जब खूबसूरत वास्तुकलाओं की बात आती है तो जंतर-मंतर का नाम लोगों की जुबान पर होता है. लगभग 300 वर्ष पुरानी ये शानदार स्मारक आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करती हैं. आपने भी जंतर-मंतर का नाम जरूर सुना होगा और हो सकता है आप इस अद्भुत वास्तुकला को देखने की योजना बना रहे हों. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जंतर-मंतर केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के 5 अलग-अलग स्थानों पर मौजूद हैं. इन्हें जादुई स्मारक भी कहा जाता है. आज के इस लेख में हम आपको जंतर-मंतर क्या है और इनका निर्माण किसने करवाया की जानकारी देंगे.
साथ ही जंतर-मंतर से जुड़े उपकरणों के बारे में भी बतायेंगे कि आखिर ये काम कैसे करते हैं. तो आइए बढ़ते हैं आगे और जानते हैं जंतर-मंतर से जुड़ी पूरी जानकारी.
जंतर-मंतर क्या है? | Jantar Mantar in Hindi
1724 से 1737 ई. के बीच जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने उत्तरी भारत में 5 खगोलीय वेधशालाओं का निर्माण करवाया, जिन्हें जंतर-मंतर के नाम से पुकारा जाता है. इन्हें बनाने के पीछे का मकसद था, हिन्दू विद्वानों और ज्योतिषियों को उनके शोध और अध्ययन में मदद करना. जंतर-मंतर संस्कृत के शब्द “यंत्र-मंत्र” का अपभ्रंश रूप यानी बिगड़ा हुआ रूप है. यंत्र का मतलब होता है उपकरण और मंत्र का मतलब होता है गणना. इस प्रकार जंतर-मंतर का शाब्दिक अर्थ बनता है ‘गणना यंत्र’, एक ऐसा यंत्र या उपकरण जिससे समय की गणना की जा सके.
ये वेधशालाएं जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और वाराणसी में मौजूद हैं. पहली वेधशाला का निर्माण 1725 में दिल्ली में किया गया, बाद में जयपुर जंतर-मंतर का निर्माण 1734 में हुआ. इसके बाद मथुरा, उज्जैन और वाराणसी में वेधशालाएं बनाई गई. इन वेधशालाओं में यूनिक फॉर्म में कई इमारतें शामिल हैं, जिनमें प्रत्येक खगोलीय माप (astronomical measurement) के लिए एक विशेष कार्य करती है.
दिल्ली जंतर-मंतर | Delhi Jantar-Mantar in Hindi
दिल्ली स्थित जंतर-मंतर का निर्माण 1724 ई. में किया गया. इस वेधशाला को बनाने का प्रमुख उद्देश्य था खगोलीय तालिकाओं का संकलन करना और सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की गति एवं समय की भविष्यवाणी करना. खगोलीय तालिका, खगोलीय वस्तुओं की ऐसी सूची होती है जिसमें उन्हें अपनी प्रकृति, प्रकार, आकार, स्थान, स्रोत इत्यादि के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है.1857 के विद्रोह में दिल्ली जंतर-मंतर की काफी हद तक क्षति हुई थी. राम यंत्र, सम्राट यंत्र, मिश्रा यंत्र और जय प्रकाश यंत्र दिल्ली जंतर-मंतर के प्रमुख उपकरण हैं.
दिल्ली जंतर-मंतर के उपकरण
दिल्ली जंतर-मंतर में शामिल 7 विभिन्न उपकरण एवं उनके उद्देश्य कुछ इस प्रकार हैं:
- सम्राट यंत्र – सम्राट यंत्र एक विशाल ट्रायंगल है, जो सामान्य रूप से एक धूपघड़ी (sundial) है. इसकी ऊंचाई 70 फीट है,जो आधार से 114 फीट लंबा है और इसकी चौड़ाई 10 फीट है. इसमें 28 फीट लंबा कर्ण (hypotenuse) है, जो पृथ्वी की धुरी के समानांतर है और उत्तरी ध्रुव की ओर पॉइंट करता है. ट्रायंगल के दोनों तरफ एक चतुर्थांश है, जिस पर घंटे, मिनट और सेकंड का माप दिया गया होता है. इस विशाल सम्राट यंत्र को दुनिया का सबसे बड़ा sundial माना जाता है, जो स्थानीय समय को 2 सेकंड तक की सटीकता के साथ कैलकुलेट कर सकता है.
- जय प्रकाश यंत्र – इस उपकरण में दो खोखले अर्धगोले शामिल हैं, जिनके अवतल सतह पर मार्किंग की गई है. उनकी रिम के बीच बिन्दुओं पर क्रॉसवायर तनी हुई थी. इनके भीतर खड़े होकर observer विभिन्न चिन्हों के साथ एक तारे की स्थिति का पता लगा सकता है. यह सबसे बहुमुखी और जटिल उपकरणों में से एक है, जो multiple systems में आकाशीय पिंडों के निर्देशांक (coordinates) दे सकता है. इसके लिए Azimuth altitude system और Equatorial coordinate system का उपयोग किया जाता है.
- रामा यंत्र – ये दो बड़े आकार की सिलैंडरिकल संरचनाएं हैं, जो टॉप से खुली होती हैं. इनका इस्तेमाल पृथ्वी के अक्षांश और देशांतर के आधार पर तारों की ऊंचाई मापने के लिए किया जाता है.
- मिश्रा यंत्र – यह यंत्र 5 उपकरणों का मिश्रण है, जिसे पृथ्वी पर वर्ष के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिन का पता लगाने के लिए बनाया गया था. इसका इस्तेमाल दिल्ली से दूर स्थित विभिन्न शहरों और स्थानों पर दोपहर के सटीक समय का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है. यह यंत्र दुनिया भर के विभिन्न शहरों में दोपहर के समय का सटीक अनुमान लगाने में भी सक्षम था. वेधशाला में यह इकलौता एक ऐसा उपकरण है, जिसका आविष्कार जयसिंह द्वितीय द्वारा नहीं किया गया है.
- षष्ठांश यंत्र – पिनहोल कैमरा मैकेनिज्म का इस्तेमाल करते हुए इसे एक टावर के साथ बनाया गया है, जो चतुर्भुज स्केल को support करता है. इसका इस्तेमाल सूर्य के विशेष मापों के लिए किया जाता है, जैसे सूर्य की शीर्षबिंदु दूरी, झुकाव और डायामीटर.
- कपाल यंत्र – इसे उसी सिद्धांत पर बनाया गया है, जिस पर जय प्रकाश बना है. इसका इस्तेमाल एक समन्वय प्रणाली (coordinate system) का दूसरे में परिवर्तन को इंगित करने के लिए एक प्रदर्शन के तौर पर किया जाता है. यह किसी सक्रिय खगोलीय अवलोकन के लिए यूज नहीं किया जाता.
- रासिवल्य यंत्र – इनमें 12 संरचनाएं निर्मित हैं, जो प्रत्येक खगोलीय वस्तु के भूमध्य रेखा को पार करने के दौरान उनके अक्षांश और देशांतर का मापन करके राशि नक्षत्रों का जिक्र करते हैं.
जयपुर जंतर-मंतर | Jaipur Jantar-Mantar in Hindi
जयपुर स्थित जंतर-मंतर का निर्माण 1734 ई. में किया गया था. इसमें सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 19 उपकरणों का निर्माण करवाया गया था. इसमें दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर से निर्मित धूपघड़ी (Sundial) मौजूद है, जिसे UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है. इसमें मौजूद उपकरणों की मदद से नंगी आँखों के साथ खगोलीय स्थितियों का अवलोकन किया जा सकता है. यह वेधशाला टॉलेमी स्थितीय खगोल विज्ञान का एक उदाहरण है जिसे कई सभ्यताओं ने साझा किया था.
जयपुर जंतर-मंतर के उपकरण
- चक्र यंत्र – यह एक रिंग इंस्ट्रूमेंट है, जो सूर्य के घंटे के एंगल और coordinates को कैलकुलेट करता है. इसमें चार semi-circular arcs शामिल हैं, जिन पर एक gnomon छाया डालता है, इस प्रकार दिन में चार बार सूर्य के declination का अनुमान लगाया जाता है.
- दक्षिण भित्ति यंत्र – यह उपकरण आकाशीय वस्तुओं की देशांतर रेखा, ऊंचाई और शीर्ष बिंदु दूरी का पता लगाता है.
- दिशा यंत्र – इसका इस्तेमाल खगोलीय वस्तुओं की डायरेक्शन का पता लगाने के लिए किया जाता है.
- ध्रुव दर्शक पट्टिका – अन्य आकाशीय पिंडों के संबंध में ध्रुव तारे की स्थिति का पता लगाने और निरीक्षण करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.
- दिगामाशा यंत्र – इसका इस्तेमाल सूर्योदय और सूर्यास्त के पूर्वानुमान समय के लिए किया जाता था.
- जय प्रकाश यंत्र – इसके जरिए आकाशीय पिंडों की ऊंचाई, दिगंश और झुकाव का पता लगाया जा सकता है.
- कपाली यंत्र – यह azimuth और equatorial system के माध्यम से खगोलीय पिंडों के coordinates को माप सकते हैं. इसकी मदद से आकाश में किसी बिंदु को दृष्टिगत रूप से एक coordinate system से दूसरे में तब्दील किया जा सकता है.
- षष्ठांश यंत्र – पिनहोल कैमरा मैकेनिज्म का इस्तेमाल कर इसे एक टावर के साथ तैयार किया गया है, जो चतुर्भुज स्केल को support करता है. इसका इस्तेमाल सूर्य के विशेष मापों के लिए किया जाता है, जैसे सूर्य की शीर्षबिंदु दूरी, झुकाव और डायामीटर.
- क्रांति वृत्त यंत्र – यह आकाशीय वस्तुओं के अक्षांश और देशांतर को माप सकता है.
- लघु सम्राट यंत्र – यह समय जानने के लिए एक छोटा sundial है, लेकिन वृहत सम्राट यंत्र से कम सटीक समय बताता है.
- वृहत सम्राट यंत्र – यह दुनिया का सबसे बड़ा gnomon sundial है, जो सूर्य की छाया के जरिए 2 सेकंड के अंतराल पर समय का पता लगाता है.
- यंत्र राज यंत्र – इस उपकरण का इस्तेमाल हिन्दू कैलेंडर की गणना के लिए वर्ष में केवल एक बार किया जाता है.
- उन्नाताम्स्सा यंत्र – इसका इस्तेमाल खगोलीय पिंडों की ऊंचाई ज्ञात करने के लिए किया जाता है.
- रासिवल्य यंत्र – इसमें 12 gnomon dials हैं, जो तारों, ग्रहों और 12 नक्षत्र प्रणालियों के elliptic coordinates का मापन करते हैं.
- पलभा यंत्र – इस उपकरण के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है.
- कनाली यंत्र – इस उपकरण के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है.
- रामा यंत्र – यह एक खड़ी इमारत है जिसका इस्तेमाल सूर्य की ऊंचाई और दिगंश का पता लगाने के लिए किया जाता है.
- नाड़ी वलय यंत्र – उपकरण के अलग-अलग चेहरों पर दो sundials लगे हैं, ये चेहरे उत्तर और दक्षिण गोलार्ध का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो समय को एक मिनट से भी कम सटीकता के साथ मापते हैं.
- मिश्रा यंत्र – यह यंत्र 5 उपकरणों का मिश्रण है, जिसे वर्ष के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिन का पता लगाने के लिए बनाया गया था.
उज्जैन का जंतर-मंतर | Ujjain Jantar-Mantar in Hindi
उज्जैन के जंतर-मंतर का निर्माण सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने 1727 से 1737 ई. के बीच कराया था. इसके अलावा, ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा माधव राव सिंधिया ने 1923 में इसकी मरम्मत करवाई थी. कुछ भारतीय खगोलविदों के अनुसार कर्क रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है, इसलिए उज्जैन का जंतर-मंतर हिन्दू भूगोलवेत्ताओं के लिए भी अधिक महत्वपूर्ण वेधशाला बन जाती है. इस वेधशाला में शामिल उपकरणों के नाम कुछ इस प्रकार हैं.
- दिग्यांश यंत्र
- शंकु यंत्र
- नाड़ी वलय यंत्र
- सम्राट यंत्र
वाराणसी का जंतर-मंतर | Varanasi Jantar-Mantar in Hindi
वाराणसी के जंतर-मंतर को राजा जय सिंह द्वितीय द्वारा 1737 में बनवाया गया था. इस वेधशाला का निर्माण सूरज, सितारों और ग्रह की गिरावट मापने के लिए किया गया था. वाराणसी की इस वेधशाला में मौजूद कुछ पॉपुलर उपकरण इस प्रकार हैं.
- दिशा यंत्र
- दिगांश यंत्र
- प्रकाश यंत्र
- ध्रुव यंत्र
- राम यंत्र
- सम्राट यंत्र
- क्रांतिवृत्त यंत्र
मथुरा का जंतर-मंतर | Mathura Jantar-Mantar in Hindi
राजा जय सिंह द्वारा बनवाई गई पांचो वेधशालाओं में मथुरा जंतर-मंतर सबसे अंतिम वेधशाला थी, जहां समय को मापने और अध्ययन के लिए 16 उपकरण बनाए गए हैं. फ़िलहाल, मथुरा वेधशाला को आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है.
Conclusion
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