ड्रोन शब्द किसी के लिए नया नहीं है. आपने भी ड्रोन को उड़ते हुए जरुर देखा होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं असल में यह ड्रोन क्या है (What is Drone in Hindi) और कैसे काम करता है? नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं, क्योंकि आज का यह आर्टिकल खास इसी विषय पर है, जहाँ हम ड्रोन से जुड़े उन सभी सवालों के जवाब जानेंगे जो अब तक आपके मन में थे.
मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा ड्रोन से जुड़ी हर छोटी से बड़ी जानकारी को सरल शब्दों में आप तक पहुँचाने की जिसके बाद आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी website पर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
ड्रोन एक flying robot होता है जिसे मनुष्य द्वारा remotely control किया जाता है. इसका आविष्कार मनुष्य द्वारा अपने कार्यों को संपादन करने के लिए किया गया है. ड्रोन को बनाने का मुख्य मकसद, उन कामों को आसान बनाना है जो इंसानों के लिए जोखिम भरे होते हैं.
आज ड्रोन का इस्तेमाल बहुत सारे कार्यों के लिए किया जाता है. अगर आप ड्रोन की तकनीक और काम करने के ढंग को अच्छे से समझना चाहते हैं तो इस article को बिना skip किए पूरा पढ़ें. तो अब बिना देर किए चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं ड्रोन क्या है और यह कैसे उड़ता है के बारे में.
ड्रोन क्या है? (What is Drone in Hindi)
तकनीकी भाषा में ड्रोन एक मानवरहित aircraft है. इन ड्रोनों को औपचारिक तौर पर Unmanned Aerial Vehicles (UAVs) या Unmanned Aircraft Systems (UASs) के नाम से जाना जाता है. ड्रोन वे flying robots होते हैं जिन्हें remote के जरिए control किया जाता है या अपने आप software controlled flight plans, जो कि इसमें लगे sensors और GPS के सहयोग से काम करने वाला embedded system होता है, के माध्यम से उड़ते हैं.
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ड्रोन का इस्तेमाल अधिकतर तौर पर सैन्य संबंधित कार्यों के लिए किया जाता है. क्योंकि इनके मानवरहित होने की वजह से युद्ध में pilot की जान जाने का खतरा नहीं रहता. साथ ही ये तब तक लगातार उड़ान भर सकते हैं जब तक इनमें इस्तेमाल होने वाला ईंधन खर्च नहीं हो जाता और इनमे mechanical समस्याएं भी नहीं होती.
अब तो ड्रोन का इस्तेमाल civilian भूमिकाओं में भी किया जाने लगा है, जैसे दुर्गम स्थानों में फंसे लोगों के search और rescue के लिए, यातायात और मौसम निगरानी के लिए, photography के लिए, किसी कीमती वस्तु या जगह की निगरानी के लिए, firefighting के तौर पर, खेती से जुड़े कार्यों और home delivery जैसे businesses के लिए.
ड्रोन कैसे काम करता है? (How Drone Works in Hindi)
Joystick और GPS system की वजह से ड्रोन को उड़ाते समय ठीक वैसा ही अनुभव होता है जैसा video game खेलने के दौरान होता है. इस आसान user interface के पीछे एक accelerometer, एक gyroscope और दूसरी complex technologies का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि ड्रोन के उड़ने को जितना हो सके उतना smooth किया जा सके.
कैसे ये mechanical features काम करते हैं? और वास्तव में ड्रोन कैसे उड़ता है? इन सवालों के जवाब में है थोड़ी wireless तकनीक और बहुत सारा physics. तो चलिए जानते हैं विस्तार से.
Connectivity
ड्रोन को remotely control किया जा सकता है, अक्सर smartphone और tablet के माध्यम से. इस wireless connectivity के माध्यम से pilot ड्रोन और इसके आसपास के area पर किसी पक्षी की आंख की तरह नजर रख सकता है. कुछ apps की मदद से इसके उड़ने का path set भी किया जा सकता है, जिसके बाद ये अपने आप pre-planned तरीके से उड़ता है. इसके लिए GPS का सहयोग जरूरी होता है. Wireless connectivity का दूसरा सबसे खास feature है real-time में battery charge tracking का, जो कि इसका सबसे महत्वपूर्ण feature है. क्योंकि वजन कम रखने के लिए ड्रोन में छोटी batteries का इस्तेमाल किया जाता है.
Rotors
ड्रोन को ऊपर की तरफ उड़ाने में सबसे मुख्य भूमिका rotors की होती है. Rotor जिसमे मोटर के साथ जुड़ा हुआ एक propeller शामिल होता है. जैसे ही pilot इन rotors की गति बढ़ाता है, rotors हवा के जरिए एक downward force पैदा करते हैं जो कि ड्रोन के ऊपर काम करने वाले gravitational pull से अधिक होता है और ड्रोन ऊपर की तरफ उठने लगता है. Rotors की गति घटाने पर ड्रोन नीचे की तरफ आने लगता है. जब rotors से पैदा होने वाला downward force ड्रोन के gravitational pull या वजन के बराबर होता है तब ड्रोन बीच हवा में एक जगह स्थिर होकर (hovering) मंडराने लगता है.
Accelerometer और Altimeter
एक accelerometer ड्रोन को उसकी speed और direction की जानकारी देता है, जबकि altimeter मशीन को इसकी ऊंचाई से संबंधित जानकारी देता है. साथ ही ये features ड्रोन को धीमे और सुरक्षित तरीके से जमीन पर land कराते हैं, जो कि इसे air vacuum में धसने और unpredictable way में नीचे आने से रोकता है.
Camera
कुछ ड्रोन पर in-built cameras लगे होते हैं जो pilot को यह देखने के लिए allow करते हैं कि ड्रोन कहाँ उड़ रहा है. इससे pilot को ड्रोन पर नजर गड़ाए रहने की जरूरत नहीं पड़ती. ड्रोन पर लगे cameras की मदद से उन जगहों तक पहुँचाना आसान हो जाता है जो मानव के लिए जोखिम भरे होते हैं. ऐसे में इनका इस्तेमाल search and rescue operations में अधिक किया जाता है.
ड्रोन को बनाने के लिए जिन engineering materials का इस्तेमाल किया जाता है वह highly complex composites होते हैं. ये उड़ान के दौरान पैदा होने वाले vibration को absorb कर लेते हैं. जो noise को कम कर देता है. साथ ही ये materials काफी lightweight होते हैं.
ड्रोन कैसे उड़ता है?
ड्रोन कैसे उड़ता है, यह जानने के लिए इसके पीछे के आसान physics को समझना होगा जो कुछ इस प्रकार काम करता है.
Rotor की Direction – ड्रोन एक quadcopter होता है जिसमे 4 rotors लगे होते हैं और ये सभी individual motors के साथ connect होते हैं, जो की उन्हें अलग-अलग speed पर घुमने के लिए allow करती हैं. इसमें दो rotors 1 और 3 clockwise direction में घूमते हैं, जबकि दो अन्य rotors 2 और 4 counterclockwise direction में घूमते हैं (जैसा कि diagram में दिखाया गया है).
ये दो opposite rotations ड्रोन का balance बनाए रखते हैं और इसे स्थिर रखते हैं. क्योंकि यदि सभी rotors एक ही दिशा में घुमने लगेंगे तो एक net torque पैदा होगा, जिससे पूरा ड्रोन घुमने लगेगा.
जब सभी rotors एक साथ तेज गति से घूमते हैं तो वे नीचे हवा को push करते हैं और हवा ड्रोन को ऊपर की तरफ push करती है (Newton’s third law of motion). जब rotors की गति बढ़ाई जाती है तो ड्रोन ऊपर उठने लगता है और जब गति कम की जाती है तो ड्रोन नीचे की तरफ आने लगता है.
ड्रोन Rotation – अगर आप ड्रोन को मोड़ना या घुमाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको दो rotors: उदाहरण के लिए rotors 1 और 3 जो कि clockwise दिशा में घूम रहे हैं, की speed अधिक करनी होगी, जबकि counterclockwise दिशा में घूम रहे rotors 2 और 4 की speed इनसे कम रखनी होगी. ऐसा करने पर ड्रोन की ऊंचाई में कोई बदलाव नहीं आएगा, लेकिन angular momentum बढ़ने की वजह से ड्रोन clockwise दिशा में घूम जाएगा. इसी तरह अगर आप ड्रोन को counterclockwise दिशा में घुमाना चाहते हैं तो इसका उल्टा करना होगा.
Forward और Backward – अगर आप ड्रोन को forward या backward दिशा में लेजाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको एक तरफ के दो rotors की speed बढ़ानी होगी, जबकि दूसरी तरफ के दो rotors की speed घटानी होगी.
उदाहरण के लिए अगर आप ड्रोन को आगे ले जाना चाहते हैं तो rotor 1 और 4 की speed बढ़ानी होगी, जबकि rotor 2 और 3 की speed घटानी होगी. अब rotors 1 और 4 अधिक lift पैदा करेंगे जिससे ड्रोन थोड़ा झुक जाएगा और thrust पैदा करते हुए झुकी हुई दिशा में आगे बढ़ने लगेगा. इसी तरह आप ड्रोन को backward या sideway direction में ले जा सकते हैं.
Remote Control – ड्रोन पर लगे rotors की speed को remote के joystick के जरिए control किया जाता है. यह battery से चारों motors को मिलने वाली voltage को कम या ज्यादा करता है, जिससे rotors की speed में बदलाव आता है. अगर motor अधिक voltage प्राप्त करती है तो speed बढ़ जाती है.
साथ ही ड्रोन में lithium Ion batteries का इस्तेमाल किया जाता है, जो batteries को healthy रखने के जरुरी होता है ताकि maximum flight time प्राप्त किया जा सके. अधिकांश ड्रोन में in-built GPS होता है जिससे उन्हें पता होता है कि वे कहाँ है. अगर किसी कारणवंश ड्रोन से आपका remote-control disconnect हो जाता है, तो ऐसे में ड्रोन अपने आप उसी जगह आ जाता है जहाँ से इसने उड़ान भरी थी.
ड्रोन कितने प्रकार के होते हैं? (Types of Drone in Hindi)
ड्रोन के मुख्य तौर पर चार प्रकार होते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:
- Single Rotor Helicopters
- Multi-Rotor Drones
- Fixed Wing Drones
- Fixed Wing Hybrid VTOL
1. Single Rotor Helicopters – ये एक प्रकार से छोटे helicopters ही होते हैं जिनमे केवल एक rotor का ही इस्तेमाल किया जाता है. इसमें एक बड़े size का rotor लगा होता है साथ ही इसके tail पर एक छोटा rotor लगा होता है, जो इसके head की direction को control करता है. यह multi rotors के मुकाबले अधिक efficient होता है. ये ज्यादा समय तक उड़ सकते हैं साथ ही gas और electricity दोनों से चल सकते हैं. Aerodynamics में यदि rotors की संख्या कम है तो object या ड्रोन कम घूमेगा अधिक rotors वाली machine के मुकाबले. इसलिए quadcopters ( 4 rotors) का इस्तेमाल, octocopters (8 rotors) की अपेक्षा अधिक होता है. क्योंकि यह अधिक stable होता है. इसका अर्थ है single-rotor drones ज्यादा efficient होते हैं multi-rotor drones के मुकाबले.
हालांकि single rotor ड्रोन में ज्यादा complexity और operational risks होते हैं. साथ ही इनकी cost भी काफी अधिक होती है. इसमे rotor blades size बड़ा होने की वजह से चोट लगने का खतरा बना रहता है. जबकि multi-rotor drones में rotors का size छोटा होने से दुर्घटना होने की संभावना कम हो जाती है.
2. Multi Rotor Drones – आम तौर पर multi-rotors drones का इस्तेमाल सबसे अधिक होता है. इनका इस्तेमाल professional और शौकीन कामो के लिए किया जाता है. इसका सबसे ज्यादा उपयोग हवाई photography, हवाई यातायात निगरानी इत्यादि जैसे कामों के लिए सबसे अधिक होता है. इस segment के अंदर मार्केट में कई प्रकार के drones उपलब्ध हैं.
Professional कार्यों, जैसे Photography के लिए 500 dollars से लेकर 3000 dollars की कीमत तक के drones उपलब्ध हैं. साथ ही शौक़ीन कामों के लिए, जैसे कि racing और छुट्टियों में मनोरंजन के लिए भी बहुत सारे varients बाजार में उपलब्ध हैं, जिनकी कीमत 50 dollars से 400 dollars के बीच है.
Multi-rotor drones को rotors की संख्या के आधार पर आगे classify किया जा सकता है. जो कुछ इस प्रकार है:
- Tricopter (3 rotors) – इनमें rotors की संख्या 3 होती है.
- Quadcopter (4 rotors) – इनमें rotors की संख्या 4 होती है.
- Hexacopter (6 rotors) – इनमें rotors की संख्या 6 होती है.
- Octocopter (8 rotors) – इनमें rotors की संख्या 8 होती है.
इनमें Quadcopters सबसे popular और अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले drones हैं.
हालांकि ये बनाने में आसान और सस्ते हैं फिर भी इनमें बहुत सारी कमियाँ हैं. जिनमे प्रमुख है इनका सीमित flying time, सीमित सहनशक्ति और speed. ये large scale projects, जैसे कि long distance में aerial mapping और निगरानी के लिए उपयुक्त नहीं हैं. इन multicopters की सबसे बड़ी problem है, ये gravity से लड़ने और खुद को हवा में स्थिर रखने के लिए बहुत अधिक energy का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में इनमें battery खपत बढ़ जाती है. वर्तमान में अधिकांश multi-rotors केवल 20 से 30 मिनट तक ही लगातार उड़ान भर सकते हैं, वो भी camera जैसे minimal payload के साथ.
3. Fixed Wing Drones – Fixed wings drones रचना और बनावट के आधार पर multi-rotor drones से पूरी तरह से अलग होते हैं. इनमे सामान्य aeroplane की तरह ही ‘wings’ का इस्तेमाल किया जाता है. ये multi-rotor drones की तरह हवा में उड़ने और gravity का मुकाबला करने के लिए energy का उपयोग नहीं करते हैं (ये हवा में एक जगह स्थिर होकर नहीं मंडरा सकते). ये ड्रोन forward airspeed के माध्यम से wings के जरिए lift पैदा करते हैं. इसके लिए एक internal engine या motor-controlled propeller का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें take-off करने के लिए runway की जरूरत होती है.
Fixed wings drones कई घंटों तक हवा में उड़ान भर सकते हैं. Gas engined powered ड्रोन 16 घंटे या इससे अधिक समय के लिए उड़ान भर सकते हैं. अपने अधिक flying time और fuel efficiency की वजह से इनका इस्तेमाल long-distance operations के लिए अधिक किया जाता है. लेकिन इनका इस्तेमाल aerial photography के लिए संभव नहीं है, क्योंकि ये हवा में एक जगह स्थिर होकर नहीं रह सकते.
साथ ही इन ड्रोन की कीमत बहुत ज्यादा होती है और इन्हें उड़ाने के लिए उच्च skill training की आवश्यकता होती है. इसे हवा में छोड़ना कोई आसान काम नहीं है. इसके लिए आपको या तो एक runway की जरूरत पड़ेगी या catapult launcher की जो इसे हवा में इसके मार्ग पर set कर सके. इन्हें सुरक्षित तरीके से ground पर land करने के लिए दोबारा एक runway या parachute की जरूरत पड़ती है. दूसरी तरफ multi-rotors drones काफी सस्ते होते हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति कुछ dollars खर्च करके आसानी से खरीद सकता है. Quadcopters को उड़ाने के लिए किसी प्रकार की विशेष training की जरूरत नहीं होती. आप इन्हें किसी खुले स्थान में आसानी से उड़ा सकते हैं और चलते-फिरते इसे ढंग से उड़ाना सीख सकते हैं.
4. Fixed Wing Hybrid VTOL – VTOL का मतलब है “Vertical Take-off and Landing”. ये वो hybrid versions हैं जिनमे fixed wing versions के benefits (जैसे लंबे समय तक उड़ना) और rotor based versions के benefits ( hovering- हवा में स्थिरता) को combine कर दिया जाता है. इस concept को लगभग 1960 के दौरान test किया गया था, जो सफल नहीं हुआ था. हालांकि, नए generation के sensors के आगमन (gyros और accelerometers) के साथ इस concept को नई दिशा मिली और यह कामयाब हुआ.
Hybrid VTOL automation और manual gliding का एक combine play है. इसमे ड्रोन को ground से हवा में उठाने के लिए एक vertical lift का इस्तेमाल किया जाता है. ड्रोन को हवा में stabilize करने के लिए gyros और accelerometers automated mode में काम करते हैं. इसके साथ ही ड्रोन को इच्छित मार्ग पर guide करने के लिए remote आधारित manual control का इस्तेमाल किया जाता है.
ड्रोन कैसे बनाया जाता है?
ड्रोन बनाने के लिए जिस सामान की आवश्यकता होती है वो कुछ इस प्रकार है:
Chassis – यह ड्रोन का ढांचा होता है, जिसमे सभी components को fix किया जाता है. इन chassis को बनाते समय इनकी strength और additional weight (camera या कुछ सामान उठाने के लिए) को ध्यान में रखा जाता है. क्योंकि weight उठान की क्षमता के आधार पर ही propeller और motor का size निर्धारित किया जाता है.
Propellers – इनका सीधा प्रभाव quadcopter के load उठाने की क्षमता पर पड़ता है. साथ ही ये ड्रोन के उड़ने की speed और चारों तरफ चलने की speed पर effect डालते हैं.
Propellers जितने ज्यादा लंबे होंगे उतना अधिक lift पैदा करेंगे, वो भी कम speed पर. लेकिन इनकी speed बढ़ाने या घटाने में समय अधिक लगता है.
वहीँ दूसरी तरफ छोटे size के propeller आसानी से अपनी speed कम ज्यादा कर सकते हैं. साथ ही ये अधिक manoeuvrable होते हैं. लेकिन इन्हें longer blades के बराबर power पाने के लिए अधिक rotational speed की आवश्यकता होती है. इससे motor पर अधिक दबाव पड़ता है जिससे उनका जीवनकाल कम हो जाता है.
Motors – प्रत्येक propeller के साथ एक motor लगा होता है. इस motor की rating ‘Kv’ units में मापी जाती है. यानी की जब motor पर कोई load नहीं होता तब एक volt की voltage supply करने पर यह कितने number of revolution प्रति मिनट achieve करता है.
Motor को अधिक speed से spin कराने पर यह lift तो अधिक पैदा करता है, लेकिन इसे battery से उतनी ही अधिक power की जरूरत भी पड़ती है. ऐसे में ड्रोन के flying time में कमी आ सकती है.
Electronic Speed Controller (ESC) – सही spin speed और direction प्रदान करने के लिए, यह ड्रोन की प्रत्येक motor को controlled current supply करता है.
Radio Receiver – इसका काम pilot द्वारा भेजे गए control signals को receive करने का होता है.
Flight Controller – यह एक तरह का onboard computer होता है, जो pilot द्वारा भेजे गए signals को interpret करता है और फिर corresponding inputs को ESC में भेजता है. जिससे quadcopter या ड्रोन control किया जाता है.
Battery – इसमें सामान्य तौर पर lithium polymer batteries का इस्तेमाल किया जाता है. इनसे flying time अधिक मिलता है और recharge भी जल्द हो जाती हैं.
Camera – इसे ड्रोन के उपर mount किया जाता है. यह navigation में मदद करता है और साथ ही इसे aerial photography के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इनके अलावा कुछ additional sensors का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे कि gyroscope और accelerometer, वहीं positional measurment के लिए GPS और Barometer इत्यादि.
Advanced UAV Technologies
जैसे कि मैंने पहले आपको बताया, ड्रोन को Unmanned Aerial Vehicle (UAV) या Unmanned Aircraft System (UAS) के नाम से भी जाना जाता है. इनमें कुछ advanced technologies का इस्तेमाल किया जाता है जिनके बारे बहुत कम लोगों को पता होता है. ये advanced technologies कौनसी होती हैं चलिए जानते हैं.
Radar Positioning और Return Home Technology
नए ड्रोन dual Global Navigation Satellite System (GNSS), जैसे कि GPS और GLONASS, से लैस होते हैं.
ड्रोन को GNSS और non-satellite mode दोनों में उड़ाया जा सकता है. लेकिन कुछ महत्वपूर्ण काम जैसे कि 3D Maps बनाने, landscape का survey या search और rescue mission में highly accurate drone navigation system की जरूरत होती है.
जैसे ही ड्रोन को switch on किया जाता है यह सबसे पहले GNSS satellites को search और detect करता है.नई तकनीक वाले GNSS systems Satellite Constellation technology का इस्तेमाल करते हैं. आम तौर पर satellite constellation एक ग्रुप होता हैं satellites का जो synchronized होते हैं और coordinated coverage के लिए एक साथ काम करते हैं, ताकि वे अच्छे से overlap करके coverage प्रदान कर सके. Coverage उस period को कहा जाता है जिसमे एक satellite local horizon के ऊपर visible होता है.
चलिए जानते हैं यह Technology काम कैसे करती है
Radar technology नीचे दिए गए signals को remote controller display पर दर्शाती है:
- Signal जो दर्शाता है कि पर्याप्त ड्रोन GNSS satellites को detect कर लिया गया है और ड्रोन उड़ने के लिए तैयार है.
- Pilot के संबंध में ड्रोन की current position और location को दर्शाया जाता है.
- ‘Return to Home’ safety features के लिए Home point को record करता है.
ड्रोन द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली Return to Home Technology के प्रकार
Latest Drones में 3 तरह की Return to Home Technologies का इस्तेमाल किया जाता है जो कुछ इस प्रकार हैं:
- Pilot द्वारा remote controller या app में button press करके return to home की शुरुआत की जाती है. जिसके बाद ड्रोन अपने आप घर आ जाता है.
- जब battery level low होता है, तब UAV अपने आप home point पर लौट आता है.
- अगर किसी कारणवंश UAV और Remote controller के बीच connection loss होता है, तब UAV अपने आप home point पर वापस आ जाता है.
Obstacle Detection और Collision Avoidance Technology
Latest उच्च तकनीक वाले drones में Collision Avoidance system install किया गया होता है. ये अपने आस-पास के area को scan करने के लिए obstacle detection sensors का इस्तेमाल करते हैं. जबकि software algorithms और SLAM technology 3D Map के अंदर images produce करते हैं, जिससे ड्रोन अपने आगे आने वाली रूकावट को sense कर लेता है और accident से बचने के लिए इसे avoid करता है. इन systems में obstacles को sense और avoid करने के लिए नीचे दिए गए sensors का इस्तेमाल किया जाता है:
- Vision Sensor
- Ultrasonic
- Infrared
- Lidar
- Time of Flight (ToF)
- Monocular Vision
इन sensors का इस्तेमाल करके ड्रोन अपने सामने किसी obstacle को आसानी से detect कर लेता है और खुद को इससे बचा लेता है.
चलिए जानते हैं किस प्रकार UAVs obstacles को sense करके, बिना रुके Return to Home process को पूरा करते हैं.
- जैसे ही UAV को obstacle का आभास होता है ये खुद को धीमा कर लेता है.
- इसके बाद ये रुक जाता है और एक जगह स्थिर होकर (hover) मंडराने लगता है. अब थोड़ा पीछे आता है और फिर ऊपर की तरफ उठता है. ये तब तक ऊपर उठता है जबतक कि उसको लगे कि अब कोई obstacle नहीं है सामने.
- इसके बाद Return to Home process शुरू हो जाता है और यह UAV या ड्रोन घर लौट आता है.
Gyroscope Stabilization, IMU और Flight Controllers
Gyroscope Stabilization तकनीक UAV ड्रोन को smooth flying capabilities देता है. यह gyroscope ड्रोन के against move करने वाले forces के लिए तुरंत काम करता है, और ड्रोन की flying या hovering को smooth बनाए रखता है. Gyroscope central flight controller को महत्वपूर्ण navigational information प्रदान करता है.
IMU जिसका full form है “Inertial Measurement Unit”. यह एक या एक से अधिक accelerometer का इस्तेमाल करके current rate of acceleration का पता करता है. IMU rotational attributes जैसे कि pitch, roll या yaw में होने वाले changes का पता लगाता है. कुछ IMU में magnetometer भी लगा हुआ होता है. जो कि orientation drift के against इसे calibrate करने में मदद करता है.
Gyroscope IMU का component होता है और IMU drones flight controller का महत्वपूर्ण component होता है. जबकि Flight Controller ड्रोन का central brain होता है.
Real-Time Telemetry Flight Parameters
लगभग सभी तरह के ड्रोन में एक Ground Station Controller (GSC) या एक smartphone app शामिल होता है, जो आपको ड्रोन उड़ाने के लिए allow करता है और वर्तमान में flight telemetry को track करता है. Remote controller पर दिखाई देने वाले telemetry data में शामिल होते हैं, UAV range, height, speed, GNSS strength, बची हुई battery power और warnings.
कई UAV ground controller इस्तेमाल करते हैं FPV (First Person View) का, जो कि ड्रोन से controller या mobile device तक video transmit करता है.
GPS Ready to Fly Mode Drone Technology
जब compass को calibrate किया जाता है, तब यह satellites की खोज शुरू कर देता है. जैसे ही इसे 6 से अधिक satellites मिलते हैं, यह ड्रोन को ready to fly mode में उड़ने के लिए allow कर देता है.
No Fly Zone Drone Technology
Flight safety को बढ़ाने और restricted areas में accident को रोकने के उद्देश्य से, latest ड्रोन में manufacturer द्वारा “No Fly Zone” का feature शामिल किया जाता है.
No Fly Zones को Federal Aviation Authority (FAA) द्वारा regulated और categorized किया जाता है. Manufacturers UAV firmware updates के माध्यम से ड्रोन के no fly zone drone technology में बदलाव कर सकते हैं.
Internal Compass और Failsafe Function
यह function UAV ड्रोन और remote control system को flight की सटीक location की जानकारी देता है. इसमें एक home point set किया जा सकता है. जब ड्रोन का remote control system से संपर्क टूट जाता है, तब ड्रोन अपने आप इस home point location पर पहुंच जाता है. इसे “Fail-safe function” के नाम से भी जाना जाता है.
Firmware और Flight Assistant Port
Flight Control System एक micro-USB Cable के माध्यम से PC Assistant से communicate करता है. यह UAV के configuration और ड्रोन firmware के update को allow करता है.
आसान परिभाषा में UAV एक flying computer होता है जिसमें sensor और camera का इस्तेमाल किया जाता है. Computer की तरह ड्रोन में भी एक firmware software होता है, जो aircraft या remote controller के physical components को command भेजता रहता है.
ड्रोन manufacturers aircraft, remote control unit या software में नए features जोड़ने और bugs को fix करने के लिए firmware upgrades release करते हैं.
LED Flight Indicators
ये Indicators ड्रोन के front और back हिस्से में पाए जाते हैं. आमतौर पर ड्रोन LEDs हरे, लाल या पीले रंग में होती हैं.
Front के indicators ड्रोन के nose को दर्शाने के लिए जलते रहते हैं. जबकि rear LEDs ड्रोन के various status जैसे कि power on, firmware upgrade प्राप्त होने और flying को indicate करते हैं.
सभी ड्रोन एक user manual के साथ आते हैं, जिसमे सभी LEDs का मतलब बताया हुआ होता है.
High Performance Camera
नए ड्रोन High Performance camera के साथ आते हैं, जो उच्च quality की photo लेने और video shoot करने में सक्षम होते हैं. इन cameras के माध्यम से 4k video shoot किया जा सकता है. जिनका इस्तेमाल अधिकतर aerial photography के लिए या movie scenes को shoot करने के लिए किया जाता है.
Gimbals और Tilt Control
Gimbal Technology बहुत ही महत्वपूर्ण technology है photography के लिए. यह aerial photos, film या 3D imagery को high quality में capture करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
यह उड़ते समय camera को unique angles बनाने के लिए झुकने के लिए allow करता है. इसके साथ ही gimbal camera के vibration को भी कम कर देता है. आजकल लगभग सभी नए ड्रोन integrated gimbals और camera के साथ आते हैं.
ड्रोन के applications क्या हैं?
Military Surveillance के लिए – ड्रोन सबसे पहले केवल military के इस्तेमाल के लिए बनाए गए थे. ड्रोन का सबसे पहले इस्तेमाल 1940 के दशक में British और US Military ने axis power की जासूसी के लिए किया था. आजकल के UAVs पहले के UAVs से काफी advanced हैं. Military में इनका इस्तेमाल युद्ध के दौरान दुश्मन की सटीक जानकारी हासिल करने के लिए किया जाता है. ऐसे में pilot की जान जाने का खतरा नहीं रहता और बिना शोर के आसानी से जासूसी और रखवाली की जा सकती है.
Live Event के दौरान – पिछले कुछ सालों से ड्रोन का इस्तेमाल live event को capture करने के लिए अधिक किया जा रहा है. इनका इस्तेमाल politicians के भाषण, संगीत कार्यक्रम और खेलों में live recording के लिए अधिक किया जा रहा है. ड्रोन audience को एक ऐसा दृश्य प्रदान कर सकते हैं जो किसी दूसरी technology से प्राप्त करना संभव नहीं है.
Dangerous Areas का सर्वेक्षण – ड्रोन के आने बाद ऐसे areas को explore करना काफी आसान हो गया है जो humans के लिए काफी खतरनाक होते हैं. उदाहरण के लिए, geologists धरती के अनोखे और खतरनाक हिस्सों पर पहुंच कर आसानी से अपनी job complete कर सकते हैं. कई बार बड़े organisations, जैसे NASA भी धरती के dangerous भागों का सर्वेक्षण करने के लिए satellite footage पर निर्भर रहता है.
Home Delivery सेवाओं के लिए – आजकल ड्रोन का इस्तेमाल बड़ी कंपनियों द्वारा products को अपने customers तक पहुँचाने के लिए किया जा रहा है. ऐसे बिज़नेस के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन अधिक weight उठाने में सक्षम होते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ देशों में Pizza की home delivery के लिए drones का इस्तेमाल किया जाता है. ये बड़े size के pizza भी आसानी से लेकर उड़ सकते हैं.
Law Enforcement के लिए – यह ड्रोन का सबसे अच्छा इस्तेमाल है. पुलिस द्वारा छुपे हुए criminal या terrorist का पता लगाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही यह उस वक्त planing के लिए सबसे अधिक उपयोगी साबित होता है जब terrorist ने किसी विशेष location पर लोगों को बंदी बना रखा हो. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर पुलिस ड्रोन की सहायता से किसी को shoot भी कर सकती है.
Wildlife पर नजर रखने के लिए – वन्यजीवों की आबादी पर बढ़ते संकट और खतरे की वजह से, इंसान इनके संरक्षण और protection को लेकर काफी चिंतित हैं. इस क्षेत्र में काम करने वाले organizations की सर्वोच्च प्राथमिकता इनके ऊपर नजर रखने की है. यहाँ इन organizations के लिए ड्रोन एक बेहतर तरीका है बिना शांति भंग किए इनपर नजर रखने का.
Traffic Monitor करने के लिए – ड्रोन की simplicity, mobility और large area cover करने की क्षमता की वजह से इसका इस्तेमाल traffic monitoring के लिए किया जाता है. इनका इस्तेमाल traffic guidance, traffic activity analysis, individual vehicle की identity और tracking, license plate को read करने इत्यादि कामों के लिए किया जाता है. इनमें day और night surveillance के लिए HD और thermal cameras का इस्तेमाल किया जाता है.
ड्रोन उड़ाते समय क्या-क्या सावधानियां बरतें?
1. अगर आपके ड्रोन में एक lithium-power battery का इस्तेमाल हो रहा है, तो इसे ठंडे वातावरण में कम इस्तेमाल करें. क्योंकि अधिक ठंड में इसकी battery पर negative effect पड़ता है और battery जल्दी discharge हो जाती है.
2. वहीं अगर गर्मी अधिक है तो भी ड्रोन को अधिक समय के लिए नहीं उड़ाना चाहिए. क्योंकि गर्म क्षेत्र में lift पैदा करने के लिए motor को अधिक काम करना पड़ता है, जिससे इसकी battery जल्द ही discharge हो जाती है.
इसलिए इस्तेमाल के बाद battery को पहले cool down होने के लिए छोड़ दें और फिर दोबारा charge करें.
3. अगर हवा ज्यादा चल रही है तो ड्रोन को ना उड़ाएं. क्योंकि ऐसा करने पर ड्रोन को stabilize होने के लिए ज्यादा energy की जरूरत पड़ेगी, साथ ही दुर्घटना होने के chances भी बढ़ जाते हैं. इसलिए शांत वातावरण में ही इसे उड़ाएं.
4. अगर बारिश हो रही है या humid climate है तो ड्रोन को बिलकुल भी ना उड़ाएं. क्योंकि भीगने पर ड्रोन का flying time कम हो जाता है.
5. अगर आपके ड्रोन में guards लगे हैं तो ये accident के दौरान इसे damage होने से बचातें हैं, लेकिन इसके साथ साथ ड्रोन का weight भी बढ़ा देते हैं. इसलिए जब आप इसे उड़ाने में अनुभवी हो जाओ तब इन guards को इससे जरुर हटा दें.
6. ड्रोन को अधिक समय के लिए high speed में ना उड़ाएं. क्योंकि ऐसा करने पर इसकी battery जल्दी discharge होती है. साथ ही अगर आप इसे कुछ समय के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं तो battery full charge करके ही इसे रखें. इसे dry और हवादार area में room temperature में ही स्टोर करें.
7. ड्रोन में फालतू के add-ons ना जोड़ें. केवल उन्ही add-ons का इस्तेमाल करें जिनकी आपको जरूरत है.
अगर आप ऊपर बताई गई सावधानियों का पालन करते हैं तो आपके ड्रोन का flying time तो बढ़ेगा ही, साथ ही यह damage होने से भी बचा रहेगा.
ड्रोन को कौन उड़ा सकता है?
भारत में ड्रोन उड़ाने के लिए license की जरूरत होती है, ठीक वैसे ही जैसे car drive करने के लिए होती है. एक मानव रहित ड्रोन का pilot बनने के लिए आपको driving license की तरह ही एक unmanned aircraft operator permit लेने की आवश्यकता होती है. कार की तरह ही आपके ड्रोन को भी government के साथ register करने की जरूरत होती है और इसे एक unique identification number के साथ issue किया जाता है.
जिस प्रकार cycle को operate करने के लिए किसी तरह के registration certificate और license की जरूरत नहीं होती, उसी प्रकार “nano” और “micro” ड्रोन भी (2 kg से कम वजन वाले खिलौने) इस तरह के नियमों से मुक्त होते हैं.
क्या ड्रोन को कहीं भी उड़ाया जा सकता है?
छोटे उत्तर में : नहीं.
एक UAV को operate करने के लिए drone regulations द्वारा 3 zones को specify किया गया है: Red Zone, Yellow Zone और Green Zone.
Red zone में ड्रोन उड़ाने की अनुमति नहीं होती है. Red Zone में airports, international borders, military installation इत्यादि के आसपास का airspace शामिल होता है. साथ ही दिल्ली में Parliament और राष्ट्रपति भवन के आसपास भी ड्रोन उड़ाने की अनुमति नहीं है.
वही yellow zone में ड्रोन उड़ाने के लिए एक flight plan और एक air defence clearance certificate के filing की आवश्यकता होती है. जबकि Green Zone में आप कहीं भी ड्रोन उड़ा सकते हैं.
ड्रोन कितनी ऊंचाई पर उड़ सकता है?
बात की जाए ड्रोन के altitude की तो वो प्रत्येक ड्रोन के लिए अलग-अलग होता है. Market में ड्रोन के बहुत सारे variants उपलब्ध हैं, जिनमे 1 किलोमीटर से लेकर 6 किलोमीटर तक का altitude achieve करने वाले ड्रोन शामिल हैं.
ड्रोन को कितनी ऊंचाई पर उड़ाना है इसके लिए भी regulations बनाए गए हैं. भारत में आप ड्रोन को अधिकतम 400 feet तक की ऊंचाई पर उड़ा सकते हैं. साथ ही जैसे कि मैंने पहले भी आपको बताया कि इसके लिए license की जरूरत होती है.
भारत में ड्रोन बनाने वाली कंपनी कौन-कौन सी है?
वैसे तो भारत में ड्रोन बनाने वाली कई कंपनिया मौजूद हैं, लेकिन मै आपके साथ मुख्य 9 कंपनियों के नाम शेयर करूंगा जो भारत में ड्रोन manufacture करती हैं.
- Aarav Unmanned Systems
- Cron Systems
- 1 Martian Way Corporation
- Detect Technologies
- AerialPhoto (Envent digital Technologies)
- Drone Tech Lab
- Indrones Solutions
- IdeaForge
- Aero360
Conclusion
मुझे उम्मीद है आपको मेरा ये Article ” ड्रोन क्या है (What is Drone in Hindi) और यह कैसे उड़ता है?” जरुर पसंद आया होगा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है “ड्रोन क्या है” विषय से जुड़ी हर जानकारी को सरल शब्दों में explain करने की, ताकि आपको इस Article के सन्दर्भ में किसी दूसरी site पर जाने की जरूरत ना पड़े.
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ड्रोन के संबंध में बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने क्योंकि हिंदी में ज्यादातर अधूरी जानकारी ही थी पर आपने सटीक जानकारी दिए,,,धन्यवाद
Thanks dear