Homeइनफॉर्मेटिवकैसे बनते हैं नोट? जानें सरकार बहुत सारे पैसे क्यों नहीं छापती

कैसे बनते हैं नोट? जानें सरकार बहुत सारे पैसे क्यों नहीं छापती

हम कुछ भी सामान खरीदने के बदले में नकद भुगतान के लिए नोट और सिक्कों का इस्तेमाल करते हैं. आज हम इन्ही नोट और सिक्कों से जुड़ा एक स्पेशल आर्टिकल आपके समक्ष लेकर आए हैं, जहां नोट और सिक्कें कैसे बनते हैं, इन्हें कौन जारी करता है, कितनी मात्रा में और किसके निर्देश पर ये बनाए जाते हैं जैसे सवालों से जुड़ी जानकारी आपको दी जाएगी. साथ ही आपको यह भी बताएंगे कि सब कुछ सरकार के हाथ में होते हुए भी, क्यों सरकार ज्यादा या अनगिनत मुद्रा नहीं छापती.

कागज जैसे दिखाई देने वाले नोट, असल में कागज से नहीं बने होते. यही कारण है कि ये बार-बार मुड़ने और धुलने पर भी लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं. तो नोट बनाने के लिए किस सामग्री और तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है? आइए जानते हैं पूरी जानकारी.

नोट कैसे बनते हैं?

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हम रुपयों के रूप में नकद लेन-देन के लिए जिन नोटों का इस्तेमाल करते हैं, असल में वे नोट कागज के नहीं बल्कि कॉटन यानी कपास के बने होते हैं. इनमें 75% कपास और 25% लिनन का इस्तेमाल किया जाता है. नोटों की लंबी लाइफ के लिए इनमें जेलाटीन एडहेसिव का घोल मिलाया जाता है. इसिलिए, इनकी लाइफ किसी सामान्य कागज से ज्यादा होती है और ये बार-बार मुड़ने और धुलने पर भी जल्दी खराब नहीं होते.

कपास और लिनन का मिश्रण नोट को हल्का बनाता है और इसे फ्लेक्सिबिलिटी प्रदान करता है. इसके अलावा यह नोट कागज की अपेक्षा अधिक मजबूत होता है और इसके फटने के चांसेस बहुत कम होते हैं. कॉटन और लिनन का इस्तेमाल असली और नकली नोटों के बीच अंतर का पता लगाना आसान बनाता है. साथ ही यह पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर विकल्प है, क्योंकि इसके लिए पेड़ों को नहीं काटना पड़ता.

नोट कैसे छापे जाते हैं?

नोट छापने के लिए पेपर शीट को एक खास मशीन सायमंटन में डाला जाता है. इसके बाद एक अन्य इंटाब्यू नामक मशीन में color किया जाता है. अब शीट की कटाई कर नोटों को अलग किया जाता है और खराब नोटों को इनसे निकाल लिया जाता है. एक शीट से 32 से 48 नोट निकाले जाते हैं. 

नोटों पर डाली जाने वाली संख्या को चमकीली स्याही से मुद्रित किया जाता है. साथ ही नोट में चमकीले रेशों को डाला जाता है, जिन्हें अल्ट्रावायलेट रोशनी में देखा जा सकता है. 

नोट कहां बनाए जाते हैं?

भारत में नोट छापने के लिए चार नोट प्रेस हैं:

  1. बैंक नोट प्रेस, देवास (मध्य प्रदेश)
  2. करेंसी नोट प्रेस, नासिक (महाराष्ट्र)
  3. करेंसी नोट प्रेस, मैसूर (कर्नाटक)
  4. करेंसी नोट प्रेस, सालबोनी (पश्चिम बंगाल)

देवास और नासिक नोट प्रेस, भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के स्वामित्व वाली एक कंपनी Security Printing and Minting Corporation of India Limited (SPMCIL) के अधीन है, जो भारत सरकार के लिए छपाई और खनन गतिविधियों का संचालन करती है. मैसूर और सालबोनी नोट प्रेस, RBI के विशेष प्रभाग Bharatiya Reserve Bank Note Mudran (BRBNM) के अधीन है, जो देश में बैंक नोट की आवश्यकता के एक बड़े हिस्से की आपूर्ति करता है, और शेष आवश्यकताओं को SPMCIL द्वारा पूरा किया जाता है. देश में बढ़ती आबादी को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1997 में अमेरिका, कनाडा और यूरोप की कंपनियों को नोटों का ऑर्डर देना शुरू किया था. बाद में 1999 में मैसूर और सालबोनी में नोट प्रेस की शुरुआत के बाद भारत नोट छपाई के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गया.

नोटों के लिए कागज और स्याही कहां से आते हैं?

भारत में नोट छापने के लिए जिस कागज का इस्तेमाल किया जाता है, वह होशंगाबाद स्थित सिक्योरिटी पेपर मिल से आता है. यह मिल नोट और स्टाम्प के लिए पेपर बनाती है. लेकिन ज्यादातर कागज यूके, जर्मनी और जापान से आयात किया जाता है. RBI की मानें तो भारत में नोट के लिए 80 फीसदी कागज देश के बाहर से आयात किया जाता है. 

भारत में नोट की छपाई के लिए जिस स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, वह स्विट्जरलैंड की कंपनी SICPA से आयात की जाती है. एक्सपर्ट्स के अनुसार इसमें इंटैगलियो, फ्लूरोसेंस और ऑप्टिकल वेरियबल इंक का इस्तेमाल 

किया जाता है.

सिक्के कैसे बनते हैं?

आमतौर पर सिक्के स्टील और कॉपर-निकल जैसी धातुओं से बनाए जाते हैं, जिनका एक standardized वजन होता है. इन सिक्कों पर प्रायः चित्र, अंक और शब्द बने हुए होते हैं. टकसाल (सिक्के ढ़ालने का कारखाना) में इनका उत्पादन एक साथ बड़ी मात्रा में किया जाता है.

सिक्के कहां ढाले जाते हैं? 

Security Printing and Minting Corporation of India Limited में शामिल भारत सरकार टकसाल की चार यूनिटों में सिक्के ढालने का काम किया जाता है. ये units निम्नलिखित स्थानों पर मौजूद हैं:

  • मुंबई
  • कोलकाता
  • हैदराबाद
  • नॉएडा

कौन-सा सिक्का किस टकसाल में बना है, इसकी पहचान के लिए इन पर अलग-अलग निशान अंकित किए जाते हैं. यदि सिक्के में छपी तारीख के नीचे एक टुटा हुआ डायमंड दिखाया गया है, तो यह चिन्ह मुंबई टकसाल (मिंट) का है. हैदराबाद में बने सिक्के के ऊपर तारीख के नीचे स्टार छपा हुआ होता है. वहीं नोएडा में बने सिक्के पर एक डॉट (बिंदु) अंकित किया गया होता है. जबकि कोलकाता में बने सिक्के पर कोई निशान नहीं दिया जाता. इन मिंट्स में सिक्कों के अलावा सरकारी मेडल और अवॉर्ड इत्यादि भी बनाए जाते हैं.

भारत में पैसे की छपाई को कौन नियंत्रित करता है?

भारत में करेंसी का नियंत्रण रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के पास होता है, जिसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है. इसके अलावा बैंक की अन्य जिम्मेदारियों में देश में credit system को नियंत्रित करना और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए मौद्रिक नीति (monetary policy) का इस्तेमाल करना शामिल हैं. मौद्रिक नीति, बैंक के कार्यों का एक सेट होता है, जिससे एक अर्थव्यवस्था में उपलब्ध करेंसी की मात्रा और नई करेंसी की सप्लाई करने वाली प्रणालियों (ब्याज दर, बैंक क्रेडिट, परिसंपत्ति मूल्य आदि) को कंट्रोल किया जाता है.

rupees currency papersheet

1934 से पहले पैसे प्रिंट करने की जिम्मेदारी भारत सरकार की थी. लेकिन बाद में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 के तहत यह भूमिका RBI को सौंप दी गई. विशेष कर RBI एक्ट का सेक्शन 22, बैंक को करेंसी जारी करने का अधिकार देता है.

RBI की सीमाएं और भारत सरकार

भले ही RBI के पास पैसे छापने की पावर है, लेकिन बैंक के अधिकतर कार्यों को करने से पहले सरकार की अंतिम मंजूरी आवश्यक होती है. उदाहरण के लिए किसी बैंक नोट के सुरक्षा फीचर्स सहित मूल्य और डिजाइन का निर्धारण सरकार द्वारा ही किया जाता है. आरबीआई के पास 10000 रुपए तक के नोट छापने का अधिकार है. हालांकि, यदि रिज़र्व बैंक इससे अधिक की कोई करेंसी छापना चाहता है तो इसके लिए सरकार को रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट में संशोधन करना होगा. 

इसके अलावा जब रिज़र्व बैंक प्रत्येक वर्ष नोटों की मांग का अनुमान लगाता है, तो उसे एक लिखित अनुरोध दर्ज करना होता है, जिस पर सरकारी अधिकारियों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं. इस तरह के अंतिम निर्णय लेते समय, सरकारी अधिकारी रिज़र्व बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों की सलाह पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं.

यहां भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में लिया गया नोटबंदी का एक आश्चर्यजनक निर्णय ध्यान देने योग्य है, जिसमें सरकार ने घोषणा की कि वह जालसाजी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए 500 और 1000 रुपए के नोटों को संचलन से वापस ले रही है. इसके बाद नए 500 रुपए और 2000 रूपए के नोट जारी किए जाते हैं. इस समय भारत में 5, 10, 20, 50, 100, 200, 500 और 2000 रूपए के नोट प्रचलन में हैं, जिनमें 50 पैसे, 1, 2, 5 और 10 रूपए के सिक्के भी शामिल हैं.

सिक्कों की ढलाई का काम कौन देखता है?

नोटों की प्रिंटिंग का काम रिज़र्व बैंक देखता है, तो सिक्कों की ढलाई का काम भारतीय सरकार द्वारा हैंडल किया जाता है. सिक्कों को सरकार के नियंत्रण वाली चारों टकसालों में बनाया जाता है. यद्यपि सरकार सिक्कों की ढलाई को संभालती है, तो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) इन्हें संचलन (circulation) के लिए जारी करता है.

सरकार ज्यादा पैसे क्यों नहीं छापती?

जैसा कि हमने पहले आपको बताया, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) देश का केंद्रीय बैंक है, जो यह तय करता है कि कितने नोट छापने हैं. यह फैसला RBI की मौद्रिक नीति (monetary policy) का एक हिस्सा होता है. यह वह नीति है जो देश की अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा निर्धारित करती है.

अब हम उस सवाल पर आते है, जो लगभग हर इंसान के मन में कभी न कभी जरूर आता है. सवाल है कि जब पैसा छापना देश के अपने हाथ में होता है, तो सरकार ज्यादा मात्रा में पैसा क्यों नहीं छापती, ताकि प्रत्येक व्यक्ति के पास खूब पैसा हो जाए और कोई गरीब ही ना रहे?

तो आपको बता दें कि यदि सरकार सच में ऐसा कर देती है, तो इससे गरीबी दूर नहीं होगी बल्कि महंगाई और बढ़ जाएगी और बहुत कम लोग होंगे जो अपनी जरूरत की चीजें खरीद पाएंगे. चलिए इसे एक उदाहरण से समझते हैं.

मान लेते हैं, किसी देश में केवल तीन लोग रहते हैं. जिनका नाम है रमेश, सुरेश और अनुज और इन तीनों के पास क्रमश: 200, 300 और 400 रुपये हैं. इसके अलावा देश में केवल एक ही वस्तु है, जिसे वे तीनों अपने सारे धन का उपयोग करके खरीदेंगे. मान लेते हैं वह वस्तु है चावल.

इसलिए, पूरे देश की कुल संपत्ति हुई = 200 + 300 + 400 = 900 रुपये

देश में कुल वस्तु की मात्रा है = 90 किलो चावल.

चूंकि वे अपनी पूरी संपत्ति इसे खरीदने में खर्च करेंगे, इसलिए 1 किलोग्राम चावल की कीमत हुई = 900/90 = 10 रुपये. अब रमेश के पास 200 रुपये हैं, तो वह खरीदता है 20 किलो, सुरेश के पास 300 रुपये है, इसलिए वह खरीदता है 30 किलो और अनुज 400 रुपये में खरीदता है 40 किलो.

अब मान लेते हैं उस देश की सरकार और अधिक नोट छाप देती है, जिससे उन तीनों के पास अब 400, 600 और 800 रूपए हो जाते हैं. लेकिन चावल की मात्रा उतनी ही रहती है, जो कि 90 किलो है. इसलिए अब एक किलो चावल की नई कीमत हो जाती है = 1800/90 = 20 रुपये किलो.

अब जब तीनों चावल खरीदने जाते हैं, तो रमेश को मिलते हैं 20 किलो, सुरेश को मिलते हैं 30 किलो और अनुज को मिलते हैं 40 किलो. यह उतनी ही मात्रा है जितनी वे पहले खरीद सकते थे, लेकिन कीमत बढ़ गई. इससे पता चलता है कि इस तरह से नोट छापना कितना व्यर्थ है. यदि वह देश सच में अमीर होना चाहता है, तो उन्हें चाहिए कि पैसों की सप्लाई के साथ वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन भी बढ़ाया जाए. यदि चावलों की सप्लाई भी पैसों की सप्लाई के साथ डबल कर दी जाए, तो चावलों की कीमत में कोई बदलाव नहीं होगा.

केवल पैसे ज्यादा छापना सबके लिए अच्छा नहीं हो सकता. इसलिए जरूरी है कि वस्तुओं और सेवाओं की भी मात्रा बढ़ाई जाए. अगर ऐसा नहीं होता है और केवल करेंसी अधिक छापी जाती है, तो पैसे की कीमत में गिरावट आनी तय है. यदि संपत्ति के साथ-साथ चावलों का उत्पादन बढ़ा दिया जाए, तो वे तीनों उसी दाम में अधिक चावल खरीद सकते हैं.

आप इसी अवधारणा को पूरे देश में लागू करके देख सकते हैं. यदि RBI अरबों रुपये छापकर सबकी आमदनी दोगुनी कर दे, तो देश में प्रत्येक वस्तु की कीमत डबल हो जाएगी. इसे आप demand और supply के सिंपल नियम से भी समझ सकते हैं. यदि सबके पास अधिक पैसा है, तो हर सेवा और सामान की मांग भी आनुपातिक रूप से बढ़ जाएगी, क्योंकि इस अवस्था में हर कोई अमीर हो जाता है, और वस्तु को ऊंचे दामों में खरीदने में सक्षम होता है. इससे देश में सभी वस्तुओं और सेवाओं के दाम बढ़ जाते हैं, जिसे इन्फ्लेशन (inflation) कहा जाता है.

यही कारण है कि प्रत्येक देश अपनी GDP बढ़ाने पर अधिक बल देता है, जो कि उत्पादन का एक माप है. GDP के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें.

नोटों की छपाई कैसे तय होती है?

किसी देश में कितने नोट छपेंगे यह फैसला सरकार और सेंट्रल बैंक द्वारा उस देश की जीडीपी, राजकोषीय घाटा, विकास दर और कितने नोट खराब हुए के हिसाब से लिया जाता है. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) वर्ष 1956 से ‘मिनिमम रिजर्व सिस्टम (MRS)’ के तहत नोटों की छपाई करता है.

मिनिमम रिज़र्व सिस्टम क्या है? – Minimum Reserve System in Hindi

भारत में करेंसी नोटों की छपाई के लिए RBI, मिनिमम रिजर्व सिस्टम को फॉलो करता है, जो देश में वर्ष 1956 से लागू हुआ था. इससे पहले देश में ‘प्रोपोर्शनल रिजर्व सिस्टम’ के आधार पर नोटों की छपाई होती थी.

मिनिमम रिजर्व प्रणाली के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक को नोटों की छपाई से पहले 200 करोड़ रूपए की संपति को रिजर्व रखना होता है, जिसमें 115 करोड़ रुपए का सोना और 85 करोड़ रूपए की विदेशी मुद्राएं शामिल होती हैं. इसके बाद बैंक देश की अर्थव्यवस्था की जरूरत के अनुसार कितने भी नोट छाप सकता है. लेकिन इसके लिए आरबीआई को सरकार से अनुमति लेनी होती है.

भारत में 1 दिन में कितने रुपए छापे जाते हैं?

भारत में नोटों की छपाई प्रतिदिन नहीं होती. लेकिन, RBI द्वारा प्रत्येक वर्ष 2000 करोड़ करेंसी नोट छापे जाते हैं. इसकी लगभग 40 प्रतिशत लागत कागज और स्याही में लगती है, जिन्हें विदेशों से आयात किया जाता है.

फटे हुए नोटों के साथ क्या किया जाता है?

यदि कोई नोट कट-फट जाता है या पुराना हो जाता है, जो चलन में आने योग्य नहीं रहता उसे बैंकों द्वारा जमा कर लिया जाता है. इस नोट को दोबारा बाजार में नहीं भेजा जाता. पहले इन जमा किए गए नोटों को RBI द्वारा जला दिया जाता था, लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं है. आरबीआई ने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के मकसद से 9 करोड़ रुपये की लागत से एक मशीन खरीदी है. यह मशीन इन खराब नोटों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है और फिर इन टुकड़ों को गलाकर, इन्हें ईंट का आकार दिया जाता है. इन ईंटों को कई कामों के लिए प्रयोग में लिया जाता है.

निष्कर्ष (Conclusion):

उम्मीद करती हूँ आपको मेरा यह लेख “नोट और सिक्के कैसे बनते हैं और सरकार बहुत सारे पैसे क्यों नहीं छापती” जरूर पसंद आया होगा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है नोट या पैसे कैसे बनते हैं से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की, ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े. अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो, तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें.

Monika Chauhan
Monika Chauhanhttps://hindivibe.com/
मोनिका चौहान Hindivibe की Co-Founder और Author हैं. इन्हें सामान्य ज्ञान से संबंधित जानकारियों का अध्ययन करना और उनके बारे में लिखना अच्छा लगता है.

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