलेक्ट करने के लिए लिया जाता है. इस धन को सरकार सार्वजनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने में खर्च करती है.

टैक्स के प्रकार

मुख्य रूप से टैक्स दो तरह के होते हैं, पहला Direct Tax और दूसरा है Indirect Tax.

  1. Direct Tax: डायरेक्ट टैक्स वह टैक्स होता है जिसका भुगतान टैक्सपेयर द्वारा सीधे सरकार को किया जाता है. जैसे इनकम टैक्स, वेल्थ टैक्स इत्यादि.
  2. Indirect Tax: इनडायरेक्ट टैक्स में वे टैक्स शामिल होते हैं जिन्हें सरकार द्वारा वस्तुओं के लेन-देन और सेवाओं के शुल्क के रूप में विक्रेता से वसूला जाता है और फिर वह विक्रेता उस टैक्स को अंतिम उपभोक्ता से वसूलता है, इस प्रकार अंतिम उपभोक्ता से टैक्स इनडायरेक्टली सरकार के पास जाता है, जैसे कि GST.

GST क्या है? | What is GST in Hindi

gst kya hai hindi

GST का फुल फॉर्म है: Goods and Services Tax, हिंदी में इसे “माल एवं सेवा कर” कहा जाता है. यानी यह माल (उत्पाद) और सेवाओं पर लगने वाला इनडायरेक्ट टैक्स है. यहां माल का मतलब है, किसी भी तरह की कोई वस्तु जैसे Book, Phone, AC, Car इत्यादि. और सेवा जैसे कि होटल सेवाएं, बैंकिंग सेवाएं, अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा, केबल ऑपरेटर इत्यादि. इस टैक्स को हमें तब चुकाना होता है, जब हम किसी वस्तु को खरीदते हैं या किसी सेवा का इस्तेमाल करते हैं.

01 जुलाई 2017 से भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में GST को लागू किया गया है. अब GST क्या होता है? यह जानने के बाद बारी आती है यह समझने की कि आखिर जीएसटी से पहले देश में किसी तरह का टैक्स सिस्टम लागू था. इससे हमें GST के महत्व और फायदों को समझने में आसानी होगी. तो आइए यह भी जान लेते हैं.

GST से पहले देश में किस तरह की टैक्स व्यवस्था थी?

01 जुलाई 2017 से पहले देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह की indirect tax व्यवस्था थी. चलिए इसे विस्तार से समझते हैं.

GST आने से पहले किसी भी वस्तु के बनने से लेकर बिक्री तक के बीच में राज्य और केंद्र सरकार, अलग-अलग स्टेजों पर, अलग-अलग तरह के कई टैक्स वसूलती थी. उदाहरण के लिए, जब माल तैयार होकर फैक्ट्री से निकलता था तो उस पर उत्पाद शुल्क (excise duty) लगता था. कुछ सामान ऐसे होते थे जिन पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क अलग से लगता था. यदि माल एक राज्य से बनकर किसी दूसरे राज्य में बिकने के लिए जा रहा है तो उसपर केंद्र सरकार केंद्रीय बिक्री कर (Central Sales Tax) वसूलती थी, और राज्य में प्रवेश के दौरान प्रवेश शुल्क (entry tax) लगता था. इसके बाद जगह-जगह पर चुंगी कर अलग से देना पड़ता था.

माल बेचते समय राज्य मुख्य रूप से VAT (Value Added Tax) के रूप में टैक्स वसूलता था. प्रत्येक राज्य के टैक्स वसूलने के अलग-अलग नियम थे, किसी राज्य में ज्यादा टैक्स लगता था तो किसी में कम. कई मामलों में खरीद टैक्स भी देना पड़ता था. यदि वस्तु लग्जरी सामान की श्रेणी में आती थी, तो लग्जरी टैक्स भी देना होता था. यदि वस्तु को किसी रेस्टोरेंट या होटल में उपलब्ध कराना है, तो सर्विस टैक्स अलग से लिया जाता था.

GST के लागू होने से पहले वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले टैक्स कुछ इस प्रकार थे:

  • केंद्रीय उत्पाद शुल्क
  • उत्पाद शुल्क
  • अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
  • अतिरिक्त सीमा शुल्क
  • विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क
  • चुंगी
  • राज्य वैट
  • केंद्रीय बिक्री कर
  • खरीद कर
  • लग्जरी टैक्स
  • मनोरंजन कर
  • प्रवेश कर
  • विज्ञापनों पर कर
  • लाटरी, जुआ और सट्टेबाजी पर कर
  • सर्विस टैक्स
  • सेस और सरचार्ज

लेकिन अब इन सबी indirect taxes की जगह अकेले GST ने ले ली है.

GST क्यों लागू किया गया?

ऊपर आपने पढ़ा कि GST से पहले किस तरह से सरकारें लेन-देन के दौरान टैक्स वसूलती थी. माल को बनने से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने में अनेकों प्रकार के taxes का सामना करना पड़ता था, जो व्यपारियों के साथ-साथ सरकार के लिए भी काफी परेशानी भरा टैक्स सिस्टम था.

भारतीय संविधान में टैक्स संबंधी जो पुराने नियम तय किए गए थे, उनमें वस्तुओं के उत्पादन (production) और सेवाओं पर टैक्स लगाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास था. जबकि वस्तुओं की बिक्री पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता था.

राज्य और केंद्र दोनों की उगाही के कारण ये सब टैक्स की ओवरलैपिंग का कारण बनता था. यानी टैक्स के ऊपर ही टैक्स शुल्क लगता था, जैसे उत्पाद शुल्क के ऊपर राज्य सरकार द्वारा VAT का वसूलना.

अलग-अलग राज्यों ने अलग-अलग श्रेणियों में अपने हिसाब से टैक्स तय कर लिए. इससे हुआ ये कि देश के ही भीतर अलग-अलग जगहों पर वस्तुओं की कीमत में अंतर होने लगा. हालात ऐसे थे कि कई विदेशी कंपनियां तो भारत में माल बनाना और बेचना पसंद भी नहीं करती थी. छोटे व्यापारी और कंपनियां इन टैक्स के नियम कानून में उलझे रहते थे. ये सब चीजें देश के विकास में एक बहुत बड़ी बाधा थी.

देश में इन सभी विसंगतियों को दूर करने के लिए GST को एकीकृत टैक्स कानून के रूप में लाया गया. एक ऐसा टैक्स जिसे माल के उत्पादन से लेकर बिक्री तक लगाया जा सके और सेवाओं पर भी लागू किया जा सके.

सरकार ने उत्पादन और बिक्री के अलग-अलग पेंच को खत्म करने के लिए, GST का केवल एक आधार तय कर दिया: सप्लाई. इसके लिए संसद में बाकायदा संविधान संशोधन की प्रक्रिया अपनाई गई और टैक्स कानूनों में बदलाव किया गया.

GST की प्रमुख विशेषताएं

सरकार का मकसद नए टैक्स सिस्टम को लागू कर पुराने टैक्स सिस्टम की कमियों को दूर करना था. इसलिए 01 जुलाई 2017 को GST लागू किया जाता है, इसकी प्रमुख विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं:

उत्पादन की जगह उपभोग पर टैक्स

नए टैक्स सिस्टम GST में, टैक्स की वसूली तब की जाती है जब किसी सामान या सेवा को बेचा जाता है. यानी यह वसूली सप्लाई के दौरान होती है. वस्तु या सेवा की अंतिम कीमत के साथ निर्धारित GST का भी भुगतान करना होता है. इस टैक्स को वस्तु या सेवा बेचने वाला, खरीदने वाले से वसूलता है. इसके बाद वह इस शुल्क को सरकार के खाते में जमा कर देता है. जितनी बार भी आगे यह खरीद और बिक्री की प्रक्रिया होती है, उतनी ही बार GST चुकाना होता है.

