भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसका संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है. संसद भवन एक ऐसी जगह होती है, जहां से संविधान के मूल्यों और लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पूरे देश को नियंत्रित किया जाता है. भारत में इस संसद भवन को एक नया रूप दिया गया है, जो फ़िलहाल बनकर पूरी तरह से तैयार है और 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नए संसद भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं. इसी के साथ खबर आती है कि सेंगोल को भी नए संसद भवन में रखा जाएगा, जिसके बाद सेंगोल क्या होता है? यह जानने की उत्सुकता लोगों में बढ़ जाती है.
अगर आप भी जानना चाहते हैं सेंगोल क्या है, इसका इतिहास क्या है और इसे संसद भवन में क्यों रखा जा रहा है? तो आप इस लेख को अंत तक पूरा जरूर पढ़ें. इस लेख में हमने सेंगोल (Sengol Sceptre) से जुड़ी हर जानकारी को आपके सामने लाने की कोशिश की है, जिसे पढ़ने के बाद आपको Sengol Sceptre in Hindi से संबंधित सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे. तो आइए नजर डालते हैं इस खास लेख पर और जानते हैं सेंगोल राजदंड से जुड़ी पूरी जानकारी.
सेंगोल क्या है? – What is Sengol in Hindi
सेंगोल सोने से बना एक प्राचीन भारतीय राजदंड (sceptre) है, जिसे 1947 में, अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में तैयार किया गया था. राजदंड उस छड़ी को कहते हैं, जिसे शासक सम्राट संप्रभु प्राधिकरण को दर्शाने वाली एक शाही वस्तु के रूप में अपने हाथ में लिए रखता है. यानी किसी देश के शासक को दी जाने वाली ऐसी छड़ी, जो दर्शाती है कि उस देश का शासक आन्तरिक और बाहरी रूप से निर्णय लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है.
सेंगोल शब्द तमिल भाषा के ‘सेम्मई’ से निकला शब्द है, जिसका अर्थ है धर्म, सच्चाई और निष्ठा. सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था. इसे सोने या चांदी से बनाया जाता था, जिसकी सजावट के लिए कीमती पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता था. आजादी के समय जब भारत की सत्ता अंग्रेजों से भारतीयों के हाथ में दी जा रही थी, तब तमिलनाडु के लोगों ने 14 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों में सेंगोल सौंपा था. यानी उस समय सेंगोल को भारत की आजादी का प्रतीक माना गया था.
सेंगोल का इतिहास – History of Sengol Sceptre in Hindi
जैसा की हमने पहले आपको बताया, सेंगोल शब्द तमिल के ‘तेम्मई‘ से लिया गया है. कुछ लोगों का मानना है कि यह शब्द संस्कृत के ‘संकु’ से भी लिया गया हो सकता है. संकु का मतलब होता है शंख, जिसे सनातन धर्म में बहुत ही पवित्र माना जाता है. भारत में मंदिरों और घरों में आज भी आरती के समय शंख का प्रयोग किया जाता है.
प्राचीन ग्रंथों में सेंगोल को राजा की पूर्ण शक्ति और शासन के अधिकार का प्रतीक बताया गया है, जो राजा को उसके लोगों से बाँधता था. यह लोगों को न्यायपूर्ण शासन का विश्वास दिलाता था. राज्याभिषेक के दौरान इस प्रतीकात्मक राजदंड का इस्तेमाल करना प्राचीन राज्यों और राजवंशों, जैसे कि चोल राजाओं की प्रथा थी. चोल काल में यह सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता था.
उस समय पुराना राजा इसे नए राजा को सौंपता था. राजदंड सौंपने के दौरान सातवीं शताब्दी के तमिल संत रहे थिरुग्नाना संबंदर द्वारा रचित एक विशेष गीत भी गाया जाता था. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गुप्त राजवंश, मौर्य राजवंश और विजयनगर साम्राज्य में भी सेंगोल का प्रयोग किया जाता था.
आजादी के समय में सेंगोल का इस्तेमाल
आजादी से पहले जब यह तय हो चुका था कि भारत अंग्रेजों से मुक्त होने वाला है और सत्ता भारतीयों को सौंपी जाएगी, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन (भारत के आखिरी वायसराय और स्वतंत्र भारतीय संघ के पहले गवर्नर जनरल) नेहरू जी से सवाल करते हैं कि सत्ता हस्तांतरण के इस खास मौके के प्रतीक के रूप में किस तरह के समारोह का आयोजन किया जाना चाहिए. इसी प्रश्न के जवाब में नेहरू जी वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी (उर्फ़ राजा जी) से संपर्क करते हैं, जो देश के इतिहास और संस्कृति की गहरी जानकारी रखते थे. राजा जी उन्हें चोल कालीन समारोह का सुझाव देते हैं, जहां एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तांतरण उच्च पुरोहितों (प्रधान पुजारियों) की मौजूदगी में पवित्रता और आशीर्वाद के साथ पूरा किया जाता था.
इस सुझाव से सभी सहमत होते हैं और राजा जी तमिलनाडु के तंजौर जिले में शैव सम्प्रदाय के धार्मिक मठ (जहां साधु सन्यासी रहते हैं) थिरुववादुथुराई अधीनम से संपर्क करते हैं. यह मठ 500 वर्षों से अधिक पुराना है और पूरे तमिलनाडु में 50 शाखा मठों को संचालित करता है. थिरुववादुथुराई अधीनम के नेता तुरंत चेन्नई के मशहूर सुनार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को एक पांच फीट लंबा ‘सेंगोल’ तैयार करने का विशेष आदेश देते हैं. और फिर वुम्मिदी बंगारू के दोनों बेटे वुम्मिदी एथिराजुलू (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) इस सेंगोल का निर्माण करते हैं. कहा जाता है कि भारत को सेंगोल राजदंड मिलने के बाद इसे एक जुलूस के रूप में संविधान सभा हॉल में भी ले जाया गया था.
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सेंगोल चर्चा में क्यों बना हुआ है?
नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले 24 मई 2023 को गृह मंत्री अमित शाह जी एक प्रेस कांफ्रेंस करते हैं. जिसमें वो बताते हैं कि नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परम्परा और सभ्यता को आधुनिकता के साथ जोड़ने का एक सुन्दर प्रयास है. इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परम्परा पुनर्जीवित हो रही है. वो ऐलान करते हैं कि नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाएगा. इस ऐलान के बाद सेंगोल चर्चा में आ जाता है.
अमित शाह जी कहते हैं कि सेंगोल (Sengol) अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था. जिसे आज तमिलनाडु के एक संग्रहालय में रखा गया है. उनके अनुसार इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना उचित नहीं है और इसके लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान हो नहीं सकता. इसलिए पीएम नरेंद्र मोदी संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से इस सेंगोल को प्राप्त करेंगे और इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे. जहां सेंगोल को स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा.
सेंगोल (Sengol) कैसा दिखता है?
सेंगोल एक दंडनुमा आकृति में बना राजदंड है, जिसके शीर्ष में भगवान शिव के वाहन नंदी विराजमान हैं. मान्यता है कि नंदी न्याय व निष्पक्षता का प्रतीक है. सेंगोल राजदंड को शुद्ध सोने से बनाया गया है, जिसकी लंबाई 5 फीट है. इसे बनाने में (आजादी के समय में) करीब 15 हजार रुपए का खर्च आया था.
अब तक सेंगोल को कहाँ रखा गया था?
आजादी के बाद सेंगोल राजदंड को सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू के पैतृक आवास ‘आनंद भवन’ में रखा गया था. बाद में इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में नेहरू गैलरी के हिस्से के रूप में, जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी कुछ अन्य एतिहासिक वस्तुएं के साथ रख दिया गया. संग्रहालय के वर्तमान भवन की आधारशिला 14 दिसंबर 1947 को नेहरू जी द्वारा रखी गई थी. आम जनता के लिए इसे 1954 में कुंभ मेले के समय खोला गया था.
इतने सालों बाद अब दुनिया के सामने कैसे आया सेंगोल?
ये भी एक विचार करने योग्य बात है कि आखिर इतने वर्षों बाद सेंगोल राजदंड दुनिया के सामने कैसे आया? इसकी कहानी भी काफी मजेदार है. असल में सेंगोल को एक बार फिर से दुनिया के सामने लाने का श्रेय प्रसिद्ध नृत्यांगना पद्मा सुब्रमण्यम को जाता है.
वर्ष 2021 में प्रख्यात शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को एक पत्र के जरिए सेंगोल पर तमिल लेख का अनुवाद भेजती हैं. यह तमिल भाषा में लिखा एक लेख था, जो तुगलक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था. डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम इस लेख की ओर काफी आकर्षित होती हैं. इसमें 1978 में चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती की तरफ से अपने शिष्य डॉ. सुब्रमण्यम को सेंगोल के बारे में बताने (1978 में) और किताबों में लिखे जाने के बारे में जिक्र किया गया था. साथ ही लेख में बताया गया था कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जो सेंगोल भेंट किया गया था, उसे पंडित जी की जन्मस्थली आनंद भवन में रखा गया है.
डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम द्वारा लिखे इस पत्र के मिलने के बाद संस्कृति मंत्रालय अपने काम पर लग जाता है. इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA) के अध्यक्ष सच्चिदानंद जोशी बताते हैं कि IGNCA के विशेषज्ञ सेंगोल का पता लगाने के लिए तीन महीने का गहन शोध करते हैं. आखिरकार इलाहाबाद संग्रहालय के क्यूरेटर उसकी पहचान करते हैं और फिर उसके निर्माताओं वुम्मिदी बंगारू चेट्टी परिवार से यह पुष्टि करवाई जाती है कि वह वास्तव में वही सेंगोल है. उन्होंने यह भी बताया कि बहुत-सी अहम ऐतिहासिक घटनाएं जो उस समय दर्ज नहीं की गई थी, अब उन्हें आधिकारिक रिकॉर्ड और आर्काइव में दर्ज किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि वे तमिल मीडिया रिपोर्टों को खंगालते हैं और देखते हैं कि कैसे आजादी से कुछ पल पहले भारत सरकार ने अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के लिए, तमिलनाडु के चोल राजाओं के पवित्र सेंगोल-निहित मॉडल का पालन किया था. उस दौरान पावन तमिल पाठ ‘तेवरम’ भी गाया गया था, जो नेता को राष्ट्र पर भली प्रकार से शासन करने का सुझाव देता था.
Conclusion
उम्मीद है आपको हमारा यह लेख “सेंगोल क्या है (What is Sengol in Hindi) इसे कब और किसने बनाया” जरूर पसंद आया होगा. हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है सेंगोल (Sengol Sceptre) से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े. अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें.