चंद्रयान (Chandrayaan), चंद्रमा से जुड़ी खोज के लिए शुरू किए गए भारतीय मिशन की एक श्रृंखला है, जिसकी शुरुआत चंद्रयान-1 के साथ होती है. Chandrayaan-1 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का पहला चंद्र मिशन था, जिसने चांद पर पानी का पता लगाया था. इस मिशन की शुरुआत 22 अक्टूबर 2008 में की गई थी. असल में इस ऑपरेशन को दो साल तक चलाने की योजना थी, लेकिन रेडियो संपर्क टूट जाने की वजह से यह मिशन 28 अगस्त 2009 को समाप्त हो गया.
इसके बाद 22 जुलाई 2019 के दिन, भारत के पहले चंद्र लैंडर के रूप में डिजाइन किए गए Chandrayaan-2 को लॉन्च किया जाता है. इस स्पेसक्राफ्ट में एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर शामिल होता है. ऑर्बिटर का मकसद था, एक साल तक 100 किलोमीटर की ऊंचाई से चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा में परिक्रमा करना. जबकि लैंडर (Vikram Lander) को 7 सितंबर के दिन चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में लैंड कराने की योजना थी, जहां सतह के नीचे पानी होने का अनुमान है. विक्रम लैंडर अपने साथ एक छोटा रोवर (Pragyan Rover) लिए हुए था. लैंडर और रोवर को एक चंद्र दिन (पृथ्वी के 14 दिन) के लिए ऑपरेट किया जाना था, लेकिन विक्रम के चंद्रमा को छूने से पहले ही लगभग 2 किलोमीटर की ऊंचाई से संपर्क टूट जाता है और यह मिशन फ़ैल हो जाता है.
लेकिन ISRO यहीं नहीं रुकता और वह अपनी इस असफलता से सीख लेते हुए, एक बार फिर से अपने मिशन को पूरा करने में लग जाता है. इस बार चंद्रयान-2 मिशन में हुई सभी गलतियों को सुधारने की कोशिश की गई है और इस नए मिशन को नाम दिया गया है चंद्रयान-3. जल्द ही इसरो अपने इस नए मिशन को लॉन्च करने वाला है. इसलिए आज के इस लेख में हम आपको Chandrayaan-3 मिशन के बारे में बताएंगे, जहां चंद्रयान-3 क्या है? इसके उद्देश्य क्या हैं? इसके फायदे और चंद्रयान-3 काम कैसे करेगा? इत्यादि जैसे सवालों के जवाब दिए जाएंगे. तो आइए जानते हैं इस पूरी जानकारी के बारे में.
चंद्रयान-3 क्या है? | What is Chandrayaan-3?
चंद्रयान-3 इसरो का वो मिशन है, जो चंद्रयान-2 का अनुसरण करेगा. यानी जिस मकसद से चंद्रयान-2 को 2019 में लॉन्च किया गया था, उसी मकसद के साथ एक बार फिर से Chandrayaan-3 को लॉन्च किया जाएगा, जो दुनियाभर में ISRO की खुद के दम पर चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग और रोविंग की क्षमता को सिद्ध करेगा.
इसमें Lander और Rover payloads शामिल होंगे. इसे सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा से LVM3 रॉकेट के साथ लॉन्च किया जाएगा. यह propulsion module 100 km चंद्र कक्षा तक इन Lander और Rover कॉन्फ़िगरेशन को अपने साथ रखेगा. इस propulsion module में चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी की spectral और Polarimetric मापों के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक उपकरण Spectro-polarimetry of Habitable Planet Earth (SHAPE) शामिल किया गया है.
चंद्रयान-3 कैसे काम करेगा? | How will Chandrayaan-3 Work?
चंद्रयान-3 में एक स्वदेशी Lander Module (LM), Propulsion Module (PM) और एक Rover शामिल हैं, जिसका उद्देश्य अंतरग्रहीय मिशनों (Inter Planetry Missions) के लिए जरूरी नई तकनीक को विकसित और प्रदर्शित करना है. Propulsion Module का मुख्य काम होगा Lander Module को लॉन्च व्हीकल से अंतिम 100 किलोमीटर गोलाकार ध्रुवीय चंद्र कक्षा तक लेकर जाना और फिर LM को अलग कर देना. इसके अलावा PM के पास value addition के तौर पर एक और वैज्ञानिक पेलोड रहेगा, जिसे LM के अलग होने के बाद संचालित किया जाएगा. Chandrayaan-3 मिशन के लिए जिस launcher का इस्तेमाल किया जाएगा वह LVM3 (Geosynchronous Launch Vehicle Mk III) है, जो एकीकृत मॉड्यूल को चांद के 170 x 36500 आकार के Elliptic Parking Orbit में स्थापित करेगा.
अब Lander को चांद पर धीरे-धीरे लैंड कराया जाएगा. लैंड करने के बाद लैंडर निर्दिष्ट lunar site पर जमीन को नरम करेगा और फिर रोवर को स्थापित करेगा, जो अपने ऑपरेशन काल के दौरान चंद्रमा की सतह पर घूमते हुए रासायनिक विश्लेषण (chemical analysis) करेगा. लैंडर और रोवर lunar surface पर वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट्स करने के लिए payloads का इस्तेमाल करेंगे.
Payloads के बारे में
एक वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरण जिसे अंतरिक्ष में किसी विशेष मकसद के लिए satellite पर ले जाया जाता है, पेलोड (Payload) कहलाता है. यहां हम आपको लैंडर और रोवर पेलोड्स के बारे में बता रहे हैं.
Lander Payloads: लैंडर पेलोड्स में चंद्रमा की सतह पर थर्मल कंडक्टिविटी और तापमान के माप के लिए Chandra’s Surface Thermophysical Experiment (ChaSTE), लैंडिंग साइट के आसपास सिस्मीसिटी मापने के लिए (Moonquakes और चांद के internal structure की जानकारी के लिए) Lunar Seismic Activity (ILSA), प्लाज्मा डेंसिटी और इसकी विविधताओं के आकलन के लिए (चांद से जुड़ी मौसम संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिए) Langmuir Probe (LP) इत्यादि वैज्ञानिक उपकरण शामिल हैं. साथ ही पृथ्वी की सतह से चंद्रमा की सतह के बीच दूरी से जुड़े अध्ययन (lunar laser raising studies) के लिए NASA की तरफ से एक निष्क्रिय Laser Retroreflector Array (LRP) समायोजित किया गया है.
Rover Payloads: रोवर पेलोड्स में लैंडिंग स्थल के आसपास के क्षेत्र में elemental compositions का पता लगाने के लिए Alpha Particle X-Ray Spectrometer (APXS) और Laser Induced Breakdown Spectroscope (LIBS) जैसे उपकरण शामिल हैं.
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चंद्रयान-3 मिशन के उद्देश्य | Objectives of Chandrayaan-3 Mission
चंद्रयान-3 मिशन के उद्देश्य कुछ इस प्रकार हैं:
- चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग को प्रदर्शित करना.
- चांद पर घूमते हुए रोवर को प्रदर्शित करना.
- चांद पर वैज्ञानिक (in-situ) प्रयोग करना.
Lander में इस्तेमाल की जाने वाली Advanced Technologies
- Altimeters – क्राफ्ट की ऊंचाई जानने के लिए Laser और RF आधारित altimeters.
- Velocimeters – लैंडिंग के दौरान गति के बेहतर मापन के लिए Laser Doppler Velocimeter और Lander Horizontal Velocity Camera का इस्तेमाल.
- Inertial Measurement – Linear acceleration और angular velocity मापन के लिए Laser Gyro आधारित Inertial referencing और Accelerometer package.
- Propulsion System – इसमें 800N Throttleable Liquid Engines, 58N attitude thrusters और Throttleable Engine Control Electronics शामिल हैं.
- Hazard Detection and Avoidance – निर्दिष्ट स्थल पर सफलतापूर्वक लैंडिंग के लिए Lander Hazard Detection and Avoidance Camera और Processing Algorithm का इस्तेमाल.
- Landing Leg Mechanism – लैंडिंग के दौरान डैमेज को रोकने के लिए खास Landing Leg Mechanism.
चंद्रयान-3 की विशेषताएं | Features of Chandrayaan-3 Spacecraft
- चंद्रयान-3 बाहरी अंतरिक्ष की तरफ एक lander और एक rover के साथ उड़ान भरेगा. इस बार इसमें चंद्रयान-2 की तरह किसी orbiter को शामिल नहीं किया गया है.
- भारत का उद्देश्य चंद्रमा की सतह की जांच करना है, खासकर उस जगह पर जहां अरबों सालों से सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचा (दक्षिणी ध्रुव). वैज्ञानिकों और खगोलविदों को आशंका है कि चंद्रमा के इन अंधेरे वाले हिस्सों पर बर्फ और प्रचुर मात्रा में खनिज भंडार मौजूद हो सकते हैं.
- सतह के अध्ययन के लिए यह चंद्रमा की कक्षा से (100 किलोमीटर की दूरी पर) तस्वीरें लेगा.
- यह खोज केवल चांद की सतह तक सिमित नहीं होगी, बल्कि उपसतह और बहिर्मंडल (वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत – exosphere) का भी अध्ययन किया जाएगा.
- इस स्पेसक्राफ्ट का rover पृथ्वी से संचार स्थापित करने के लिए चंद्रयान-2 से लिए गए orbiter का इस्तेमाल करेगा.
Chandrayaan-3 का Design
चंद्रयान-3 के लैंडर में 4 throttleable engines लगाए गए हैं, जबकि चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर में 5 throttleable engines का इस्तेमाल किया गया था. यानी इस बार पांचवें इंजन को हटा दिया गया है. इसमें Laser Doppler Velocimeter (LDV) को शामिल किया गया है. लैंडर की legs में भी कुछ बदलाव किए गए हैं. इनके अलावा सॉफ्टवेयर और अल्गोरिथम में बदलाव किए गए हैं और पावर और कम्युनिकेशन सिस्टम को भी इम्प्रूव किया गया है.
वैज्ञानिकों के लिए चंद्रमा की खोज का महत्व
- व्यापक अंतरिक्ष अभियानों के लिए अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी के परीक्षण करने के लिए चांद हमारी पृथ्वी के सबसे नजदीक प्राकृतिक ग्रह है.
- चांद extra-terrestrial territories का पता लगाने और उन्हें बेहतर तरीके से समझने के लिए एक उचित जगह है.
- यह खोज technologies के advancement के बढ़ावा देती है और भविष्य के वैज्ञानिकों को प्रेरित करती है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय गठबंधन को भी बढ़ावा देती है.
- इसके अलावा यह सौर प्रणाली और प्रारंभिक पृथ्वी के इतिहास के लिए एक संबंध प्रदान करती है.
Chandrayaan-3 Mission का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को टारगेट करने का कारण
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को लक्षित करने का सबसे मुख्य कारण है कि यहां उत्तरी ध्रुव के मुकाबले एक बड़ा छायादार क्षेत्र मौजूद है. वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा की सतह के इस क्षेत्र में पानी के स्थायी स्रोत पाए जाने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं. इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिकों की दक्षिणी ध्रुव में मौजूद गड्ढों में गहरी दिलचस्पी है. उनका मानना है कि इनमें प्रारंभिक ग्रह प्रणाली के रहस्यमयी जीवाश्म रिकॉर्ड मिल सकते हैं.
GSLV-MK3 के बारे में
640 टन द्रव्यमान वाले इस जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-एमके 3 (GSLV-MK3) को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा develop किया गया है. यह एक उच्च प्रणोदन (High Propulsion) वाला यान है. यह एक तीन-चरणीय वाहन है, जिसे communication satellites को भूस्थिर कक्षा में लॉन्च करने के लिए बनाया गया है.
यह 8000 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और 4000 किलोग्राम पेलोड को जियो सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित करने में सक्षम है.
चंद्रयान-3 को कब लॉन्च किया जाएगा?
चंद्रयान-3 को जुलाई 2023 में लॉन्च किया जाएगा. संभावना है कि यह अगस्त 2023 तक चांद पर पहुंच जाएगा. असल में, इसरो इसे 2021 में लॉन्च करना चाहता था. लेकिन कोरोना वायरस के चलते कार्य में रूकावटें आई, इसलिए इसे 2023 में लॉन्च करने का फैसला लिया गया.
चंद्रयान-3 मिशन कितने दिन तक चलेगा?
चांद पर पहुंचने के बाद (Lander और Rover) मिशन पृथ्वी के 14 दिन तक चलेगा, जो चांद का एक दिन होता है.
Conclusion
उम्मीद है आपको हमारा यह लेख “Chandrayaan-3: क्या है उद्देश्य और फायदे? जानें कैसे करेगा काम?” जरूर पसंद आया होगा. हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है चंद्रयान-3 से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े. अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें.