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कोयला क्या है, कैसे बनता है और कोयले के प्रकार

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What is Coal in Hindi. आज का यह लेख काफी ज्ञानवर्धक होने वाला है, क्योंकि आज के इस लेख में आप कोयला क्या है, कैसे बनता है और कोयले के प्रकार के बारे में जानेंगे. कोयला ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाने वाला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है, जो ऊर्जा के मुख्य स्रोतों में शामिल है. कोयले का निर्माण ज्वलनशील जैव पदार्थों से हुआ है.

कोयले में कार्बन सहित हाइड्रोजन, सल्फर, ऑक्सीजन, फास्फोरस आदि की मात्रा शामिल है. आज हम कोयले के निर्माण के साथ कोयले के उपयोग, खनन और आयात से जुड़ी जानकारियों के बारे में भी चर्चा करेंगे. तो चलिए आगे बढ़ते है और जानते हैं कोयले से जुड़ी पूरी जानकारी हिंदी में.

कोयला क्या है? – What is Coal in Hindi

कोयला कैसे बनता है

कोयला एक ज्वलनशील काली या भूरी-काली तलछटी चट्टान है, जो एक परत के रूप में बनती है और इसे कोयले की परत कहा जाता है. अधिकतर कोयला कार्बन होता है जिसमें कुछ अन्य तत्व मिले होते हैं. इसमें मुख्य तौर पर हाइड्रोजन, सल्फर, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन शामिल होते हैं, जिनकी मात्रा परिवर्तित होती रहती है. कोयला तब बनता है जब मृत पौधे का पदार्थ पीट (सड़ी-गली घास से बना प्राकृतिक पदार्थ) में गलकर और करोड़ों वर्षों तक दफन होकर उच्च गर्मी और दबाव की वजह से कोयले में बदलता है.

कोयले का बड़ा भंडार पूर्व दलदली भूमियों से उत्पन्न होता है, जिन्हें कोयला वन कहा जाता है. ये दलदली भूमियां कार्बोनिफेरस (भूगर्भ में कोयले की तह बनने वाला युग) और पर्मियल काल में पृथ्वी के अधिकांश उष्णकटिबंधीय भूमि क्षेत्र को कवर करती थी. कोयला एक अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, यानी इसे दोबारा नहीं बनाया जा सकता., क्योंकि इसे बनने में करोड़ों वर्षों का समय लगता है. कोयला उन पौधों की ऊर्जा शामिल होती है जो कभी करोड़ों वर्ष पहले दलदली जंगलों में जिंदा थे.

कोयले का निर्माण कैसे होता है?

कोयले का निर्माण करोड़ों वर्षों तक पेड़-पौधों के भूमि के नीचे दबे रहने से होता है. आज हमें जो कोयला प्राप्त हो रहा है वह भी करोड़ों वर्ष पूर्व प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी निकलने, आकाशीय बिजली गिरने इत्यादि की वजह से पृथ्वी पर मौजूद पेड़-पौधों के भूमी के नीचे दबने से बना.

विस्तार से

करोड़ों वर्ष पहले पृथ्वी बड़े दलदली जंगलों से ढक चुकी थी. जिसमें giant trees, reeds और mosses जैसे पौधे पैदा हुए. जब नए पौधे बड़े होते तो कुछ पुराने पौधे मृत हो जाते और दलदली पानी में गिर जाते. फिर नए पौधे बड़े होते और उनकी जगह लेते और जब ये नष्ट हो जाते तो उनकी जगह और पौधे जन्म लेते. इस प्रकार समय के साथ मृत पौधों की एक मोटी परत बन गई जो दलदल में सड़ने लगी.

फिर प्राकृतिक आपदाओं से पृथ्वी की सतह बदली और पानी और मिट्टी से सब धुल गया और सड़ने की प्रक्रिया रूक गई. इसके बाद और पौधे बड़े हुए. लेकिन समय के साथ वे भी मृत हो गए और गिर गए, जिससे नई परत तैयार हुई. करोड़ों वर्षों तक एक दूसरे के ऊपर ऐसी कई परतें बनी. ऊपरी परत, पानी और मिट्टी ने पौधों की निचली परत को दबा दिया.

गर्मी (हीट) और दबाव की वजह से नीचे दबी पौधों की परत में केमिकल और फिजिकल बदलाव हुए जिससे ऑक्सीजन निकल गई और कीमती कार्बन जमा होता गया. समय के साथ ये पौधा सामग्री कोयले में तब्दील हो गई.

कोयले के प्रकार

coal in hand

कोयले को इसके विकास क्रम और गुणों के आधार पर पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है:

1. एन्थ्रेसाइट (Anthracite)

2. बिटुमिनस (Bituminous)

3. सब-बिटुमिनस (Sub-Bituminous)

4. लिग्नाइट (Lignite)

5. पीट (Peat)

एंथ्रेसाइट कोयला 

इसमें सबसे ज्यादा 86-97% तक कार्बन होता है और आमतौर पर इसकी हीटिंग वैल्यू अन्य प्रकार के कोयले के मुकाबले सबसे ज्यादा होती है. इसलिए इसे सबसे उच्च श्रेणी का और सबसे शुद्ध कोयला माना जाता है. यह अन्य प्रकार के कोयले के मुकाबले कम जहरीली गैस छोड़ता है.

एन्थ्रेसाइट कोयला लंबी अवधि तक ऊर्जा उत्पादित कर सकता है. भारत में यह कोयला सिर्फ जम्मू और कश्मीर में पाया जाता है. इस प्रकार के कोयले लगभग 35 करोड़ वर्ष तक भूगर्भ में दबे रहने के बाद तैयार होते हैं.

एंथ्रेसाइट कोयले के उपयोग

  • यह कोयला लंबे समय तक जल सकता है इसलिए इसका इस्तेमाल घरेलू अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है. मुख्यतौर पर चारकोल ब्रिकेट के घटक के रूप में.
  • सर्दियों में इसका उपयोग किसी जगह को गर्म करने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि यह जलने पर कम धुआं छोड़ता है.
  • लकड़ी के मुकाबले अधिक समय तक जलने की वजह से इसका उपयोग होम हीटिंग स्टोव में किया जा सकता है.
  • अधिक मात्रा में कार्बन होने की वजह से इसका इस्तेमाल मेटल इंडस्ट्री में metal को गलाने के लिए किया जाता है.
  • विशिष्ट घनत्व और यूनिक आकार की वजह से एंथ्रेसाइट का उपयोग वाटर प्यूरिफिकेशन के लिए भी किया जा सकता है.

बिटुमिनस कोयला

यह मध्यम श्रेणी का कोयला है. इस कोयले में 45-86% कार्बन की मात्रा होती है. यह कोयला भूगर्भ में लगभग 30 करोड़ वर्ष दबे रहने के बाद तैयार हुआ है. इस कोयले का ऊर्जा घनत्व अपेक्षाकृत उच्च (27 Mj/kg) होता है. इसलिए जलने पर यह अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करता है.

भारत में अधिकांश बिटुमिनस कोयला ही पाया जाता है, जो देश के कुल कोयले भंडार का लगभग 80% है. यह कोयला झारखण्ड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छतीसगढ़ और मध्यप्रदेश राज्यों में सबसे ज्यादा पाया जाता है. यह एंथ्रेसाइट कोयले की तुलना में कम कठोर होता है. यह एक कोकिंग कोयला है, यानी एक ऐसी गुणवत्ता वाला कोयला जिससे ब्लास्ट फर्नेस प्रोसेस के लिए कोक का निर्माण किया जा सकता है, जैसे स्टील बनाने के लिए.

यह कोयला जलने पर अत्यधिक मात्रा में धुआं और कालिख पैदा करता है. साथ ही उच्च सल्फर सामग्री होने की वजह से सल्फर ऑक्साइड निकालता है जो अम्लीय वर्षा में योगदान देता है.

बिटुमिनस कोयले के उपयोग

  • इस कोयले का इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है.
  • यह coking coal बनाने और लोहा और स्टील इंडस्ट्री में इस्तेमाल के लिए एक महत्वपूर्ण ईंधन और कच्चा माल है.

सब-बिटुमिनस कोयला

सब-बिटुमिनस कोयले में 35-45% कार्बन होता है और इसकी हीटिंग वैल्यू बिटुमिनस कोयले से अपेक्षाकृत कम और लिग्नाइट से ज्यादा होती है. इस तरह के कोयले 10 करोड़ वर्ष पुराने होते हैं. यह एक गैर-कोकिंग कोयला होता है, जिसमें वजन के हिसाब से 15 से 30% नमी होती है.

इस कोयले का ऊर्जा घनत्व 26.7 Mj/kg होता है. इसका रंग काला होता है और यह दिखने में मंद (चमकदार नहीं) होता है.

सब-बिटुमिनस कोयले के उपयोग

  • वजन के हिसाब से इसमें सल्फर की मात्रा 1% से कम होती है, इसलिए acid rain कार्यक्रम के तहत SO2 उत्सर्जन को कम करने के लिए बिजली संयंत्रों (power plants) में इसका इस्तेमाल किया जाता है.

लिग्नाइट कोयला

इसमें 25-30% कार्बन की मात्रा होती है और जो अन्य प्रकार के कोयले के मुकाबले सबसे कम ऊर्जा सामग्री होती है. ये कोयले भूवैज्ञानिक दृष्टि से युवा अवस्था में होते हैं यानी बहुत कम समय से भूगर्भ में दबे होते हैं, जो अत्यधिक हीट और दबाव के अधीन नहीं होते.

लिग्नाइट कोयले का रंग भूरा होता है. यह कोयला भुरभुरा होता है और अधिक नमी होने की वजह से कम हीटिंग वैल्यू प्रदान करता है. भारत में लिग्नाइट कोयला तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पाया जाता है. इसके अलावा यह राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, गुजरात और केरल राज्यों में भी पाया जाता है.

लिग्नाइट कोयला अन्य प्रकार के कोयले के मुकाबले कम हीट और अधिक कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर छोड़ता है. इसलिए स्वास्थ्य के लिहाज से इसे सबसे हानिकारक कोयला माना जाता है.

लिग्नाइट कोयले उपयोग

  • ज्यादातर भाप-विद्युत ऊर्जा उत्पादन (steam-electric power generation) के लिए ईंधन के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है.
  • सिंथेटिक नेचुरल गैस उत्पादन के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.
  • उर्वरकों के उत्पादन के लिए लिग्नाइट कोयले का इस्तेमाल किया जाता है.

पीट कोयला

यह कोयले की सबसे शुरुआती अवस्था होती है, जो अशुद्ध और कच्चा होता है. इसमें 40-55% कार्बन की मात्रा पाई जाती है. इसमें पर्याप्त वाष्पशील पदार्थ और नमी होती है जिससे अधिक धुआं और प्रदूषण उत्पन्न होता है.

यह लकड़ी की तरह जलता है और कम हीट देता है. जलने पर यह अधिक धुआं उत्पन्न करता है और बहुत सारी राख भी छोड़ता है.

पीट कोयले के उपयोग

  • पीट का उपयोग घरेलू हीट उद्देश्यों के लिए किया जाता है.
  • यह ब्रिकेट या चूर्णित रूप में बॉयलर फायरिंग के लिए उपयुक्त ईंधन की तरह काम करता है.
  • पीट का उपयोग घर पर खाना पकाने के लिए भी किया जाता है.
  • कुछ स्थानों पर इसका उपयोग कम मात्रा में बिजली उत्पादन के लिए भी किया जाता है.

कोयले की खान (Coal Mine) किसे कहते हैं?

एक जगह, आमतौर पर भूमिगत, जहां जमीन से खोदकर कोयला बाहर निकाला जाता है, को कोयले की खान या खदान कहा जाता है.

जमीन से कोयला कैसे निकलता है?

coal mining

जमीन या खदान से कोयला निकालने की प्रक्रिया को कोयले का खनन कहा जाता है. कोयले का खनन दो मुख्य तरीकों से किया जाता है जो कुछ इस प्रकार हैं:

1. सतही खनन (Surface Mining)

2. भूमिगत खनन (Underground Mining)

सतही खनन – सतही खनन प्रायः तब किया जाता है जब कोयला भूमि में 200 फीट से कम गहराई पर हो. सतही खनन में बड़ी मशीनों की मदद से ऊपरी मिट्टी और चट्टानों की परतों को हटाया जाता है ताकि कोयला उजागर हो सके.

पर्वत शिखरों को हटाना सतही खनन का ही एक रूप है जहां पर्वतों के ऊपर विस्फोट कर कोयले की परत तक पहुंचा जाता है. वहां से कोयला निकाला जाता है और खाली हो चुके स्थान को ऊपरी मिट्टी से ढक दिया जाता है, ताकि वहां घास और पेड़-पौधे लगाए जा सके. सतही खनन की प्रक्रिया भूमिगत खनन की अपेक्षा कम खर्चीली होती है.

भूमिगत खनन – भूमिगत खनन जिसे डीप माइनिंग भी कहा जाता है, तब आवश्यक होती है जब कोयला सतह से कई सौ फीट नीचे हो. कुछ भूमिगत खदानें सुरंगों के साथ हजारों फीट गहरी होती हैं जो मिलों तक खड़ी खादान शाफ्ट (vertical mine shaft) से बाहर निकल सकती हैं.

खनिक (खान-मजदूर) लिफ्ट के जरिए गहरी खदान शाफ्ट के नीचे जाते हैं और लंबी गुफा में ट्रेनों के जरिए कोयला प्राप्त करते हैं. कोयला निकालने के लिए खनिक बड़ी मशीनों का इस्तेमाल करते हैं.

कोयले की सफाई

जमीन से कोयला निकालने के बाद इसे खदान के समीप preparation plant में भेजा जाता है, जहां कोयले से चट्टान, मिट्टी, राख, सल्फर और अन्य अनचाही सामग्री को निकाला जाता है और कोयले की सफाई की जाती है. इस प्रक्रिया से कोयले की हीटिंग वैल्यू बढ़ती है.

कोयले की ढुलाई

कोयले को खदानों और प्रोसेसिंग प्लांट्स से उपभोक्ताओं तक कई तरीकों से पहुंचाया जा सकता है.

1. खदानों के आसपास, खदान के नजदीक उपभोक्ताओं या लंबी दूरी के ट्रांसपोर्टेशन मोड तक कोयला पहुँचाने के लिए कन्वेयर, ट्राम और ट्रक का इस्तेमाल किया जाता है.

2. माल लादने वाली नाव की मदद से नदियों और झीलों पर कोयले का परिवहन किया जाता है.

3. रेलगाड़ियों के माध्यम से कोयले का परिवहन किया जाता है. 

4. समुद्री जहाजों की मदद से कोयले को दूसरे देशों में भेजा जाता है.

कोयले के उपयोग क्या-क्या हैं?

कोयले का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है:

  • बिजली का उत्पादन करने के लिए थर्मल पॉवर प्लांट्स में कोयले का उपयोग किया जाता है.
  • कोयले का उपयोग घरों में ईंधन के रूप में खाना बनाने के लिए किया जाता है.
  • कोयले का उपयोग भाप वाली रेलगाड़ी चलाने के लिए भी किया जाता है. लेकिन अब ये रेलगाड़ियाँ कम हो चुकी हैं.
  • मेटल इंडस्ट्रीज जैसे कि स्टील प्लांट्स, एलुमिनियम प्लांट्स इत्यादि में ईंधन के तौर पर कोयले का इस्तेमाल किया 
  • जाता है.
  • टायर, ट्यूब, जूते, कागज, ग्लास आदि बनाने वाले कारखानों में ईंधन तथा ऊर्जा के लिए कोयले का इस्तेमाल किया जाता है.
  • कारखानों में बिजली उत्पन्न करने के लिए भी कोयले का इस्तेमाल किया जाता है.

क्या पृथ्वी के नीचे दबे हुए सभी पेड़-पौधों का कोयला बन जाता है?

नहीं, पृथ्वी के नीचे दबे सभी पेड़-पौधों का कोयला नहीं बनता. कोयले का निर्माण उस स्थान के वातावरण पर निर्भर करता है जहां पेड़-पौधे भूमि में दबे हुए हैं. पृथ्वी पर हर स्थान का वातावरण अलग-अलग होता है. कोयले का निर्माण ठंडे वातावरण की बजाय गर्म वातावरण में अधिक होता है. कुछ स्थानों पर नीचे दबे पेड़-पौधों से कोयला बन जाता है, तो कुछ स्थानों पर उनके खनिज पदार्थ बन जाते हैं. जबकि कुछ स्थानों पर सिर्फ उदासीन पदार्थ बनते हैं जिनका कोई उपयोग नहीं होता.

कोयला जलता कैसे है?

मूल रूप से जलने का मतलब होता है ऑक्सीजन की उपस्थिति में दहन. कोयले में कार्बन की मात्रा अधिक होती है जो क्वाड्रो वैलेन्ट होता है (अर्थात 4 valency) इसलिए यह 4 और इलेक्ट्रॉनों को स्वीकार कर सकता है.

ऑक्सीजन में 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं और ऑक्सीजन highly electronegative भी होता है. इसलिए ऑक्सीजन आसानी से कार्बन के साथ हीट मिलने पर प्रतिक्रिया करता है जिससे bonds तोड़ने और बनाने में मदद मिलती है.

इसलिए प्रतिक्रिया = C + O2 = CO2

इस प्रकार, कार्बन पर्याप्त ऑक्सीजन में जलकर CO2 बनाता है.

कोयले से जुड़े FAQ

1. भारत कोयले का आयात किन देशों से करता है?

भारत बड़ी मात्रा में कोयले का आयात इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों से करता है.

2. कोयला होने के बावजूद भारत कोयले का आयात क्यों करता है?

भारत के पास कोयले का एक बड़ा भंडार है (लगभग 300 अरब टन). लेकिन फिर भी हमें दूसरे देशों से कोयले का आयात करना पड़ता है, जिसके कारण निम्नलिखित हैं:

1. कोयला खनन में कोल इंडिया को एकाधिकार प्राप्त है जो स्टील प्लांट्स, पॉवर प्लांट्स, सीमेंट और फ़र्टिलाइजर्स यूनिट की आवश्यकताओं को पूरा करने लायक उत्पादन नहीं कर पा रही है.

2. कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण, जो राज्य सरकारों का विषय है, एक चुनौती है.

3. पर्यावरण और वन से जुड़ी कई मंजूरियां और कोयला परिवहन भी देश के लिए चुनौतियाँ हैं.

3. सबसे अच्छी किस्म का कोयला कौन सा है?

सबसे अच्छी किस्म का कोयला एंथ्रेसाइट है.

4. कोयले का निर्माण किस युग में हुआ?

कोयले का निर्माण आज से लगभग 25 करोड़ वर्ष पूर्व कार्बोनिफरस युग (carboniferous period) में हुआ. उस समय पृथ्वी के अधिकांश क्षेत्रों में दलदल पाए जाते थे और जलवायु अत्यंत उष्ण और आर्द्र थी.

5. कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन सा है?

विश्व में सबसे बड़े कोयला उत्पादक देश का दर्जा चीन को प्राप्त है. जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका दूसरे स्थान पर है. इनके अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया, रूस और जापान भी कोयले के मुख्य उत्पादक देशों के रूप में जाने जाते हैं.

6. भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र कौन सा है?

भारत में सबसे अधिक कोयला झारखंड में पाया जाता है. झारखंड स्थित झरिया कोयला क्षेत्र सबसे प्राचीन और संपन्न कोयला क्षेत्रों में से एक है. जबकि देश का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र ओड़िशा है.

7. भारत में सर्वाधिक कौन-सा कोयला पाया जाता है?

बिटुमिनस

Conclusion

उम्मीद करता हूँ आपको मेरा यह लेख “कोयला क्या है, कैसे बनता है और इसके प्रकार” जरूर पसंद आया होगा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है what is coal in hindi से संबंधित सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की ताकि आपको इस विषय के संदर्भ में किसी दूसरी वेबसाइट पर जाने की जरूरत ना पड़े.

अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो या कुछ नया सीखने को मिला हो तो कृपया इसे दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क पर शेयर जरुर करें. 

Rahul Chauhan
Rahul Chauhanhttps://hindivibe.com/
Rahul Chauhan, Hindivibe के Author और Founder हैं. ये एक B.Tech डिग्री होल्डर हैं. इन्हें विज्ञान और तकनीक से संबंधित चीजों के बारे में जानना और लोगों के साथ शेयर करना अच्छा लगता है. यह अपने ब्लॉग पर ऐसी जानकारियां शेयर करते हैं, जिनसे कुछ नया सिखने को मिले और लोगों के काम आए.

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