इनपुट क्रेडिट सिस्टम के जरिए टैक्स वापसी

किसी वस्तु के बनने से लेकर अंतिम उपभोक्ता के पास पहुंचने तक के बीच, कई बार खरीद-बिक्री की प्रक्रिया होती है. लेकिन GST सिस्टम में होने वाली हर खरीद-बिक्री प्रक्रिया पर टैक्स चुकाना होता है. ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि इस तरह से तो अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते वस्तु की कीमत और अधिक बढ़ जानी चाहिए. लेकिन ऐसा है नहीं. क्योंकि इसमें input credit system लागू होता है. इस सिस्टम के तहत आखिरी स्टेज पर टैक्स लगने से पहले बीच की खरीद-बिक्री प्रक्रिया के दौरान जिस-जिस ने टैक्स जमा किया है, वह उन्हें वापस मिल जाएगा. इसके बदले में उन्हें credits दिए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल सरकार को GST भुगतान के लिए किया जा सकता है. हर महीने GST रिटर्न भरने के दौरान Tax Credit System के माध्यम से GST को एडजस्ट किया जा सकता है. ये Tax Credit System क्या है, इसे आप आगे पढ़ेंगे.

टैक्स के ऊपर टैक्स का चलन समाप्त

जीएसटी से पहले की टैक्स व्यवस्था में एक वस्तु पर अलग-अलग टैक्स तो लगते ही थे, साथ में टैक्स के ऊपर टैक्स भी देना पड़ता था. क्योंकि सप्लाई चैन में कच्चे माल से लेकर ग्राहक के खरीदने तक हर स्टेज पर बिक्री कर लगाया जाता था. सप्लाई चैन के भीतर प्रत्येक खरीदार वस्तु की कीमत पर आधारित टैक्स का भुगतान करता था, जिसमें पहले लग चुके टैक्स भी शामिल होते थे. इसे cascading tax कहा जाता था. लेकिन GST आने के बाद यह समस्या खत्म हो गई. अब GST का भुगतान अंतिम तौर पर उपभोक्ता (consumer) ही करता है. अंतिम उपभोक्ता से पहले GST का भुगतान करने वालों का पैसा tax credit system से एडजस्ट कर दिया जाता है.

टैक्स पर राज्यों की मनमानी खत्म

तय किए गए GST रेट सभी राज्यों को मानने होंगे. यदि GST में किसी तरह का बदलाव किया जाना है तो उसके लिए एक विशेष जीएसटी परिषद (GST council) बनाई गई है, जिसके अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री (Central Finance Minister) होंगे. सभी राज्यों के वित्त मंत्री भी इस परिषद के सदस्य होंगे. GST council के किसी फैसले पर दो तिहाई शक्ति वोट राज्यों के पास होंगे, और एक तिहाई शक्ति केंद्र के पास होगी. प्रत्येक राज्य को दी जाने वाली वोटिंग पावर बराबर होगी. परिषद द्वारा लिए गए किसी फैसले को लागू करने के लिए, परिषद के तीन चौथाई वोटों की आवश्यकता होगी.

पूरा सिस्टम ऑनलाइन होने की वजह से गड़बड़ी की गुंजाईश नहीं

GST के तहत होने वाले सभी सौदों की जानकारी ऑनलाइन अपलोड होगी, जहां किए गए सौदे की रसीद सप्लाई करने वाले और सप्लाई लेने वाले दोनों के पास मौजूद रहेगी. ये दोनों इन रसीदों की मदद से अपना tax credit प्राप्त कर सकेंगे. यदि सौदों का मिलान नहीं होता है तो जाहिर सी बात है गड़बड़ी पकड़ में आ जाएगी. यहां प्रत्येक स्टेज पर टैक्स जमा करने की जिम्मेदारी ऊपर वाले कारोबारी की होगी, जिससे टैक्स भुगतान की चैन सुचारू रूप से बनी रहेगी. क्योंकि कोई भी कारोबारी अपने टैक्स क्रेडिट का नुकसान नहीं करना चाहेगा.

सरकार GST कैसे वसूलती है?

अब हम समझेंगे कि कैसे सरकार द्वारा GST की वसूली की जाती है या सरकार तक GST का भुगतान पहुंचता कैसे है.

मान लीजिए एक टीवी है, जो किसी फैक्ट्री से बनकर उपभोक्ता (consumer) तक पहुंचता है. लेकिन उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले उसे कई स्टेजों से होकर गुजरना पड़ेगा. इस प्रक्रिया को आसान शब्दों में समझाने के लिए हम नीचे तीन स्टेप्स में इसे बताएंगे. हो सकता है असल में ये स्टेप्स अधिक हों या कम भी हो सकते हैं.

  • जैसे ही टीवी Factory से तैयार होगा, यह wholesaler के पास जाएगा.
  • WholeSaler से यह टीवी Retailer के पास जाएगा.
  • अंत में Retailer से यह टीवी अंतिम ग्राहक यानी consumer तक पहुंचेगा.

जैसा कि हमने ऊपर आपको बताया कि सरकार सप्लाई को GST का आधार मानके चलती है. यानी जो माल या सेवा की सप्लाई करेगा वह टैक्स वसूल कर सरकार को देगा. आप इस उदाहरण में देख सकते हैं, यहां टीवी को सप्लाई चैन के भीतर अंतिम ग्राहक के पास पहुंचने तक तीन बार सप्लाई किया गया, अर्थात तीन बार बेचा गया. इसलिए यहां तीन जगह टैक्स की वसूली हुई:

  1. Factory ने WholeSaler से टैक्स वसूला
  2. WholeSaler ने Retailer से टैक्स वसूला
  3. Retailer ने Consumer से टैक्स वसूला

यहां सरकार Factory से टैक्स लेगी, क्योंकि उसने टीवी बेचा है. Factory इस टैक्स की भरपाई WholeSaler को टीवी बेचते समय करेगी. WholeSaler भरे गए टैक्स की भरपाई Retailer से करेगा और अंत में Retailer इस टैक्स को Consumer से टीवी की कीमत के साथ वसूलेगा. इस प्रकार टैक्स indirectly उपभोक्ता से सरकार तक पहुंच जाएगा. इसिलिए इस टैक्स को indirect tax कहा जाता है.

Input Tax Credit System – जो दोहरे टैक्स भुगतान से बचाता है

ऊपर दिए गए उदाहरण में आपने देखा कि खरीदारी के क्रम में GST सबके द्वारा अदा किया गया. सबसे पहले WholeSaler ने फिर Retailer ने और अंत में Consumer ने. फिर भी टैक्स का भुगतान कहीं पर भी दो बार नहीं  हुआ. वह कैसे? आइए समझते हैं.

दरअसल WholeSaler और Retailer ने खरीदारी के समय जो GST का भुगतान किया था, उसे वो आगे चलकर Tax Credit System के माध्यम से सरकार से वापस प्राप्त कर सकते हैं. GST का monthly return भरने के दौरान वे इसे अपने ऊपर बन रही देनदारी में एडजस्ट करा सकते हैं. टैक्स एडजस्ट करने की इसी प्रक्रिया को Tax Credit System कहा जाता है. इस व्यवस्था का फायदा उठाने के लिए व्यवसायियों के पास, जिन स्टेजों पर बिक्री की गई है, उनकी रसीद होना जरूरी है. 

ऐसा इसलिए क्योंकि खरीदार की रसीद भी सरकार के पास ऑनलाइन जमा होगी और जिसने बेचा है उसकी भी जमा होगी. जब दोनों जमा रसीदों का मिलान सही होगा, तभी बीच वाले व्यवसायियों को Tax Credit का लाभ दिया जाएगा.

चलिए इसे और आसान भाषा में समझने के लिए हम इसे चरणबद्ध तरीके से एक टेबल में आपको दिखाते हैं. यहां हम टीवी की शुरुआती कीमत 10000 रुपए मान लेते हैं, और इस पर 10% GST रख लेते हैं.

खरीद-बिक्री की प्रक्रियाटीवी की कीमत10% GST के साथ कुल कीमतसरकार को दिया जाने वाला टैक्स
Factory मालिक टीवी बेचता है WholeSaler को10000 रुपए10000 + 1000 =11000 रुपए1000 रूपए
WholeSaler 1000 रूपए अपना मुनाफा ऐड कर टीवी बेचता है Retailer को12000 रुपए12000+1200=13200 रुपए200 रुपए (1000 रुपए टैक्स क्रेडिट के जरिए WholeSaler को वापस मिल जाएंगे)
Retailer अपना मुनाफा 1800 रुपए ऐड कर Consumer को टीवी बेचता है15000 रुपए15000+1500=16500 रुपए300 रुपए (1200 रुपए टैक्स क्रेडिट के जरिए Retailer को वापस मिल जाएंगे)
कुल: 1000+200 +300 = 1500 रुपए

इस टेबल में आप देख सकते हैं कि माल (टीवी) का उत्पादक से लेकर अंतिम ग्राहक तक पहुंचने के प्रक्रिया में तीन बार GST का भुगतान किया गया. पहले दोनों स्टेजों पर दिया गया GST सरकार ने Tax Credit System के जरिए WholeSaler और Retailer को वापस कर दिया. अंत में जो GST की राशि अंतिम ग्राहक से ली गई थी, उतनी ही राशि सरकार के पास Net GST के रूप में जाएगी.

GST के फायदे क्या हैं?

जीएसटी लागू होने के बाद देश के टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ी और जवाबदेही में भी बढ़ोतरी हुई है. इस एकीकृत टैक्स कानून से सरकार के साथ-साथ कारोबारियों और उपभोक्ताओं को भी फायदा मिल रहा है. आइए समझते हैं, कैसे.

उपभोक्ताओं को होने वाले फायदे

  • सबसे बड़ी बात, GST लागू होने के बाद तरह-तरह के टैक्स लगने से छुटकारा मिल गया. टैक्स की ओवरलैपिंग होना बंद हो गई, जिससे वस्तुओं की कीमत में अनावश्यक इजाफा होना रुक गया. इससे सीधा आम जनता को फायदा होने लगा.
  • जीवन यापन के लिए आवश्यक जरूरी चीजों पर टैक्स कम रखा गया है, ताकि हमें ये चीजें कम से कम कीमत में उपलब्ध हो सके. इससे आम और गरीब जनता को महंगाई से राहत मिली है.
  • पारदर्शिता बढ़ने की वजह से होने वाली टैक्स चोरी कम हो गई है. वहीं कारोबारियों का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा अब GST के दायरे में आने लगा. इससे सरकार की आमदनी बढ़ेगी जो स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन जैसी सार्वजनिक सुविधाओं को और बेहतर करने में मदद करेगी.

कारोबारियों को होने वाले फायदे

  • कारोबारियों को अब पहले वाले अलग-अलग प्रकार के टैक्सों से छुटकारा मिल गया. चुंगी कर जैसे जगह-जगह लगने वाले करों के बोझ से भी राहत मिल गई. उनके लिए टैक्स के नियमों को समझना एवं भुगतान करना पहले से कहीं अधिक सरल हो गया है. इससे वे तेजी और आसानी के साथ अपने कारोबार को आगे बढ़ा सकते हैं और ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.
  • पहले केंद्र और राज्य सरकारें लघु उद्योगों और उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए टैक्स में रियायत करती थी. इसका लाभ लेने के लिए बड़े-बड़े उद्योपति भी अपने उद्योग के कई हिस्से करके उन्हें छोटे-छोटे उद्योग के रूप में दिखाते थे. लेकिन GST आने के बाद ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. कंपनियां अधिक सस्ता और प्रतियोगी माल बनाकर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य कंपनियों को टक्कर दे सकेंगी.
  • GST सिस्टम में कारोबार संबंधी सभी डाक्यूमेंट्स ऑनलाइन कर दिए गए हैं. यदि documents कहीं खो जाते हैं या उनमें कहीं कोई गलती हो जाती है, तो आसानी से उन्हें सुधारा जा सकता है. कारोबारियों को बेवजह दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे.

सरकार को होने वाले फायदे

  • GST के कारण टैक्स चोरी की संभावनाएं काफी हद तक कम हो जाएंगी. पहले वस्तुओं के उत्पादन से लेकर बिक्री तक की प्रक्रिया में बहुत सी जगहों पर काम को छुपा लिया जाता था. ऐसे में सरकार को उन पर टैक्स नहीं मिल पाता था. लेकिन GST आने के बाद ये काम भी सरकार की नजरों में रहेंगे, जिससे सरकार की कमाई में बढ़ोतरी होगी.
  • पहले के टैक्स सिस्टम में राज्यों की मनमानी की वजह से अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग टैक्स वसूला जाता था, परिणामस्वरुप चीजों के दाम एक जैसे न होकर कहीं अधिक तो कहीं ज्यादा होते थे. ऐसे में कुछ लोग इसका फायदा उठाकर आसपास के राज्यों में सस्ते सामान की तस्करी करते थे. लेकिन अब पूरे देश में एक जैसे टैक्स (जीएसटी) की वजह से वस्तुओं के दाम एक जैसे होंगे और तस्करी पर लगाम लगेगी.
  • टैक्सों की संख्या घटकर एक जैसा टैक्स होने की वजह से केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों पर लोड कम होगा. वहीं सब कुछ ऑनलाइन होने की वजह से रजिस्ट्रेशन और टैक्स संबंधी डिटेल्स पर निगरानी करना आसान हो जाएगा. इससे रिकवरी की लागत में कमी आएगी, साथ ही सरकार के लिए टैक्स प्रबंधन का काम आसान हो जाएगा.
  • हर चरण पर खरीदारी और बिक्री की रसीदों का मिलान करना जरूरी होगा. तभी पहले के चरणों में जमा किए गए tax credit का फायदा कारोबारियों को मिल पाएगा. अब यहां हर किसी को बिल देना और बाद में उनकी रसीद जमा करना जरूरी होगा. इससे ब्लैक मार्केट पर लगाम कसना आसान हो जाएगा.

GST कितने प्रकार के होते हैं? | GST Types in Hindi

वैसे तो GST एक ही तरह का टैक्स है, लेकिन इसे चार अलग-अलग नामों से वसूला जाता है. इन्हें हम GST के प्रकार भी बोल सकते हैं, जो कुछ इस तरह से हैं:

CGST – सीजीएसटी यानी “Central Goods and Services Tax“, जिसका मतलब है “केंद्रीय माल एवं सेवा कर”. जब किसी एक ही राज्य के भीतर दो लोगों के बीच में सौदा होता है, तो टैक्स को CGST+SGST के रूप में वसूला जाता है. यहां CGST टैक्स का वो हिस्सा होता है जिसे केंद्र सरकार द्वारा वसूला जाता है, जो कि कुल टैक्स का आधा होता है. बाकी का आधा हिस्सा राज्य सरकार के पास जाता है. 

SGST – एसजीएसटी यानी “State Goods and Services Tax“, जिसका मतलब है “राज्य माल एवं सेवा कर”. जैसा कि हमने पहले आपको बताया, एक ही राज्य के भीतर दो लोगों के बीच होने वाले सौदे में CGST+SGST दोनों को मिलाकर टैक्स वसूला जाता है. यहां SGST टैक्स का वह हिस्सा होता है जो राज्य सरकार के खाते में जाता है. यह केंद्र को देने के बाद टैक्स का बचा आधा हिस्सा होता है.

IGST – आईजीएसटी का फुल फॉर्म है “Integrated Goods and Services Tax“, हिंदी में मतलब हुआ “एकीकृत माल एवं सेवा कर”. यह टैक्स तब वसूला जाता है जब सौदा दो अलग-अलग राज्यों के कारोबारियों के बीच होता है. इस टैक्स को केंद्र सरकार वसूलती है, जिसका आधा हिस्सा वह खुद रखती है और आधा हिस्सा उस राज्य को दे देती है जिसमें माल भेजा जाता है (IGST = CGST+SGST या CGST+UTGST). इस टैक्स में माल सप्लाई करने वाले राज्य को कोई हिस्सा नहीं मिलता.

UTGST – यूटीजीएसटी का मतलब है “Union Territory Goods and Services Tax“, हिंदी में अर्थ है “केंद्र शासित प्रदेश माल एवं सेवा कर”. यह टैक्स तब वसूला जाता है जब सौदा किन्हीं दो व्यापारियों के बीच केंद्र शासित प्रदेश के भीतर होता है. 12 अप्रैल 2017 को लागू हुए कानून The Union Territory Goods and Services Tax Act. के तहत, इस टैक्स को वसूलने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया है. इस टैक्स को CGST+UTGST के रूप में वसूला जाता है.

GST की पाँच दरें | 5 Types of GST Rate in Hindi

GST council द्वारा अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं के लिए जीएसटी के कुल 5 स्लैब बनाए गए हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:

00% GST: इस स्लैब में उन वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया गया है, जो जीवन यापन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं, जैसे कि अनाज, सब्जियां, नमक, गुड़, कॉलेज, स्कूल इत्यादि. 

05% GST: जीवन यापन के लिए सामान्य आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को इस स्लैब में रखा गया है, जैसे चीनी, चाय, मसाले, उर्वरक इत्यादि.

12% GST: वो वस्तुएं और सेवाएं जो रोजमर्रा के जीवन में काम आती हैं, जैसे बिस्कुट, नमकीन, दवाइयां, डेयरी उत्पाद, छाता इत्यादि.

18% GST: ऐसी वस्तुएं जो मध्यम स्तर का जीवन जीने वाले लोगों के काम आती हैं, जैसे कि आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, रेफ्रिजरेटर इत्यादि.

28% GST: हानिकारक श्रेणी में आने वाली वस्तुएं और विलासिता की (luxury) वस्तुएं, जैसे गुटखा, पान मसाला, शराब, कार, फाइव स्टार होटल में ठहरना इत्यादि.

आप देख सकते हैं कि किस तरह से सरकार ने सब्जी और अनाज जैसी जीवन यापन के लिए अत्यंत जरूरी चीजों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा है. साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर भी शून्य प्रतिशत टैक्स रखा गया है. वहीं ऐसी वस्तुएं जो विलासिता की हैं या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, इन पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स रखा गया है. इससे स्पष्ट है कि सरकार ने GST को एक न्यायपूर्ण टैक्स के रूप में पेश करने की कोशिश की है.

जीएसटी रिटर्न क्या होता है? | GST Return in Hindi

GST के तहत रजिस्टर्ड कारोबारियों को अपने लेन-देन का विवरण सरकार को दिखाना होता है. इन विवरणों को जीएसटी रिटर्न फॉर्म में भरकर जमा किया जाता है. इस फॉर्म में सभी बिक्रियों और खरीदारियों के साथ-साथ काटे गए टैक्स और भरे गए टैक्स का भी विवरण देना होता है. यदि आपकी कोई टैक्स देनदारी बकाया (tax liability) है, तो उसे भी इसके साथ जमा करना होता है. इसी विवरण को जीएसटी रिटर्न (GST Return) कहा जाता है.

अपनी कैटेगरी के हिसाब से कारोबारियों को हर महीने या प्रत्येक तिमाही GST रिटर्न भरना पड़ता है. इनके अलावा प्रत्येक वित्त वर्ष पूरा होने के बाद भी सबको अलग-अलग वार्षिक रिटर्न (Annual Return) भरना पड़ता है. 5 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाले कारोबारियों को हर महीने GST return दाखिल करना होता है. 5 करोड़ से कम टर्नओवर वाले कारोबारी QRMP स्कीम (Quarterly Return Filing and Monthly Payment of Taxes) के तहत हर तिमाही में रिटर्न दाखिल कर सकते हैं. यदि वे QRMP स्कीम नहीं अपनाते हैं तो उन्हें भी हर महीने GST return भरना होगा.

GST रजिस्ट्रेशन किन कारोबारियों के लिए जरूरी है?

जीएसटी रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता निम्नलिखित शर्तों के आधार पर निर्धारित की गई है.

टर्नओवर लिमिट के आधार पर 

सामान्य राज्य के भीतर यदि किसी कारोबारी का सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपए या इससे अधिक है, तो उसके लिए GST registration लेना अनिवार्य है. वहीं अगर कारोबारी किसी विशेष राज्य में कारोबार करता है और उसका सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपए से ज्यादा है, तो उसके लिए GST registration कराना अनिवार्य है. विशेष राज्य में जम्मू-कश्मीर, मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और उत्तराखंड शामिल हैं.

बिना टर्नओवर लिमिट के

नीचे कुछ ऐसे बिज़नेस दिए गए हैं, जिन पर टर्नओवर की शर्त लागू नहीं होती है, इनके लिए GST रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य होता है.

  • अन्तर्राजिय कारोबार – यदि कोई व्यक्ति अपने राज्य से बाहर किसी दूसरे राज्य में सामान या सेवा बेचना चाहता है तो उसके लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है.
  • ई-कॉमर्स कंपनी और सप्लायर – वे कंपनियां जो ऑनलाइन शॉपिंग या ऑनलाइन सेवाएं देती हैं, उनके लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है. जैसे Snapdeal, Flipkart इत्यादि.
  • डिस्ट्रीब्यूटर्स या इनपुट सर्विस डिस्ट्रीब्यूटर्स – ऐसे कारोबारी जो किसी क्षेत्रीय केंद्र या हेड ऑफिस की तरफ से माल खरीदते हैं और कई अलग-अलग सेंटरों से माल बेचते हैं, उनके लिए भी GST registration लेना जरूरी है. ये GST का भुगतान करने के लिए हेड ऑफिस को मिले इनपुट क्रेडिट का इस्तेमाल कर सकते हैं, इसलिए इन्हें इनपुट सर्विस डिस्ट्रीब्यूटर्स कहा जाता है.
  • एग्रीगेटर – वो कंपनियां जो अपनी वेबसाइट या पोर्टल पर लिंक के माध्यम से यूजर्स को दूसरी कंपनियों के प्रोडक्ट्स तक ले जाने का काम करती हैं, एग्रीगेटर्स कहलाती हैं. ये कंपनियां अपनी वेबसाइट पर आने वाले ग्राहकों को दूसरी कंपनियों के प्रोडक्ट्स की विशेषताएं बताती हैं, comparison पेश करती हैं और प्रोडक्ट खरीदने के लिए लिंक भी प्रदान करती हैं. जैसे Uber, Ola, Policybazaar इत्यादि.
  • OIDAR सर्विस – OIDAR सर्विस का मतलब है Online Information Database Access and Retrieval Services. ये विदेशी कंपनियां होती हैं को इंटरनेट और नेटवर्किंग के जरिए लोगों को सेवाएं देती हैं. जैसे ऑनलाइन मूवीज, ऑनलाइन कोर्स, क्लाउड सर्विस इत्यादि.
  • रजिस्टर्ड कारोबारी के एजेंट – वे कारोबारी जो किसी रजिस्टर्ड कारोबारी के एजेंट के रूप में काम करते हैं, उनके लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है. 

Conclusion

उम्मीद है आपको हमारा यह लेख “GST क्या होता है (GST in Hindi) ” जरूर पसंद आया होगा. हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है GST (जीएसटी) से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े. अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें.

Monika Chauhan
Monika Chauhanhttps://hindivibe.com/
मोनिका चौहान Hindivibe की Co-Founder और Author हैं. इन्हें सामान्य ज्ञान से संबंधित जानकारियों का अध्ययन करना और उनके बारे में लिखना अच्छा लगता है.

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